प्रस्तुति "डाटला एक्सप्रेस"
रचा प्रभु ने राधिके, जग ये बड़ा विशाल।
संचालन भी विश्व का, सच में बड़ा कमाल।।
सोच रही अब राधिके, बैठ कदम की छांव।
तनिक पास ही रह गया, गिरधर जी का गांव।।
व्याकुल भी मन हो रहा, तरसे दरस कुं नैन।
पग - पग कोसों नापती, हो राधे बैचैन।।
प्रेम और विश्वास की, राधे मोहन प्रीत।
प्रेम बिना फीके सभी, सुख साधन अरु गीत।।
बात प्रेम की प्रेम से, दीजो तुम समझाय।
प्रेम समझ में आय तब, प्रियतम मनको भाय।।
जब-जब राधे को हुआ, मोहन का दीदार।
तीरथ" सारे हो गये, बरसे नैनन प्यार।।
राधे मोहन प्रेम का, नहीं जगत में मोल।
फिर चाहे "चंद्रेश" जी, ले ओ तखड़ी तोल।।
स्वरचित मौलिक
लेखिका चन्द्रकांता सिवाल "चंद्रेश"
करौल बाग (दिल्ली)