प्रस्तुति डाटला एक्सप्रेस
वाणी की लय भाव ही,
मन से मन की डोर।
कर्कश वाणी बोलकर,
मत बनिए तुम ढोर।।
शब्द कटु नहीं बोल तू,
होती मन में पीर।
अश्रु नैन जब भीगते,
चुभे हृदय में तीर।।
बढ़िया बढि़या सब कहें,
भांति भांति की बात।
जिसका जैसा भाव है,
वैसी " है " सौगात।।
कर्कश वाणी बोलते,
करते ओछी बात।
ऐसे दुर्जन से कभी,
करे न कोई बात।।
मन को शांति तब मिले,
जब हम होंगे शांत।
व्यथित मन से तो सदा,
रहता हृदय अशांत।।
रखे सदा ही हृदय में,
सद्भावों के चित्र।
साधक उसको जानिए,
अपना सच्चा मित्र।।
लेखिका चन्द्रकांता सिवाल "चंद्रेश"
करोल बाग सतनगर (दिल्ली)