(साहित्य)  कुछ तो बक़ाया किसी जन्म का था: राज राजेश्वर


कुछ  तो  बक़ाया किसी जन्म का था-
जो तुम तक मुझे खींच लाया है प्यारी,
कहाँ  तुम,कहाँ हम,कहाँ लंबी दुनिया-
मगर  तेरी  सूरत  लगी  मुझको न्यारी।


शातिर समय के सितम को भी सहकर-
सलामत   है  तुममें  अभी  भी  खुमारी,
पकड़  लूँ  तेरा  हाथ  बढ़  करके  आगे-
छुटे   चाहे  दुनिया  ये  सारी  की सारी।


यह देह तो.............आ गई दूर तुमसे-
मगर मन में सूरत.......तेरी ही है तारी,
हल्का  हृदय  जो हुआ तुमसे मिलकर-
बिछड़ कर वही हो गया कितना भारी।


दिल में बसी...... ख़ूबसूरत सी सूरत-
तेरी  आज  हमने जो जमकर निहारी,
तो डर सा गया कि नज़र लग न जाये-
कहीं तेरे चेहरे को..... क़ाफ़िर हमारी।


समर्पित   ख़ुदा   पे   या   महबूब  पे  हों-
ये नज़्में मेरी........... आयतों पे हैं भारी,
हक़ीक़त भी इस 'राज' की जान लो तुम-
खुले में है काफ़िर........ छुपे में है क़ारी।

मायने: क़ाफ़िर- नास्तिक/बेदीन क़ारी- वो क़ुर'आन का ज्ञाता जिसे पूरी ज़ुबानी याद हो/धार्मिक/आस्तिक 




'राज' राजेश्वर
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(रचनाकाल- 2013)


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