तेरे बगैर सीने में बस दिल नहीं रहा ,
जा बेवफा कि मैं तेरे काबिल नहीं रहा ।
अश्कों ने मेरे घर को जमींदोज यूं किया ,
मैं रेत के भी आगे मुक़ाबिल नहीं रहा ।
करते थे रस्क मुझसे, तेरे वास्ते रकीब ;
जाते ही तेरे कोई भी कातिल नहीं रहा ।
पाया था तुझे पा के, जहां भर की दौलतें ,
खोया तुझे तो कुछ मुझे हासिल नहीं रहा ।
तुम खुश हो कितना तर्के-मरासिम को सोचकर ;
दुनियां में कोई इस तरह बे-दिल नहीं रहा ।
यूं दौरे-गमे-हादसे हर राह हैं बिखरे ,
लगता है अब कि कुछ कहीं मुश्किल नहीं रहा ।
क्या खूब फरेबों के साथ सिलसिला रहा ;
कस्ती ही रहा तेरा मैं साहिल नहीं रहा ।।
सुनील पांडेय/जौनपुर (उ०प्र०)
8115405665
मायने— जमींदोज=मिट्टी में मिलना, रस्क=घृणा, रकीब=दुश्मन, तर्के-मरासिम=संबंध बिच्छेद ।