कविता- सर्द रातों में ठिठुरता

डाटला एक्सप्रेस की प्रस्तुति 

 

दर्द पलकों में छुपा लेते हैं

आग सीने में दबा लेते हैं

जिस्म ढकने को भले हों चिथड़े

आबरू अपनी बचा लेते हैं

भूख मिटती है कभी फाँकों से

प्यास अश्कों से बुझा लेते हैं

नहीं ख़ैरात से कोई रिश्ता

सिर्फ़ मालिक की दुआ लेते है

सर्द रातों में ठिठुरता तन जब 

रात को दिन -सा बिता लेते हैं

कर्मवाले ये अनूठे इंसाँ

पत्थरों को भी जगा लेते हैं

कोई तो बात है "अंचल" उनमें

खूब जीने का मज़ा लेते हैं।।

ममता शर्मा "अंचल"

अलवर (राजस्थान)

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