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गाज़ियाबाद (साहिबाबाद): दैनिक अखबार ट्रू टाइम्स के क्राइम रिपोर्टर पंकज तोमर पर विद्युत विभाग के भ्रष्टाचार की निरंतर खबरें प्रकाशित करने की वजह से गत दिनों अधिशासी अभियंता डिवीजन 04,साहिबाबाद, ग़ाज़ियाबाद राजीव आर्य के उकसावे पर कोयल एन्क्लेव विद्युत उप-गृह के 06 लाइनमैनों द्वारा जानलेवा हमला किया गया। मामला ये है कि दिनांक 16-10-19, बुधवार की शाम लगभग समय 4:30 बजे के आस-पास संवाददाता पंकज तोमर को एक खबर मिली की गगन विहार मेन 25 फुटा रोड गली नंबर 21 (नियर- पार्षद चतर सिंह ऑफिस) के पास बिजली विभाग के कुछ लाइनमैन बिना अधिकारियों के संज्ञान में लाए भारी लेन-देन करके 200 मीटर एबीसी तार व खंबे को वहां से हटा रहे हैं, जब उनके द्वारा वहां पर जाकर देखा गया तो यह घटना बिल्कुल सत्य थी जिसमें बिजली विभाग के सरकारी लाइनमैन त्रिलोक चंद, राजीव, विकास, कपिल, जीतू, अशोक द्वारा तार शिफ्टिंग और खंबे को उखाड़ने का कार्य चल रहा था, जिसकी पुष्टि के लिए उनके द्वारा अधिकारियों से फोन पर पूछा गया तो एक्शन राजीव आर्य और जेई निरंजन मौर्या ने इस काम को अपने संज्ञान में होने से साफ मना कर दिया और कहने लगे कि हम इस बारे में अभी उन लोगों से पूछते हैं, जब कुछ देर बाद दोबारा अधिशासी अभियंता राजीव आर्य को फोन किया गया तो उन्होंने कहा कि इस काम को हमने अभी रुकवा दिया है। परंतु जब संवाददाता श्री तोमर ने उनसे कहा कि सर यह काम तो अभी भी किया जा रहा है तो वह कहने लगे कि मैं वीडियो कॉलिंग कर रहा हूँ आप मुझे दिखा दो, उन्होंने जब वीडियो कॉलिंग की तो उन्हें पूरा घटनाक्रम वीडियो कॉलिंग के जरिए दिखाया गया, तो कहने लगे कि मैं अभी 10 मिनट में मौके पर पहुंचे रहा हूँ और मैंने जेई को भी मौके पर बुलाया है। 


कुछ देर बाद एक्स. ईएन. ने फोन कर कहा कि मुझे वहां की लोकेशन भेज दो तो पत्रकार के द्वारा बताया गया कि कोयल एनक्लेव बिजली घर के बैक साइड में यह कार्य चल रहा है। जैसे ही अधिशासी अभियंता अपनी बोलेरो गाड़ी से मौके पर पहुंचे और गाड़ी से उतरे तो पत्रकार उनके पास पहुंचा और उन्हें मामले से अवगत कराने लगा तो इन लाइनमैनों ने पीछे से घेरकर हमला कर दिया और कहने लगे कि अगर हमारे बिजली विभाग के खिलाफ आज के बाद तूने कभी खबर छापी तो ऐसे ही तुझे मारेंगे। जिसमें पत्रकार पंकज तोमर के सर, छाती व पैर में काफी गंभीर चोटें आईं। आस-पास के लोग शोर-शराबा सुनकर वहां पर पहुंचे और जैसे तैसे कर पत्रकार को उन लोगों से बचाया, और वे लोग वहां से तुरंत फरार हो गए। उस घटनाक्रम का कुछ लोगों ने वीडियो भी अपने मोबाइल में बना लिया। जब अधिशासी अभियंता से इस बारे में पूछा गया कि आपके होते हुए इन लोगों ने हमला क्यों कर दिया तो उनका कहना था कि आप लोग इनका इलाज तुरंत कराइए क्योंकि इनके सर से ब्लड बहुत ज्यादा बह रहा है, और फोन पर बात करते हुए बेरुखी से चले गये। जिसकी वीडियो रिकॉर्डिंग उपलब्ध है। वैसे तो उस दिन अधिशासी अभियंता खुद इस सारे मामले को संज्ञान में न होना बता रहे हैं थे और कह रहे थे कि हमारे ये अधिकारी, कर्मचारी लोग छोटी से छोटी बात को बताने के लिए मेरे पास एप्लीकेशन भेजते हैं, परंतु यह इतना बड़ा कार्य कर रहे थे तो इसके बारे में विभाग और मुझे क्यों नहीं बताया गया ताज्जुब है। लेकिन अब अपने लाइनमैनों को बचाने के लिए वे इस बात से मुकरते नजर आ रहे हैं और कह रहे हैं कि मामला मेरे संज्ञान में था। वैसे इसका प्रमाण मौजूद है। 


नहीं हुई है अब तक कोई गिरफ्तारी
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उस दिन मौके पर पहुंची पुलिस ने सारे घटनाक्रम की जानकारी लेते हुए पीड़ित पत्रकार को एमएमजी हॉस्पिटल गाज़ियाबाद में भर्ती कराया और मेडिकल कराने के बाद उपर्युक्त 06 लोगों के खिलाफ अगले दिन 17/10/2019 को धारा 307, 147 एवं 327 के अन्तर्गत मुकदमा पंजीकृत कर दिया गया और विवेचना चौकी इंचार्ज तुलसी निकेतन थाना साहिबाबाद सलाउद्दीन को दे दी गयी। परन्तु एक सप्ताह उपरांत भी किसी अभियुक्त की गिरफ्तारी नहीं की जा सकी है। अब यहाँ तक थ्योरी बनाई जा रही है कि एक्स-रे में तो कुछ खास आया नहीं है, अब इन्हें कौन समझाये कि यदि किसी ने किसी पर जान लेने के इरादे से अगर गोली चलाई और वह शख्स बाल-बाल बच गया तो क्या 'अटेम्पट टू मर्डर' का केस न लगाकर उस पीड़ित से कहा जायेगा कि जाओ पहले ठीक से गोली मरवाकर आओ तब तुम्हारा मुकदमा दर्ज करेंगे। पुलिस की इन्हीं हरकतों का नतीजा है कि कठुआ (कश्मीर) रेप मामले में अदालत को जाँच करनेवाली एसआईटी पर ही एफआईआर दर्ज करने का आदेश देना पड़ा है जो कई बेगुनाहों को फँसाने की दोषी है। दरअसल हमारे यहाँ की जो न्याय व्यवस्था है उसके तहत पुलिस जब चाहे किसी को बिना मामले के उठा ले और ना चाहे तो बड़े से बड़े चार्ज में भी अभियुक्त को छुट्टा घूमने दे। इस मामले में भी कुछ ऐसा ही होता प्रतीत हो रहा है। अभियुक्तों के संरक्षक लगातार फोन करके पीड़ित पर दबाव बना रहे हैं, धमकियां दे रहे हैं और पुलिस है कि शान्त बैठी है। वर्तमान परिस्थितियों में जहां न्याय शुद्ध रूप से एक व्यापारिक उपक्रम और बहुत से लोगों के लाभ एवं वर्चस्व स्थापित करने का अवसर है ठीक उसी परंपरा के तहत इस मामले में भी नैसर्गिक न्याय मिलने की आस धूमिल होती दिख रही है। वर्तमान स्थिति-परिस्थिति को देखते हुए इस मामले में जिन तीन बातों के निश्चित घटित होने आशंका दिख रही है वो ये हैं...... (1)-अभियुक्तों में से कुछ नाम अवश्य हटाये जायेंगे, क्योंकि वो काफी प्रभावशाली व जरायम पृष्ठभूमि से आते हैं, उनके मामले में दबाव और सिफारिश अपना असर जरूर दिखाएगी जिसके परिणामस्वरूप केस कमजोर किया जायेगा, दफ़ा 307 हटाने की सिफारिश की जायेगी। (2)-किसी भी अभियुक्त की गिरफ्तारी न होने की आशंका के साथ-साथ पीड़ित पंकज तोमर पर एक और हमले का रास्ता साफ कर दिया जायेगा क्योंकि अभियुक्तों में कानून के खौफ़ नाम की चीज नहीं रह जायेगी। (3)-चूंकि अभियुक्तों की तरफ से पीड़ित पंकज तोमर के नाम एनसीआर कटवाई गयी है, सो उसका सहारा लेकर अभियुक्तों से भारी लेन-देन करके, सिफारिश एवं दबाव के बाद पुलिस द्वारा क्रास केस बनाने, जेल भेजने का डर दिखाकर पंकज तोमर से मामला वापस लेने का दबाव बनाया जायेगा। अब इन आशंकाओं के आलोक में क्या न्याय होता है देखना दिलचस्प होगा। 


वैसे जिले के सभी पत्रकारों के अंदर इस बात को लेकर काफी आक्रोश है, क्योंकि आए दिन हो रहे पत्रकारों पर हमलों की वजह से पत्रकारिता सही से नहीं हो पा रही है। अब देखने वाली बात यह होगी कि योगी सरकार पत्रकारों के हित में क्या कार्य आगे करेगी या ऐसे ही रोजाना पत्रकार हमलों का शिकार होते रहेंगे। वैसे तो पत्रकारों ने कई बार पहले भी अपनी जान को खतरा बताते हुए मुख्यमंत्री और जिले के कप्तान से  लिखित में शिकायतें की हैं और करते भी रहते हैं परंतु आज तक उनको कभी भी सुरक्षा मुहैया नहीं कराई गई, इसका मुख्य कारण ये है कि पुलिस खुद पत्रकारों से ख़ार खाये रहती है क्योंकि उसकी भी दुकानदारी और कारनामों को भी तो आखिर यही पत्रकार बन्धु ही उजागर करते रहते हैं। अब कोई किसी की बनी बनाई सल्तनत (उगाही सिंडीकेट) में पलीता लगाएगा तो भला वो उसके प्रति कौन सी मोहब्बत, नेक ख़्याल और हमदर्दी रखेगा।


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