उजली किरण
जीवन
अनगिनत
धुंधली रेखाओं का
आसमां,
गहन घुप्प तिमिराकाश
करो पुरुषार्थ
कर्म रूपी बाण तान लो
दशाननी तमस को
चीर दो
आह्वान करती हैं
आती उजली आशाओं
की भोर किरण
मनुज
करता नित नर्तन
होता
प्राण वायु संचार
चलता
गतिज संसार...
ग़ज़ल
फिर मौत से मिलके आया हूँ ,
ज़िन्दगी तेरे दर पे आया हूँ।
अब तो पनाह दे मुझे,
सजदे में सिर भी झुकाया हूँ।
लौटा नहीं हूँ यूँ ही खाली ,
जीने की वजह साथ लाया हूँ।
ख़ता तेरी नहीं है ज़ानिब ,
अपनी ख़ता पे शरमाया हूँ।
आ चल हँस ले गा ले "चंद्रेश"
पेश तुझे चाँद -सितारे लाया हूँ।
- लेखिका चन्द्रकांता सिवाल "चन्द्रेश"
- करौल बाग (दिल्ली)