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मेरे एक रुकने से क्या होने वाला?
है दुनिया सफ़र में, कहाँ ये थमी है
इसे क्या कहूँ, क्या कहूँ ख़ुद को मित्रों!
ज़माना है बेहतर, या मुझमें कमी है (1)
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मेरा वक़्त था मैंने जमकर के पीया
तेरा वक़्त है तू भी पी ले शराबी
बेघर हूँ, बेदर हूँ मैं आज जैसे
यक़ीनी है तेरी भी ख़ानाख़राबी (2)
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मौत-ओ-तक़दीर से डरकर न ख़ौफ़ में जीओ
मेहनती हो तो फिर, तक़दीर क्या बिगाड़ेगी
आये हो इस जहां में, तो यक़ीनन जाना है
ज़िन्दगी बाक़ी है तो, मौत क्या उखाड़ेगी (3)
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तुम्हीं जब नहीं हो मेरी........अंजुमन में
तो किस काम का ये मोहब्बत का नग़मा
मुझे कितने मनहूस...........ये लग रहे हैं
बहारों की महफ़िल...सितारों का मजमा (4)
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अपनी नाक़ाम ज़िन्दगी पे क्या सफ़ाई दूँ
रिस्क के रस की मैंने भी तो चुस्कियां ली थीं
वो तो तक़दीर थी जो मोड़ गयी मुँह मुझसे
बाख़ुदा कोशिशें हमने भी कम नहीं की थीं (5)
अभी दुश्मनी कुछ निभानी है बाक़ी
तो फिर दोस्ती तुमसे क्यूँ तोड़ दूँ मैं,
तड़पते हुए देखना भी है तुमको
तो मुँह कैसे तुमसे भला मोड़ लूँ मैं (6)
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ख़ुदा ने मुझको चुना है तेरे सुकूं के लिए
ये मेरा काम है न कोई बेजा हरकत है
मेरे मरीज़ माफ़ करना मैं तबीब तेरा
तेरी बीमारियों में ही हमारी बरकत है (7)
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कोई मुफ़लिसी चाहे जैसी भी आई
शहंशा' रहे...........हम पियादे नहीं
बहुत दर-ब-दर हो के....जीने पे भी
इलाके तो बदले...........इरादे नहीं (8)
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शिकस्त से ही हमने फ़तह का नुस्ख़ा पाया
ग़रीब हो के ही हमने अमीरी पायी है
ख़ज़ाने में मेरे ग़ज़लें हैं, नज़्में हैं, रुबाई है
मेरी बेरोज़गारी की यही सच्ची कमाई है (9)
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कभी भरती है ये आहें, कभी ये गुनगुनाती है
शिकस्तों पर कभी है कोसती, ताने सुनाती है
कभी जीने से जी बौरा के जो मरने को बोले तो
हज़ारों जान से मेरी ग़ज़ल सीने लगाती है (10)
कई किरदार मुझमें करवटें.......लेते ही रहते हैं
कभी मैं शाह होता हूँ, कभी शासित भी होता हूँ
उरूज़ों औ' ज़वालों का यहाँ है सिलसिला जारी
कभी वरदान देता हूँ, कभी शापित भी होता हूँ (11)
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ज़ुल्फ़ों का उनके जबसे वो असीर हो गया
कहते हैं 'राज' तब से ज़ौक - मीर हो गया
हर बात में अब उसके शायरी है टपकती
पहले का छिछोरा बड़ा गंभीर हो गया (12)
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बड़े ही जुनूं से चला कारवां था
मगर आज मंज़िल कहीं, मैं कहीं हूँ
पलट करके जब देखता हूँ सफ़र तो
जहाँ से चला था, वहाँ भी नहीं हूँ (13)
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बताना है कुछ तो हक़ीक़त बयां कर
ये झूठी दलीलें कहाँ मानती है
दुनिया से तू क्या छुपाता है नादां
ये तुमसे भी ज़्यादा, तुम्हें जानती है (14)
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फ़क़ीरों में शामिल हूँ, पर फ़ख़्र ये है
मेरे गीत - ग़ज़लों की आवाज़ गूँजी
नहीं पास है कुछ सिवा इनके मेरे
यही मेरी पूजा.........यही मेरी पूँजी (15)
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राज राजेश्वर
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('मुसाफ़िर' - ग़ज़ल संग्रह से)
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