शिक्षा का प्रारंभ सावित्रीबाई फुले'- दलित लेखक संघ

प्रस्तुति:-डाटला एक्सप्रेस (रिपोर्ट:-चंद्रकांता सिवाल "चन्द्रेश") 


दलित लेखक संघ के तत्वावधान में दिनांक 3 जनवरी 2023 को गूगल मीट ऑनलाइन पर सावित्रीबाई फुले के 192 वें जन्मदिवस के अवसर पर 'शिक्षा का प्रारंभ सावित्रीबाई' शीर्षक से कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जिसकी अध्यक्षता कर रही डॉ. राजकुमारी ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि आज स्त्री शिक्षा की जितनी ज़रूरत समाज के है तबके को है वहीं स्त्रियों के सम्मान और अधिकारों की रक्षा भी उतना ही ज़रूरी है। एक औपचारिकताओं से परे व्यावहारिकता में दिखना आवश्यक है। जैसे ज्योतिबा फुले ने क्रांतिज्योति सावित्रीबाई फुले के लिए किया और जिस तरह सावित्री ने गोबर, ढेले और गालियों के बीच किया। 

बतौर मुख्य वक्ता के रूप में नूतन यादव ने अपने वक्तव्य में कहा कि आज शिक्षा सिर्फ नौकरी पाने तक सीमित देखा जा रहा है जबकि सावित्रीबाई फुले की दृष्टि में शिक्षा समाज को बदलने का माध्यम होना चाहिए। वे जिस यह से अपने समय में जूझ रही थी उसे तो यही सीखा जाना चाहिए। उन्होंने कंझावला वाली घटना का ज़िक्र करते हुए कहा कि आज भी स्त्रियों को उसी मनुवादी दृष्टि से ही देखा जा रहा है। इसे समझने व समझाने की जरूरत हमेशा रहेगी।

हीरालाल राजस्थानी ने सार संदर्भ में रजनी तिलक को याद करते हुए कहा कि जो हक़ हुकूक हमें बतौर नागरिक संविधान में बिना किसी लिंगिय, जाति, धर्म भेदभाव के मिले हैं वे सब परिवार और समाज में लुप्त होते साफ देखें जा सकते हैं। इससे यह साफ झलकता है कि भारतीय समाज अभी भी मनु विधान से उभर नहीं पाया है। यह शर्म करने जैसा है कि जिस सावित्रीबाई ने विपरीत परिस्थितियों के बावजूद सन 1848 भिड़ेवाड़ा पुणे में जिस जगह पहला स्कूल खोला उसको हम सहेज नहीं पाए। और वे 131 सांसद जो इस उपेक्षित वर्ग का प्रतिनिधित्व संसद में कर रहे हैं आज अपने लोगों पर हो रहे अत्याचार, बलात्कार जैसी घटनाओं पर चुप्पी साधे बैठे हुए हैं। उनसे पूछा जाना चाहिए कि क्या इसी लिए वे संसद में गए हैं?

बजरंग बिहारी तिवारी ने टिप्पणी के तौर पर कहा कि जब उत्पीड़न की घटनाएं लगातार होती जा रही है तक ऐसे समय में हमें सवालों पर मुखर होना चाहिए लेकिन तब ऐसी चुप्पी एक अंधकार की और इशारा करती है। सावित्रीबाई फुले के जीवन से सबक सीखा जाना चाहिए।

तारा परमार ने अपनी दो कविताओं का पाठ किया एक अपराजिता और दूसरी मां जिसमें सकारात्मक सोच को सामने रखा। डॉ. इंगाेले ने - सन्ताने और मां सावित्री की संताने , शिक्षा गुलामी का ताला खुला , सत्यशोधक मार्ग , इरादो से जीवन परिचय को एक लयबध कविता के रूप मे बड़े ही सुन्दर शब्दों में पिरोया । और न कोई लिखे , नारी तेरी नई कहानी।

डॉ. पल्लवी ने कहा जुझारूपन का नाम है मां सावित्री ' उसी से ककहरा शुरू होता है क से कंगन अक्षर तुलिका , क से कर्मशील एक सुन्दर प्रतिमान।

- एक बाज़ार लगा है शिक्षा का शिक्षा नीति पर कटाक्ष करती हुई रचना का पाठ किया।

सुनील पंवार ने अपनी कविता में- प्रेम की नदी, ममत्व मृत इच्छाओं की चाहें, मित्रता- स्त्रीपुरुष की मित्रता इसी मुश्किल को आसान करना ही तो 

डॉ. राजेश पाल ने अपनी कविता में- हवा खा रहे लोग, नहीं जानते हवा की वजह " नौजवानों महा वजह बेरोजगारी व समान व्यवस्था पर करारी चोट करती हुई रचना का पाठ किया | जागो तुम्हारे लिए लोग लड़ रहे हैं । उठो जागो देर न हो जाए एक कविता जिसमें समाज को जागृत करने की बात करते हैं।

अनिल संधू ने बेटियां नमक कविता का पाठ करते हुए सिग्मंड फ्रायड के दर्शन को कोट किया। बेटिया जाती है बड़ी होने से पहले...।

जावेद आलम ने अपनी कविता में- सलीका जिसमें पाश को कोट किया गया। हम जितने हुनरमंद थे उतने ही बेसलीका..। हाशिए के लोग - हम तत्सम मनुष्यता के रजिस्टर से होकर जाति के कोष्टक में बंद हुए..।

सुनीता वर्मा ने सावित्रीबाई फुले की कविता जिसमें- चलो चले पाठशाला अब हमें है पढ़ना...का पाठ किया। 

हरदीप बौद्ध ने अपनी कविता में कहा - दृढ़ सावित्री बाई- कीचड़ फेंको , पत्थर मारो , कभी न घबराऊगी, भारत की हर नारी को शिक्षित मै कर जाऊंगी।

प्रीति गौतम ने अपनी कविता में - छीन लूंगी मै अपने हक किसी सौगात को तरह, गिर गई तो फिर उठूंगी प्रभात की तरह..। दूसरी कविता - सुनो लड़कियों , खुद को पेन्टिग की तरह डेकोरेट, सुन्दर समझना छोड़ दो..। में हिदायत देते दिखती हैं।

ललिता महामना ने अपनी दो कविताएं पढ़ी - मैं एक आम लड़की हूँ जिसे मान मर्यादा के रूप में ही देखा गया तथा दूसरी कविता मनु की सन्तानों में पुरानी रूढ़ियों पर बार किया। 

हरपाल सिंह भारती ने इस अवसर पर अपने गीत का गायन किया - शिक्षा की मशाल में - जब जाग उठोगे तुम, जब अंधेरा भागेगा। जो शिक्षा के महत्व को लेकर पढ़ा गया।

कार्यक्रम का संचालन करते हुए सरिता संधू ने कहा कि आज भी स्त्रियां दयनीय स्थिति में जीवन जी रही हैं। इसे देखते हुए सावित्रीबाई फुले के योगदान को पुनर्जीवित करने का समय है। 

कार्यक्रम में- रश्मि रावत, खन्ना प्रसाद अमीन, चित्तरंजन दास गोपे, चमनलाल नागर, सुनीता राजस्थानी, ज्योति महामना, विक्रांत सावरिया, उमा राग, रहमान मुस्सविर, स्वतंत्र मिश्रा, चंद्रा निगम, सत्या सिद्धार्थ आदि की उपस्थिति मुख्य रूप से रही।

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