जा बेवफा कि...

तेरे बगैर सीने में बस दिल नहीं रहा ,


जा बेवफा कि मैं तेरे काबिल नहीं रहा ।


 


अश्कों ने मेरे घर को जमींदोज यूं किया ,


मैं रेत के भी आगे मुक़ाबिल नहीं रहा ।


 


करते थे रस्क मुझसे, तेरे वास्ते रकीब ;


जाते ही तेरे कोई भी कातिल नहीं रहा ।


 


पाया था तुझे पा के, जहां भर की दौलतें ,


खोया तुझे तो कुछ मुझे हासिल नहीं रहा ।


 


तुम खुश हो कितना तर्के-मरासिम को सोचकर ;


दुनियां में कोई इस तरह बे-दिल नहीं रहा ।


 


यूं दौरे-गमे-हादसे हर राह हैं बिखरे ,


लगता है अब कि कुछ कहीं मुश्किल नहीं रहा ।


 


क्या खूब फरेबों के साथ सिलसिला रहा ;


कस्ती ही रहा तेरा मैं साहिल नहीं रहा ।।



       सुनील पांडेय/जौनपुर (उ०प्र०)


8115405665


 


मायने— जमींदोज=मिट्टी में मिलना, रस्क=घृणा, रकीब=दुश्मन, तर्के-मरासिम=संबंध बिच्छेद ।


 


Comments
Popular posts
विद्युत विभाग के एक जूनियर इंजीनियर की अथाह सम्पत्ति का हुआ खुलासा, सम्पत्ति मे करोड़ो की कोठी सहित कई लग्ज़री गाड़ियां हैं शामिल।
Image
वार्ड संख्या 64 से AIMIM प्रत्याशी फिरशाद चौधरी की जीत के बाद उनके समर्थकों द्वारा निकाली गई बाइक रैली मे काटा गया जबरदस्त हुड़दंग।
Image
अधिशासी अभियंता राजीव आर्य की तिकड़म बाजियां ऐसी जिसे देख शकुनी भी हो जाए नतमस्तक, इन्हीं तिकड़म बाजियों का सहारा ले एक बार फिर अपने चहेते लाइनमैन राजीव को बचाने की कर रहे कोशिश।
Image
'कुंभ' आस्था का महासागर
Image
प्रकाशित ख़बरों व प्रेषित शिकायतों से बौखलाये खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन के क्षेत्रीय अधिकारी आशीष गंगवार, भिन्न-भिन्न माध्यमों से बना रहे पत्रकार पर दबाव
Image