(कहानी) इश्क़ ऑनलाइन

 



कहानीकार: सुनील पंवार


प्रस्तुति: डाटला एक्सप्रेस/06.10.19/दिल्ली/व्हाट्सप- 9540276160


दो साल पहले आनन्द अनन्या को लेकर केरल आ गया। आनन्द का अक्सर  बिज़नेस के सिलसिले में देश के कोने कोने में जाना लगा ही रहता था,पर अबकी बार उसने परिवार को भी अपने साथ रखने का निर्णय लिया। आनन्द अपने काम में अतिव्यस्तता के कारण अनन्या को पर्याप्त समय ही नहीं दे पा रहा था। अनन्या बहुत अकेलापन महसूस कर रही थी। बच्चों के स्कूल और आनन्द के ऑफिस जाने के बाद इतना बड़ा घर उसे काटने को दौड़ता। न कोई दोस्त, न रिश्तेदार! और तो और वो यहाँ की भाषा से भी अंजान थीं जो लोगों को दोस्त बनाने में सबसे बड़ी बाधा थी। उसका हर एक दिन पहाड़ जैसा गुजर रहा था। ऐसे दौर में अगर उसका कोई साथी था, तो वो था.. इंटरनेट! उसका अधिकांश समय अपने फोन और लैपटॉप में ही गुजरता। इसके अलावा उसके पास कोई और चारा भी तो नहीं था। सोशल मीडिया और ऑनलाइन वीडियो गेम ही उसकी जिंदगी का अहम हिस्सा बन चुके थे। वो अपने खाली समय को भरने के लिए ज्यादातरऑनलाइन गेम से ही जुड़ी रहती। "क्वीन....!" यही नाम था उस गेम का। इसमें एक राजकुमार, एक राजकुमारी, महल, पहाड़, झरनें, जंगल, राजा, रानी और शत्रु जैसे सभी पात्र थे...! सभी पात्र ऑनलाइन होते और अपना किरदार निभाते। वे सभी एक दूसरे से संदेश पर बात कर सकते थे और रणनीति बना सकते थे। ये एक ऐसा काल्पनिक गेम था जो हर पात्र को एक काल्पनिक दुनियां की सैर कराता था। इसका मक़सद हर स्थिति में राजकुमारी को राजकुमार से मिलाना था।
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पिछले कुछ दिनों से उसका व्यवहार बहुत बदल चुका था। वो हर वक्त सिर्फ गेम में ही उलझी रहती। उसे न बच्चों की परवाह थी न घर की..वो हर वक़्त एक काल्पनिक दुनियां में रहती, जहाँ उसे सिर्फ और सिर्फ़ अपने राजकुमार से मिलने की चाहत सताती रहती। सैमुअल..नाम था उसका! वो घण्टों उससे चैट करती..वो उससे मिलना चाहती थी पर वो कभी मिलने को राजी नहीं हुआ, वो जब कभी भी वीडियो कॉल करती वो सामने से डिस्कनेक्ट कर देता। सिर्फ संदेश पर ही बात करता! उसकी काल्पनिक दुनियां ने कब उसके वास्तविक जीवन का रूप ले लिया उसे पता ही नहीं चला। ज्यों ज्यों समय की धार बह रही थीं; त्यों त्यों उसमें बदलाव आते जा रहे थे। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे किसी ने सम्मोहन किया हो..! अब तो बच्चों के साथ भी उसका बर्ताव बड़ा अजीब था। वो उन्हें अपने फोन को छूने तक नही देती, और अगर वो ऐसा करते तो वो उन्हें मारने से भी नही हिचकिचाती। अपने ऑनलाइन जीवन को ही वो हक़ीक़त समझ बैठी। आनन्द भी उसके बर्ताव से अनभिज्ञ नहीं था। अनन्या ने सभी को इग्नोर करना शुरू कर दिया, उसके लिए तो अपना गेम और राजकुमार ही सब कुछ था। आनन्द ने उसे कई बार समझाने का प्रयास किया पर उसके व्यवहार में रत्तीभर भी फ़र्क नही आया। यही वो दौर था जब उसने अपनी बर्बादी की ओर कदम बढ़ाने का आगाज़ कर दिया था।
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उस रात भी वो देर रात तक सैम्युल से चैट करती रही। अनन्या ने उसे अपने बारे में सब कुछ बताया। वो उसकी आवाज़ सुनने को बेताब थी, वो उसे बार बार कॉल करने का प्रयास करती रही और वो हर बार कॉल डिस्कनेक्ट करता रहा। उसने साफकर दिया था कि वो किसी शादीशुदा महिला को अपनी जिंदगी में जगह नहीं दे सकता, पर वो कहाँ मानने वाली थी। उस पर तो जैसे सैम्युल का जादू सिर चढ़कर बोल रहा था।  सैमुअल उसे न तो मिलना चाहता था और न ही बात करना। वो तो  उसे सिर्फ गेम तक ही सीमित रखना चाहता था पर वो थी कि सब दायरों को तोड़ना चाहती थी। उसे न दिन का ख़्याल था न रात का...वो अपनी दुनियां में इस कदर खो चुकी थीं कि शायद अब लौटना मुमकीन नहीं था। 
"तुम मुझसे बात क्यों नहीं करते सैम्युल?" उसने टेक्स्ट किया।
"तुम्हारी ज़िन्दगी में पहले से कोई है; ये सही नहीं होगा।" सैम्युल ने रिप्लाई दिया।
"अगर मेरी लाइफ में कोई नहीं होता तो?"
"तो शायद.... मैं हाँ कर देता,पर अब तुम्हारी लाइफ है, बच्चें है।" 
"अब मेरी ज़िन्दगी में सिर्फ तुम हो,और कोई नहीं।"
"पागल मत बनो! अपने परिवार में ध्यान लगाओ।"
अगले ही पल वो ऑफलाइन हो गया। उसका इस तरह ऑफलाइन होना अनन्या को और भी परेशान कर गया। वो बहुत तनाव महसूस कर रही थी कि तभी दोनों बच्चे अनन्या के कमरे में आ गए।
"मम्मा.. हमें नींद नहीं आ रही.. पापा भी काम लगे हैं; प्लीज़ हमें सूला दो ना!" प्राची ने बड़ी मासूमियत से रिक्वेस्ट की।
"नहीं... तुम लोग सो जाओ। मुझे अभी नहीं सोना।"  उसने बच्चों को टालने की कोशिश की।
"अब सो जाओ न प्लीज़ मम्मा.. बहुत रात हो गई है।..अब फोन छोड़ दो प्लीज़!" प्राची ने अनन्या से फोन लेना चाहा, और जैसे ही उसने फोन को हाथ लगाया अनन्या ने एक जोरदार थप्पड़ उसकी गाल पर रशिद कर दिया। बच्चों के रोने की आवाज़ सुन आनन्द भी वहाँ दौड़ आया। उसे समझते तनिक भी देर नहीं लगी कि क्या हुआ था।
"आज फिर तुमने बच्चों को मारा?...कौनसा पहाड़ टूट पड़ा था तुम्हारे फोन को हाथ लगाने से?...एक ही दिन में जान क्यों नहीं ले लेती इनकी...! तुम जैसी बेगैरत को ज़रा भी अंदाजा है, किस राह पर हो तुम?" वो गुस्से से कांप रहा था, आज उसका पारा सातवें आसमान पर था। घर का माहौल पूरी तरह से बिगड़ चुका था, एक कौने में खड़े दोनों बच्चे सुबक रहे थे और वो चुपचाप एकटक शून्य में झाँके, सब कुछ सुन रही थी। कुछ ही पलों में महल जैसे आलीशान घर में कब्र जैसा सन्नाटा पसर गया.....! अब चारों ओर सिर्फ सन्नाटे की ही हुकूमत थी। सब शान्त.....! ठंडी रात ने वातावरण को भयावह बना दिया था, सन्नाटा ऐसा कि धड़कनों की आवाज़ भी साफ़ सुनाई दे रही थीं।
"मुझे तलाक चाहिए।" सन्नाटे को चीरती हुई उसकी शांत व धीमी आवाज़ ने पूरे वातावरण को हिलाकर रख दिया। वो पलटा और उसे अपलक घूरने लगा, ऐसा लग रहा था जैसे उसने कोई विचित्र बात सुन ली हो। "ना तुम्हारा पैसा चाहिए और ना ही तुम्हारे बच्चे.......! सिर्फ़..... तलाक...आज़ादी!" वो उसकी आँखों में एकटक झाँकते हुए निडरता से बोलती जा रही थी।।
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"मैंने तुम्हें कितनी बार कहा कि मैं नहीं मिल सकता।" उसका लहज़ा सख्त था। 
"पर अब क्यों नहीं?... मैंने अपना घर, पति,और बच्चे सब कुछ छोड़ दिया है! अब क्यों नहीं?"
"ये तुमनें क्या किया?..पागल हो तुम?" वो बिफर पड़ा। ये सब तुमसे मिलने के लिए किया है..
अगर तुम मुझसे नहीं मिले तो मैं अपनी जान दे दूंगी...इसके अलावा मेरे पास कोई उपाय नहीं है। प्लीज़.. सैमुअल... प्लीज़!" 
"ठीक है...लेकिन!" 
"लेकिन क्या…?"
"मुझसे एक बार मिलने के बाद तुम फिर कभी मिलने की ज़िद नहीं करोगी.. प्लीज़! इसके बाद मैं तुमसे कभी नहीं मिलूँगा।"
"ठीक है...अगर तुम्हारी यही शर्त है तो मुझे मंजूर है। मैं एक बार अपने राजकुमार से मिलना चाहती हूँ... सिर्फ़ एक बार!" 
"ठीक है कल रात नौ बजे..क्लब्24 में...लेकिन याद रहे फर्स्ट एंड लास्ट! ओके?" वो फिर ऑफलाइन हो गया। उसके लिए वो रात किसी नागिन से कम ना थी जो लम्बी थी,काली थी और डस भी रही थी। 
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उसकी एक नज़र फोन स्क्रीन पर तो दूसरी दीवार पर टँगी घड़ी पर थी। ऐसा लग रहा था जैसे वक़्त ठहर गया था.. वो उसके ऑनलाइन होने का इंतजार कर रही थीं... घड़ी ने रेंगते रेंगते आठ बजा ही डाले पर वो अभी भी ऑनलाइन नहीं आया। वो हैरान..परेशान..! उफ़्फ़! ये इंतज़ार भी ना..! अचानक मैसेज ट्यून ने उसके चेहरे पर खुशी का भाव उकेर दिया।
"कहाँ हो?...आ जाओ। मैं तुम्हारा वैट कर रहा हूँ।"
संदेश पाते ही उसने गाड़ी को तेज़ रफ़्तार से क्लब्24 की दिशा में दौड़ा दिया। गन्तव्य पर पहुंच कर उसने फिर टेक्स्ट किया।
"मैं क्लब् में हूँ।"
"ठीक है.. ऊपर तीसरी मंज़िल के रूम नम्बर 404 में आ जाओ।"
वो तेज़ तेज़ कदमों से सीढियां चढ़ती गई, वो जल्द ही रूम न. 404 के सामने खड़ी थी। 
"मैं रूम के सामने हूँ।" 
"दरवाजा खुला है अन्दर आ जाओ।" उसने दरवाजे को अंदर की तरफ धकेला और अन्दर प्रवेश कर गई। बहुत बड़ा रूम जिसमें मंद मंद रोशनी बिखरी पड़ी थीं। उसने चारों ओर अपनी नज़रे घुमाई पर कोई प्रतिक्रिया नहीं... पूरी तरह सन्नाटा...! अचानक से बजी मैसेज ट्यून की आवाज़ ने कमरे में पसरे सन्नाटे का क़त्ल कर दिया। 
"ऊपर आ जाओ..।" वो फिर सीढ़ियों की और बढ़ने लगी.. उसका दिल जोरों से धड़क रहा था। वो छत पर पहुँच गई। रंगीन मध्यम रोशनी ने पूरी छत को गुलज़ार कर रखा था, हवा में सफ़ेद पर्दे लहरा रहे थे,और पूरे शहर का नज़ारा तारामंडल की तरह आभा बरसा रहा था। पर... किसी की भी मौजूदगी का नहीं होना उसको परेशान किये जा रहा था। उसने अपने फोन से मैसेज टाइप करना शुरू कर दिया। "अब आ भी जाओ सामने... प्लीज़! बस.... अब और नहीं... प्लीज़!"
"आ रहा हूँ... मैं!" वो फिर ऑफलाइन हो गया।
"ठक..ठक..ठक..!" सीढ़ियों की ओर से आती हुई कदमों की आवाज़ ने उसका ध्यान भंग कर दिया। वो सीढ़ियों की ओर पलटी... मंद रोशनी को चीरता हुआ एक साया आगे बढ़ा चला आ रहा था..! उसका दिल जोर से धड़क रहा था.. लहराते हुए पर्दों ने उस साये को धुंधला कर दिया था। साफ़ कुछ भी नज़र नहीं आ रहा था... वो पर्दे के पास आकर रुक गया। अब दोनों के बीच पर्दा एक दीवार की तरह खड़ा था... शांत... खामोश! कुछ समय के लिए लगा जैसे सब कुछ थम गया हो।
"पर्दा हटाओ...सामने आओ.. सैमुअल!..प्लीज़!"
उसने पर्दा हटाया और रोशनी की तरफ आ गया। अब वो साया अनन्या के सामने खड़ा था।
"तुम.... तुम हो.. सैमुअल...?" उसकी आँखें विस्मय से फट पड़ी, ऐसा लगा जैसे सब कुछ ख़त्म हो गया हो.. वो एकटक उस साये को घूरती जा रही थी। सामने एक लंबे कदकाठी, गौरा रंग और चेहरे पर कुटिल मुस्कान बिखेरे...एक लड़की खड़ी थी।
बिल्कुल शान्त....! उसकी जुबां भले ही खामोश थी पर कुटिल मुस्कान अनन्या से पूछ रही थीं
"ये तुमने क्या किया...अनन्या?
अनन्या की आँखे शून्य में ठहर कर रह गई.. उसके हाथ से उसका फोन छूट गया और फिसल कर  हवा में लहराता हुआ छत से नीचे जा गिरा... और उसके सपने और घर की तरह बिखर गया।


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