गुजरा बचपन न लौटे कभीकब गुजर गया बचपन
पता ही नहीं चला,
कब हुए बड़े, ये भी नहीं पता
वात्सल्यता मर गई किताबों के पन्नों में
मुस्कान ने त्याग दिए, प्राँण सपनों में
बस्ते तले दब गई किलकारी
रह गई बस जीवन की मारामारी
जिनका लड़कपन बीता था सालों पहले
दबे अब हैं जो लाखों जिम्मेदारियों तले
याद आता है उन्हें, बीता सुहाना बचपन
किन्तु आज जिनका बीत रहा ऐसा लड़कपन
हर ओर पसरा सन्नाटा
चहुँ दिश भयावह सुनसान,
दुनिया की इस दौड़ती भागती भीड़ में-
महसूस करती है अकेला
खुद को मासूमियत,
छिन रहे हैं जिनके सपने
रूठ रहे हैं जिनके अपने
नहीं मिला जिन्हें, माता के अंक का सुख
क्या करेंगे याद वो अपने
इस बचपन को कभी
क्या दे पाएंगे मिसाल
बीते जीवन की कभी
मिल रहे आज जिन्हें लाखों कष्ट
वे सभी क्या नहीं कहेंगे...???
गुजरा बचपन न लौटे कभी।।
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-मनीषा द्विवेदी (मनुबाई)
कानपुर, उत्तर प्रदेश
डाटला एक्सप्रेस
संपादक:राजेश्वर राय "दयानिधि"
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