पंडित सुरेश नीरव
सारा माल जाली है
वो अब भी दूसरों की भीख पर करता जुगाली है-
न उसके पास आटा है,न लोटा है, न थाली है।
वो पॉकेटमार है,अपने हुनर से खूब वाक़िफ है-
कि उसने दूसरे के माल से दूकां सजा ली है।
उसे हर हाल में मोटा लिफाफा चाहिए यारो-
लतीफ़ों को सुनाकर,साख अब उसने बना ली है।
वो पानी की जगह अब जूस पीता है,कभी व्हिस्की-
कभी टीवी का मारा था कि अब चेहरे पे लाली है।
उसे साहित्य से मतलब-गरज़ कुछ भी नहीं लेकिन-
कटिंग औ' पेस्टिंग करके जमीं सर पर उठा ली है।
वो श्रोताओं से अक्सर भीख भी तो मांग लेता है-
मदारी है वही जो शक़्ल से लगता मवाली है।
डकैती डाल दी उसने चुनिंदा चंद ग़ज़लों पर-
सुनाया मंच पर उसने वो सारा माल जाली है।
निराला युग के कवियों की झुकी गर्दन ये कहती है-
कि 'नीरव' आजकल मंचों ने क्या सूरत बना ली है!!
डाटला एक्सप्रेस
संपादक:राजेश्वर राय "दयानिधि"
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