ठेकेदार प्रतीक का भ्रष्टाचारी खेल, पुरानी ईंटों का पुनः ईस्तेमाल कर बना डाली गली।
डाटला एक्सप्रेस संवाददाता नगर निगम के गगन विहार वार्ड संख्या पांच बी-ब्लॉक गली नंबर साढ़े नौ मे कुछ दिनों पहले 70 से 80 मीटर के आस-पास नाली और रास्ते का निर्माण कार्य ठेकेदार प्रतीक के द्वारा करवाया गया था, जिसमें गली वालों का आरोप है कि ठेकेदार प्रतीक द्वारा इस निर्माण कार्य मे घटिया सीमेंट और पील…
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कविता:-तेरे आने का अब इंतज़ार भी नहीं।
डाटला एक्सप्रेस की प्रस्तुति  तेरे जाने से दिल बेकरार भी नहीं। तेरे आने का अब इंतज़ार भी नहीं। तुझे पाने की ख्वाईश क्या होगी अब, तेरी चाहत का तलबगार भी नहीं गुजरते हैं हम उन रास्तों से कभी, आती अब उनमें पुकार भी नहीं।   तेरा ग़म ये मुझे डराएगा भी क्या, मेरे डर का याँ कोई दयार भी नहीं। न लिखावट है …
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कविता:-आज कुछ लिखने का मन है
डाटला एक्सप्रेस की प्रस्तुति   आज कुछ लिखने का मन है प्रीत का जागा बचपन है मिलन दिल को छूने आ रहा विरह कर रहा पलायन है लगा है बिना कहे ही आज महकने फिर से गुलशन है ग़ज़ल लगता है हर इक लफ्ज़ भा रहा यह पागलपन है याद जैसे ही आई याद खिला मुरझाया जीवन है आज अंचल खुद से कर बात…
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अवैध निर्माणों को संरक्षण देना हो या आरटीआई नियमों की धज्जियां उड़ाना, जीडीए प्रवर्तन जोन 02 के अधिकारी दोनों चीजों मे हैं माहिर।
आरटीआई आवेदकों को जीडीए का चक्कर लगवाने, जनशिकायत पर झूठी आख्याएं प्रेषित करने और अवैध निर्माणों को संरक्षण देने मे प्रथम रैंकिंग हासिल कर चुका है जीडीए का प्रवर्तन जोन 02 डाटला एक्सप्रेस संवाददाता गाज़ियाबाद:-सबसे अधिक अवैध निर्माणों और अनाधिकृत काॅलोनियों से भरपूर गाज़ियाबाद विकास प्राधिकरण का प्…
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आरटीआई आवेदक को लट्टू की तरह नचा रहे जीडीए प्रवर्तन जोन दो के अधिकारी, आठ माह पूर्व प्रेषित की गई आरटीआई से संबंधित प्रपत्रों को आवेदक के कई प्रयासों के बावजूद देने के लिये नही हैं तैयार।
डाटला एक्सप्रेस संवाददाता  आवेदक द्वारा प्रेषित चारों आरटीआई प्रवर्तन जोन दो के अवर अभियंताओं के संरक्षण मे हुए अवैध निर्माणों से जुड़े होने के चलते अधिकारी प्रपत्रों को उपलब्ध करवाने मे कर रहे हैं संकोच आरटीआई नियमों की धज्जियां उड़ाने, अवैध निर्माणों और काॅलोनियों को संरक्षण देने के लिये मशहूर …
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कविता-याद मे छुप कर
डाटला एक्सप्रेस की प्रस्तुति  कब मिलोगे बोलिए जी चुप जुबां को खोलिए जी याद में छुप कर बहुत दिन अब बहुत दिन रो लिए जी क्यों बसे आकर ज़हन में क्यों तसव्वुर हो लिए जी है अगर हमसे मुहब्बत लफ़्ज़ से रस घोलिए जी है जरूरत एक हां की शब्द भी क्या सो लिए जी कर सके पूरे न वादे दोस्त खुद को तो…
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