चाहें तुम कुछ भी कर डालो
अब रिश्तों में जान नही है ।
अगल-बगल रहने वालों की
बिल्कुल ही पहिचान नही है ।।
गाँव छोड़कर शहर आ गए
खुद को सभ्य कहाने को ।
इतने सभ्य हो गए बिल्कुल
समय नहीं घर जाने को ।।
अम्मा बप्पा तरस रहे हैं
पर भइया को ध्यान नहीं है । चाहें तुम कुछ -------------
दूर -दूर गाँवों से आकर
बस्ती एक बसाई है ।
शहर सभ्यता के संवाहक
दुनिया कहती आई है ।।
नाम ,पते ,पदवी सब कुछ पर
नेक एक इंशान नहीं है । चाहें तुम कुछ---------------
भाव शून्य संवेग हो गये
कौन किसी का होता है ।
रिश्ते पीछे छूट गए पर
पैसा आगे होता है ।।
अगर ज़रूरत पड़ जाये तो
कोई भी धनवान नहीं है । चाहें तुम कुछ------------
एकाकी जीवन चर्या ने
नहीं कहीं का छोड़ा है ।
रिश्तों के अविरल प्रवाह को
गलत दिशा में मोड़ा है ।।
परम्परायें शिथिल सभी पर
नूतन अनुसंधान नही है । चाहें तुम कुछ---------------
बूढ़ी पीढ़ी छुपी घरों में
रह-रह कर अकुलाती है ।
जैसे दबी कीच में मछली
बिल्कुल चैन न पाती है ।।
पंथ प्रदर्शक यही हमारे
लेकिन अब सम्मान नहीं है । चाहें तुम कुछ--------------
अनिल कुमार पाण्डेय
प्रदेश अध्यक्ष-उगता भारत प्रबुद्व जन मंच
ए-265 आई टी आई संचार विहार , मनकापुर
गोण्डा (उ प्र) शब्ददूत-9198557973