वह नदी की ओर मोड़ना










यह कोई आठ-नौ वर्ष पहले कीबात हो गई। वरिष्ठ अध्यापिका पद पर पोस्टिंग हुई थी मेरी देहात में। आरंभ में बड़ा अजीब लगा किंतु जैसे -जैसे बच्चों के करीब होती गयी वैसे- वैसे ही मुझे स्कूल- बच्चे और देहात भाने लगा।

आज इतने वर्षों बाद पुरानी यादों की पोटली इसलिए खोलकर बैठ गयी क्योंकि कल ही मुझे वही कालूराम मिला। मुस्कुराकर उसने मेरे पैर छुए तो मैंने खुश होकर आशीष देते हुए पूछा, "और कैसा है कालूराम?" उसने कहा ठीक हूँ ।मेरी पुलिस में पोस्टिंग अब हनुमानगढ़ है। 

मैंने कहा," शरारतों में कमी आई कि बरकरार हैं तो हम दोनों मिलकर हँसने लगे। वह चला गया पर मुझे यादों में वही नौ साल पहले के देहात के स्कूल में खड़ा कर गया। 

पतला-सा लड़का एकदम काला। शायद इसलिए ही घरवालों ने उसका नाम कालूराम रखा होगा। रोज भागता हुआ सा प्रार्थना में आता था। मेरी नज़र सीधे उस पर चली जाती थी, क्योंकि वह चैन से न बैठता था प्रार्थना में भी। दसवीं कक्षा में था वह । वह हमेशा खिड़की की ओर बैठता था जहाँ से बहती नदी और खेत नज़र आते थे।

जब भी उसे किसी सवाल का जवाब नहीं आता तो न जाने वह कहां से" ओके मैडम!" कहना सीख गया था। कहता "ओके मैडम!" अभी बताऊं। पहले थे उराकूँ देखो।" देखो ! वहाँ दूर भैंस चर री एं । नदी बह री ऐ।नदी के जल में बगुले शान्त बैठर ध्यान लगारा एं और छपाक सू माछरी ल्यार , गपाक आपणा मुहड़ा मांय । कोई -कोई बगुला भैंस की पीठ माळे भी जार बैठर्या एं। ऊपर धौळा-धौळा बादला दीखर्या एं मैडम जी ! उसके कहते ही मेरा ध्यान उधर चला जाता जहाँ प्रकृति का मनोरम दृश्य दिखाई पड़ता, भैंस चर रही होतीं । पंछी कुछ खेत में तो कुछ उड़ रहे होते। नदी बह रही होती , मैं खो जाती थी कुछ पल को और कानों में आती कालूराम की आवाज़ वह फुसफुसाकर कहता बच्चों से "अब मैडम कूँ मोड़ दियो नदी की ओर। अब बचगौ मैं।

मुझे सब सुनाई देता था पर मैं भी रस लेती थी। कुछ पल बाद उसका कान पकड़कर फिर सवाल पूछती तो कहता मरगो मैडम जी! अभी बताऊं । फिर वह घुमाता मुझे और कल याद करने की बात कर हाथ जोड़ता तब छोड़ देती थी उसे। 

उसके बारे में जान गई थी कि वह बहुत से काम करते हुए भी पढ़ने आता है और होशियार भी है। बस नटखट है। सवेरे ही भेड़- बकरियां, भैंस लेकर जंगल में जाता। फिर वहाँ से स्कूल आता था । छुट्टी होते ही दौड़ता था सीधे जंगल में और फिर उन्हें घर ले जाता था। अपनी पढ़ाई वह भैंस , पत्थर, पेड़, जमीन पर लिख कर याद करता था। ये बच्चों से ही जाना मैंने। मुझे रोज उसके आने की उत्सुकता रहती जाने क्यों?

वह कहता था चिंता न करो मैडम जी ! मैं पास भी होऊंगौ और पुलिस में भर्ती भी होऊंगौ ।

इतने संघषों के बाद भी उसके चेहरे पर उदासी या शिकायत का नामोनिशान तक न रहता था। बस यही बात मुझे अच्छी लगी । 

मैं भी उसका ध्यान ज्यादा रखने लगी उसे समझाती रहती कि ऐसे पढ़ाकर।

 आज उसे वर्दी में देखा तो बहुत सुकून मिला मुझे। मुझे लगा उसकी और मेरी मेहनत सफल हो गयी। उसका "ओके मैडम! " बोलना मुझे सदा याद रहेगा और याद रहेगा वह नदी की ओर मुझे मोड़ना।

प्रस्तुति 'डाटला एक्सप्रेस'

            

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