कविता:-जो मन कहता
डाटला एक्सप्रेस की प्रस्तुति 


बंदिश   में    जीना,    मरना  है
फिर  क्यों  बंदिश  से  डरना है

सोच  लिया  है  इसीलिए  अब
जो  मन  कहता  वह  करना है

दुख की गहरी  झील हुआ दिल
अधिक न अब इसको भरना है

अश्क  बनो हर दुख से कह दें
आँखों  से   जीभर   झरना  है

अपना अपना  हित है सबका
दोष  किसी  पर क्यों धरना है

दुनिया  से  उम्मीद  न  कीजे
अपना  संकट  खुद   हरना है

मोह न पाल किसी से "अंचल"
इक  दिन इस भव से  तरना है।।।


















ममता शर्मा "अंचल"
Comments
Popular posts
मुख्य अभियंता मुकेश मित्तल एक्शन मे, भ्रष्‍ट लाइन मैन उदय प्रकाश को हटाने एवं अवर अभियंता के खिलाफ विभागीय कार्यवाही के दिये आदेश
Image
दादर (अलवर) की बच्ची किरण कौर की पेंटिंग जापान की सबसे उत्कृष्ट पत्रिका "हिंदी की गूंज" का कवर पृष्ठ बनी।
Image
साहित्य के हिमालय से प्रवाहित दुग्ध धवल नदी-सी हैं, डॉ प्रभा पंत।
Image
गुजरा बचपन न लौटे कभी
Image
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की छत्रछाया में अवैध फैक्ट्रियों के गढ़ गगन विहार कॉलोनी में हरेराम नामक व्यक्ति द्वारा पीतल ढलाई की अवैध फैक्ट्री का संचालन धड़ल्ले से।
Image