लेख
आज फिर दादा जी गुस्से में तमतमाये हुए हैं,, पता नहीं इन कम्बख्तों को कब अक्ल व बुद्धि आएगी, हर तरफ इतना हाहाकार मचा है,, मानव जीवन त्रस्त हो रहा है,, संसार की गति थम सी गई है,, पर इन नायलकों को देखो इन्हें सिर्फ राजनीति व समाजनीति स्वार्थनीति ही सूझ रही है...
दादा जी "चौधरी गंगाधर जी" अपनी 70 वर्ष की आयु में 40 वर्ष समाज सेवा को समर्पित करने के उपरांत समाज की मनुवादी व्यवस्था से दुःखी हो स्वयं को समाज से अलग थलग कर लिया था। ये की, ये कौम नहीं सुधरेगी इन्हें गुलामी की जिंदगी दूसरों की सेवा आवभगत की आदत पड़ चुकी है,,जब भी कोई इन्हें प्रगति सच्चाई के मार्ग की ओर ले जाना चाहता है,, ये उसी का सर कलम करने को तैयार हो जाते हैं,, ऐसे लोग समाज के लिए दीमक ही नहीं आने वाले भविष्य के लिए भी प्राणघातक है,, हालांकि वो किसी धर्म मान्यता के विरुद्ध नहीं वस्तुतः वो अनावश्यक की अंधभक्ति की अनुशंसा न करते हुए,, समाज विकास के महत्व पर जोर देते हैं।
चौधरी गंगाधर अपने आपको समाज की मनोदशा के आगे असहाय महसूस करते हुये अक्सर इसी तरह आग बबूला व्यथित हो जातें हैं
तभी "सुकन्या,, चौधरी जी की बड़की बहु चाय लेकर पहुंचती है,, बाबूजी लीजिये आपकी अदरक,लोंग,तुलसी की चाय और चौधरी जी चाय की सिप भरते हुए बड़बड़ाते क्या आप देख पा रहें हैं,, भविष्य का आईना सुकन्या जा चुकी थी,, और कमरे में फिर से असीमित समय का सन्नाटा पसर चुका था।
चन्द्रकांता सिवाल "चन्द्रेश"
उपप्रधान(दिल्ली प्रांतीय रैगर पंचायत पंजी.)
करौल बाग (दिल्ली)