दलित लेखक संघ के तत्वाधान में वर्तमान परिप्रेक्ष्य में महिला सुरक्षा जागरूकता जनसभा व शांति मार्च


दिल्ली:-दलित लेखक संघ द्वारा भारत में दिनों दिन बढ़ रही स्त्रीदलित हिंसा को लेकर लेखक संघ कार्यकारिणी सदस्य श्रीमती सुनीता राजस्थानी जी ने स्त्री उत्पीड़न को ले कर स्त्री की भूमिका पर सवाल उठाते हुए कहा कि पितृसत्तात्मक समाज में एक पहलू यह भी है कि स्त्री खुद स्त्री के शोषण में जाने अनजाने सामंती वैचारिकी का शिकार होती है । एक लड़की को स्त्री बनाने की पूरी प्रक्रिया पितृसत्तात्मक समाज स्त्री के माध्यम से पूरी करता है । हमें इस ओर भी ध्यान देने की ज़रूरत है। क्यों कि स्त्री की लड़ाई जितनी घर के बाहर है उतनी ही घर के अंदर भी है । विरोधी घटनाओं के विरोध में 30 अक्टूबर 2020 को शाम 4 बजे 'जे' ब्लॉक मंगोल पूरी दिल्ली में स्थानीय निवासियों को अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाने के लिए प्रेरित किया और वहां की गलियों में लगभग एक किलोमीटर तक विरोध प्रदर्शन करते हुए शांति मार्च निकाला। जिसमें बड़ी तादाद में जनसमूह खासकर महिलाओं ने हिस्सा लिया। दलित लेखक संघ की अध्यक्षा डॉ पूनम तुषामड़ ने समकालीन सन्दर्भों में अपने विचार रखते हुए कहा कि दलेस का आधार समाज की विसंगतियों को दूर करना है ।यही खूबी इस संगठन की मजबूती का आधार है । इसी आधार पर दलेस की नींव रखी गई है । समाज में हो रहे हर तरह के अन्याय के विरुद्ध दलेस खड़ा है। पितृसत्तात्मक सोच से ग्रस्त समाज में आज महिलाओं का जीवन एक दासी जैसा हो गया है। क्या हमारा संविधान उन्हें खुलकर घूमने का अधिकार नही देता है?,,,,देता है। लेकिन समाज की पुरूष प्रधान सोच ने आजादी मिलने के बाद भी आधी आबादी को गुलामी का जीवन जीने के लिए विवश कर रखा है। हमें इस सोच के विरुद्ध हर मोर्चे पर लड़ना है ।महासचिव राजेन्द्र राज ने स्त्री


सशक्तिकरण पर ज़ोर देते हुए कहा कि यह लड़ाई स्त्री को अगली कतार में आ कर लड़नी होगी । अन्याय के विरुद्ध संगठित हुए बिना न तो संवैधानिक अधिकारों की रक्षा हो सकती है और न ही यह लड़ाई लड़ी जा सकती है । इसी क्रम में 'दलेस' के सरंक्षक हीरालाल राजस्थानी जी ने बुद्धमत के अनुसार बात को आगे बढाते हुए कहा कि हाथरस जैसी घटनाएं समाज की मानसिक विकृतियां हैं जो बालपन से ही पितृसत्ता के चलते पली बड़ी होती है। हमें इससे अलग अपने बच्चों को कुछ भी बनाने से पहले उन्हें एक अच्छा इंसान बनने की शिक्षा देनी होगी। अतिरिक्त छूट उन्हें अंधकार में धकेलती है और हाथरस जैसी घटनाएं घट जाती हैं? ये विकृतियों यही से ताकत जुटाती हैं? पुरूषवादी मानसिकता के खिलाफ महिलाओं को 'मदर इंडिया' बनने की ज़रूरत है। समाज की बेहतरी के लिए हम सब को आगे आकर इन अमानवीय ताकतों का सामना कर आवाज़ उठानी होगी। उपाध्यक्ष चन्द्रकान्ता सिवाल ने कहा कि हमें सबके सम्मान की रक्षा का दायित्व उठाना होगा। स्त्री उत्पीड़न सम्मान से जुड़ा हुआ सवाल है। हमें सम्मान की लड़ाई लड़नी होगी। स्वयम के साथ-साथ दूसरों के सम्मान की रक्षा भी हम सबका दायित्व है। इस दायित्व को उठाये बिना हम स्त्री विरोधी घटनाओं से अपने समाज को मुक्त नहीं कर सकते हैं। इसी संदर्भ में सचिव राजकुमारी ने कहा कि अन्याय की एक घटना ठंडी नही होती कि उसी सिलसिले में अगली घटना शुरू हो जाती है। घिनोनी हरकत के पीछे की मानसिकता क्या है ? ऐसी क्या वजह है जो इंसान को खूंखार बनाती है ? जब तक महिलाएं अपने लिए नहीं उठेंगी तब तक बात नहीं बनेंगी । असमानता की खाई को भरने के लिए स्त्री को आगे आने होगा । सह सचिव रवि निर्मला सिंह ने स्त्री उत्पीड़न को समाज में पसरे व्यक्तिवाद की एक विसंगति के रूप में देखने की ओर इशारा करते हुए सवाल उठाया कि ऐसा क्यों होता है कि अन्याय के विरुद्ध उठने वाली आवाज़ों को भिन्नाभिन्न षड्यंत्रों के चलते अकेला कर दिया जाता है ? अन्याय के विरुद्ध हमें पहली लड़ाई अपने अंदर पैर पसार चुके व्यक्तिवाद से लड़नी होगी तभी हम सामाजिक दायित्वों का निर्वहन कर सकेंगे और अन्याय के विरुद्ध एक जुट हो सकेंगे। सुनीता राजस्थानी ने अपने वक्तव्य में कहा कि अपने घरों में भी इन बलात्कारियों को पहचानकर सज़ा दिलाने में भी पीछे नहीं हटना चाहिए क्योंकि अक्सर ऐसे मामलों में देखा गया है स्त्री ही स्त्री को दबाती आई है। उन्होंने स्त्री उत्पीड़न को लेकर स्त्री की भूमिका पर सवाल उठाते हुए कहा कि पितृसत्तात्मक समाज में एक पहलू यह भी है कि स्त्री खुद स्त्री के शोषण में जाने अनजाने सामंती वैचारिकी का शिकार होती है । एक लड़की को स्त्री बनाने की पूरी प्रक्रिया पितृसत्तात्मक समाज स्त्री के माध्यम से पूरी करता है । हमें इस ओर भी ध्यान देने की ज़रूरत है । क्यों कि स्त्री की लड़ाई जितनी घर के बाहर है उतनी ही घर के अंदर भी है । महिलाओं को अपनी बेटियों को मजबूत बनाना है कमज़ोर नहीं। सामाजिक कार्यकर्ता पूजा ने कहा कि हर बार ऐसा क्यों होता है कि लड़कियों की सुरक्षा पर ही बात होती है ? इसका सीधा अर्थ यह हुआ कि हमारे समाज में लड़कियां सुरक्षित नहीं हैं। हमें तय करना होगा कि हम इस सामूहिक लड़ाई में किस ओर हैं ? तभी एक स्वस्थ समाज का निर्माण हो सकता है सचिव कुसुम सबलानिया ने भी इस कार्यक्रम में बढ़ चढ़ भागीदारी निभाई। अंत में संतोष सामरिया ने कहा कि इस तरह की मानवीय घटनाएं समाज पर कलंक की बनती जा रही है।


 


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