कुछ तो बक़ाया किसी जन्म का था-
जो तुम तक मुझे खींच लाया है प्यारी,
कहाँ तुम,कहाँ हम,कहाँ लंबी दुनिया-
मगर तेरी सूरत लगी मुझको न्यारी।
शातिर समय के सितम को भी सहकर-
सलामत है तुममें अभी भी खुमारी,
पकड़ लूँ तेरा हाथ बढ़ करके आगे-
छुटे चाहे दुनिया ये सारी की सारी।
यह देह तो.............आ गई दूर तुमसे-
मगर मन में सूरत.......तेरी ही है तारी,
हल्का हृदय जो हुआ तुमसे मिलकर-
बिछड़ कर वही हो गया कितना भारी।
दिल में बसी...... ख़ूबसूरत सी सूरत-
तेरी आज हमने जो जमकर निहारी,
तो डर सा गया कि नज़र लग न जाये-
कहीं तेरे चेहरे को..... क़ाफ़िर हमारी।
समर्पित ख़ुदा पे या महबूब पे हों-
ये नज़्में मेरी........... आयतों पे हैं भारी,
हक़ीक़त भी इस 'राज' की जान लो तुम-
खुले में है काफ़िर........ छुपे में है क़ारी।
मायने: क़ाफ़िर- नास्तिक/बेदीन क़ारी- वो क़ुर'आन का ज्ञाता जिसे पूरी ज़ुबानी याद हो/धार्मिक/आस्तिक
'राज' राजेश्वर
8800201131_9540276160
(रचनाकाल- 2013)