(साहित्य) एक एहसास

 


कभी जो कह ना पाऊं मैं, तो समझ लेना तुम।
कभी जो बहक जाऊं मैं, तो संभल लेना तुम।।


वक़्त भर भी दे ज़ख्मों से, झोली कभी जो मेरी
जो आकर बैठूं पास तेरे, मरहम हो जाना तुम।।


बेबसी में छूट भी जाए, साथ कभी जो तेरा।
दूँ जो कभी आवाज़, हमदम हो जाना तुम।।


ये लाज़िम है कि छोड़ दें, पत्ते भी साथ दरख्तों का।
गर छोड़ दे साख परिंदे भी, उपवन हो जाना तुम।।


थिरक उठतें हैं लब मेरे, नग़मा ए वफ़ा के नाम से।
सिल जायें कभी जो होंठ मेरे, सरगम हो जाना तुम।।


वाज़िब है के बरसे सावन, दरिया की प्यास बुझाने को
जब प्यास बुझे ना सावन से, शबनम हो जाना तुम।।
----------------------------------------



सुनील पंवार रावतसर (राज.)
स्वतंत्र युवा लेखक


Comments
Popular posts
मुख्य अभियंता मुकेश मित्तल एक्शन मे, भ्रष्‍ट लाइन मैन उदय प्रकाश को हटाने एवं अवर अभियंता के खिलाफ विभागीय कार्यवाही के दिये आदेश
Image
दादर (अलवर) की बच्ची किरण कौर की पेंटिंग जापान की सबसे उत्कृष्ट पत्रिका "हिंदी की गूंज" का कवर पृष्ठ बनी।
Image
साहित्य के हिमालय से प्रवाहित दुग्ध धवल नदी-सी हैं, डॉ प्रभा पंत।
Image
गुजरा बचपन न लौटे कभी
Image
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की छत्रछाया में अवैध फैक्ट्रियों के गढ़ गगन विहार कॉलोनी में हरेराम नामक व्यक्ति द्वारा पीतल ढलाई की अवैध फैक्ट्री का संचालन धड़ल्ले से।
Image