साहिबाबाद पुलिस ने पक्षपात पूर्ण कार्रवाई करते हुए पत्रकार के खिलाफ़ दर्ज किया मुकदम

 


डाटला एक्सप्रेस
राजेश्वर राय 'दयानिधि'
व्हाट्सप: 9540276160 


गाजियाबाद: साहिबाबाद क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले कोयल एनक्लेव बिजली घर में तैनात लाइनमैन त्रिलोक चन्द्र टीजी-2,कोयल एन्क्लेव, साहिबाबाद, ग़ाज़ियाबाद, उत्तर प्रदेश ने अपने साथी मनोज की शिकायत का बदला लेने के लिए लखनऊ और दिल्ली से प्रकाशित होने वाले दैनिक समाचार पत्र ट्रू टाइम्स के पत्रकार पंकज तोमर के डी- ब्लाक, गगन विहार, साहिबाबाद, गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश स्थित घर की बिजली गत 25 अगस्त 2019, रविवार को काट दी, जबकि उससे तीन-चार दिन पहले पंकज अपने घर का बिल जमा कराने पहले तो राजेंद्र नगर, साहिबाबाद बिजली घर गया था जहां पर एसडीओ ने कहा कि आप अपना बिजली का बिल कल जमा करा देना। फिर वहां से आकर वो कोयल एनक्लेव बिजली घर पहुंचा जिसके अंतर्गत उसकी कॉलोनी आती है, वहां कैश काउंटर पर मौजूद मनोज ने उस दिन बिजली का बिल जमा करने से मना कर दिया और वहां से जाने को कहा। बकाया की वजह से कनेक्शन कटने के भय से पंकज ने इसकी शिकायत तुरंत जेई निरंजन मौर्या व एसडीओ अंशुल राठी से की। जिस पर एसडीओ ने इसकी लिखित में शिकायत देने के लिए कहा, तो पत्रकार तोमर ने इसकी लिखित शिकायत उसी दिन एसडीओ अंशुल राठी को दे दी। इसी बात से चिढ़ कर दिनांक 25-8-19/रविवार को ये लोग गैंग बनाकर पंकज के घर पहुंच गए और वहां पर जाकर लाइट काट दी व एक पिंक कलर की रसीद भी दे दी। उसके बाद पत्रकार पंकज ने पहले तो जेई को फोन किया जब उनका फोन नहीं उठा तो उसके बाद एसडीओ को फोन किया, एसडीओ ने भी जब फोन नहीं उठाया तो अधिशासी अभियंता राजीव आर्य को फोन किया, उन्होंने फोन उठाया और 2:00 बजे तक बिल जमा कराने के लिए कहा। तब पंकज ने कहा कि सर ठीक है आप लाइट जुड़वा दीजिए मैं 2:00 बजे तक बिल जमा करवा दूंगा। बिल जमा कराने के बाद जब लाइनमैन त्रिलोक चन्द्र से पंकज ने पूछा कि लाइट जुड़वा दी, तो वह गाली गुफ़्तार करते हुए कहने लगा कि जाकर अधिकारियों से मेरी शिकायत कर दो मैं लाइट नहीं जोड़ूंगा। तुम पहले भी हमारी खबर छाप चुके हो, जो करना है कर लो। 



लाइनमैन टीजी-2, कोयल एन्क्लेव विद्युत उप-गृह, साहिबाबाद, ग़ाज़ियाबाद, उत्तर प्रदेश त्रिलोक चन्द्र


चलिए, यहाँ तक तो ठीक है लेकिन बात तब बिगड़ जाती है जब पहले से ख़ार खाया त्रिलोक चन्द्र अपने साथ आये सात-आठ लोगों की शह पाकर हाथापाई करने लगता है और जान से मारने की धमकी देने लगता है। शोर सुनकर वहाँ पर आस-पास के लोग इकट्ठा हो गये और उन्होंने बीच बचाव कराया। वहाँ मौजूद लोगों का कहना था कि यह लाइनमैन आए दिन लोगों की लाइट काट देता है और उसके बाद लाइट जोड़ने के नाम पर पैसे की मांग करता है। पहले भी यही लाइनमैन पत्रकार पंकज तोमर को जान से मारने की धमकी दे चुका है क्योंकि उन्होंने जनहित में विजली विभाग और इसके खिलाफ खबर प्रकाशित की थी। 


अब असल बात पर आते हैं वो ये है कि अधिशासी अभियंता राजीव आर्य (9193320555) से जब पंकज तोमर ने इस घटना का ज़िक्र करते हुए लाइन मैन त्रिलोक चन्द्र (9017757977) और उसके गुर्गों की शिकायत की, तो वो कहाँ इस पर संज्ञान लेता, बल्कि उल्टे ही पंकज पर ये कहते हुए चढ़ गया कि तुमने सरकारी काम में बाधा पहुंचाई। अब आखिर वो ऐसा क्यूँ न बोले क्योंकि अॉफ द रिकार्ड उसने वसूली के लिए गुंडे जो पाल रखे हैं। ये क्रिमिनल पृष्ठभूमि के लोकल बाउंसर टाइप गुंडे गोलबंद होकर झुंड में चलते हैं और किसी को भी बेइज़्ज़त करते रहते हैं, बिलावजह किसी का कनेक्शन काटकर तीन सौ से चार सौ रूपये वसूल लेते हैं, कभी किसी का मीटर उखाड़कर ले जाते हैं, किसी को मीटर से छेड़छाड़ हुई है, कार्रवाई होगी, की धमकी देकर वसूली करते हैं। इन लाइनमैनों को कभी भी छुट्टे मुर्रा भैंसों की तरह शिकार की तलाश में निर्भय भटकते हुए इस गगन विहार क्षेत्र ही नहीं पूरे डिवीजन में देखा जा सकता है, अब भला अपने इन लाडलों की शिकायत उनका सरगना एक्सईएन राजीव आर्य कैसे सुन सकता था, सो उसने तत्काल पंकज को ही अपराधी घोषित कर दिया। 



अधिशासी अभियंता राजीव आर्य, विद्युतगृह राजेन्द्र नगर, साहिबाबाद, ग़ाज़ियाबाद, उत्तर प्रदेश


 


पुलिस का पूर्वाग्रह
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उपर्युक्त सारे मामले की शिकायत पंकज तोमर द्वारा तुलसी निकेतन पुलिस चौकी, थाना-साहिबाबाद में तत्काल कर दी गयी। जब वहां से पुलिस द्वारा त्रिलोक चन्द्र को फोन करके संपर्क किया गया और उसे चौकी आकर अपनी स्थिति स्पष्ट करने के लिए कहा गया तो अपने को घिरता देख उसने (त्रिलोक चन्द्र) नया पैंतरा खेला। यहां पर एक बात का उल्लेख करना बहुत लाजिमी हो जाता है....  


"यह कहना गलत नहीं होगा कि हमारे देश का संविधान (आईन) केवल चार लोगों की रक्षा के लिए बनाया गया है, स्त्री, दलित, अल्पसंख्यक और सरकारी कर्मचारी। एक औरत सौ ग़लतियां/अपराध/बद्तमीज़ियां करे कोई बात नहीं, लेकिन जब उस पर आँच आती है तो वो अबला बन जाती है, कहने लगती है मुझे गंदी नज़रों से देखा गया, मेरे साथ छेड़छाड़ हुई, रेप की कोशिश हुई इत्यादि, अगला तो निर्दोष होते हुए भी काम से गया बेचारा। ठीक इसी तरह दलित, चाहे वो कितना ताण्डव करे कानून तोड़े, हिंदू देवी-देवताओं-धर्मग्रंथों को गालियाँ दे, देशद्रोह की बातें करे,संविधान फाड़े, धार्मिक उन्माद फैलाए, सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुँचाए, जातिवादी ज़हर घोले,अदालत की अवमानना करे कोई बात नहीं, लेकिन जब उस पर प्रतिक्रिया स्वरूप कुछ होता है तो वो 'दाता तेरी मैं गइया' की दीन-हीन मुद्रा में आ जाता है और कहने लगता है कि मैं दलित हूँ, अछूत हूँ, सदियों से दबा-कुचला हूँ, मेरे साथ अन्याय हो रहा है वग़ैरह वग़ैरह। दलितों वाली ही सारी बातें हू-ब-हू कथित अल्पसंख्यकों पर भी लागू होती हैं जो देश की सबसे बड़ी दूसरी आबादी होते हुए भी अल्पसंख्यक कहलाना पसंद करते हैं। अब बात सरकारी कर्मचारियों पर आती है इनके पास भी पारंपरिक रटा-रटाया एक हथकंडा या विधवा विलाप कह लीजिए, होता है, वह ये कि अमुक व्यक्ति सरकारी काम में बाधा पहुँचा रहा था, बस पुलिस भी इनकी, कानून भी इनका किसी पर भी एफआईआर लाज करवा देंगे। जबकि स्वयं आकंठ भ्रष्टाचार में डूबे हुए हुए हैं और देश का बेड़ा ग़र्क किया हुआ है। इन्हीं के कुकर्मों का फल है कि आज देश में एक-एक करके तमाम सरकारी विभाग खत्म हो रहे हैं।"*


उपर्युक्त बातों के आलोक में ये कहना है कि लाइनमैन त्रिलोक चन्द्र ने अपनी बात से अपने राजेन्द्र नगर, साहिबाबाद बिजली घर के अधिकारियों को अवगत कराया,उन्हें विश्वास में लिया, फिर वो सारे लामबंद होकर चौकी न आकर सीधे साहिबाबाद थाने गये, वहाँ उन्होंने पुलिस पर कुछ अपने यूनियन के लोगों के साथ मिलकर दबाव बनाया और फिर वही सरकारी काम में बाधा डालने का रोना रोया, जिसका परिणाम ये हुआ कि अगले दिन सोमवार 26 अगस्त 2019 को पत्रकार पंकज तोमर पर साहिबाबाद थानाध्यक्ष जितेन्द्र कुमार ने बिना जांच-पड़ताल, पंकज की दी हुई तहरीर पर विचार किए विभिन्न धाराओं में मुकदमा दर्ज करवा दिया, बताते चलें कि एफआईआर में जिस 100 नंबर काल का उल्लेख लाइन मैन टीजी-टू, कोयल एन्क्लेव त्रिलोक चन्द्र पुत्र तेजपाल सिंह और उसके गिरोह के लोगों ने किया है असल में वो काल हुई ही नहीं और मौके पर तो पंकज (जिसके पिता नरेंद्र तोमर के नाम से विद्युत कनेक्शन है) उस समय था भी नहीं, वो लोनी अपनी दुकान के लिए खरीददारी करने गया था जो उसकी मोबाइल लोकेशन और सीसीटीवी की फुटेज से पता किया जा सकता है। वो तो बाद में आया। अब इन बातों की थानाध्यक्ष को कहां परवाह, उन्हें तो बस मुकदमा दर्ज करवाना था, सो करवा दिया, चाहे दूसरे की कितनी भी हतक इज्ज़त हो।


थानाध्यक्ष साहिबाबाद जितेंद्र कुमार ने लोगों की उपस्थिति में खुलेआम ये तक कह दिया "भई, मुझे तो सरकारी आदमी का ही साथ देना होगा और वैसे भी एक्सईएन राजीव आर्य 'साहब' का बार-बार फोन आ रहा है और वो हमें मुकदमा दर्ज करने की "हिदायत/आदेश" दे रहे हैं।  ताज्जुब होता है, बड़ा ही हास्यास्पद लगता है कि अब एक भ्रष्ट इंजीनियर के आदेश-उपदेश पर पुलिस चलेगी, उसकी अपनी कोई हैसियत नहीं रह गयी। इस तरह सारा मामला थानाध्यक्ष द्वारा विटो कर दिया गया, ऐसा तो लोकतंत्र में कतई नहीं बल्कि राजतंत्र में होता है। वैसे भी सबकी तकदीर का क़ातिब जिस देश में एक दरोगा हो वहाँ आदमी न्याय के लिए आखिर कहाँ जा सकता है। सत्य तो यही है कि एक दरोगा की लिखी हुई तहरीर राष्ट्रपति तक आपका पीछा नहीं छोड़ती। 


अब यहाँ एक बात और उल्लेखनीय है वो ये कि आजकल यूपी पुलिस वैसे भी पत्रकारों के विरुद्ध अपराधियों की तरह बदले की भावना से एक अघोषित युद्ध छेड़े हुए है, उन्हें जाहिल, ब्लैक मेलर, गुंडा, अपराधी, गैंगस्टर साबित करने पर लगी हुई है। जैसे लाल कपड़ा देखते साँड़ भड़क जाता है वैसे ही आजकल पत्रकार सुनते ही यूपी पुलिस भड़क जा रही है और मरने मारने पर उतारू हो जा रही है। स्थित ये है कि आये दिन पत्रकारों के साथ ख़ौफ़नाक मारपीट हो रही है, उनका क़त्ल हो रहा है। अभी जल्द ही नॉएडा के चार पत्रकारों को गैंगस्टर एक्ट लगाकर एक आदी मुजरिम की तरह जेल भेज दिया गया, उनका दफ्तर ख़ुर्द-बुर्द कर दिया गया, क्योंकि उनका अपराध मात्र ये था कि उन्होंने पुलिस के काले कारनामों को उजागर किया था, जिसकी गूँज लखनऊ तक पहुँच रही है और हंगामा बरपा हुआ है। दरअसल सोशल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के जमाने में इन पुलिसकर्मियों को काफी तकलीफ़ हो रही है, इनके काले साम्राज्य की चूलें जो हिल रही हैं तो ऐसे में इनकी बदले के रूप में ख़तरनाक प्रतिक्रिया तो आनी ही है, वैसे भी सत्य असत्य का संग्राम तो सदियों से चल रहा है। पत्रकार पंकज तोमर मामले में भी साहिबाबाद, गाज़ियाबाद पुलिस ने अपने इसी दुराग्रह का परिचय दिया है। अब कहाँ गये वो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पत्रकारों को सुरक्षा और सम्मान देने के दावे, जब इरादतन घर से उठाकर, बाँधकर ""मुठभेड़"" में एक निश्चित अंग पर गोली मारते हुए इसी प्रक्रिया को हर मामले में दोहराते हुए प्रदेश को अपराध मुक्त करने वाली उनकी अभय पुलिस प्रदेश को पत्रकारों से भी मुक्त करने पर पूरी शिद्दत से जुटी हुई है। माना कि कुछ पत्रकार दोषी हो सकते हैं, लेकिन सबको क्या एक ही डंडे से हाँकना उचित है? ये रोग तो कमोबेश हर जगह है, तो क्या उससे पूरी लॉबी/मुहकमा दोषी हो जाता है। और पुलिस कब से सबको चरित्र प्रमाणपत्र देने लगी, जिसका हर चरित्र खुद इसके सृजन के दिन से ही संदिग्ध रहा हो। इसकी गुणवत्ता का परिचय इससे ही मिल जाता है कि न्याय के लिए लोग एक गुंडे के पास तो चले जाते हैं, लेकिन थाने नहीं जाना चाहते। वैसे थानाध्यक्ष साहिबाबाद जितेंद्र कुमार ने उक्त मामले में अपने जिस पक्षपात एवं दुराग्रह पूर्ण रवैये का परिचय दिया है उसे पीड़ित पंकज तोमर द्वारा पुलिस उच्चाधिकारियों और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के संज्ञान में लाया तो जा रहा है, लेकिन सूबे की लचर कानून व्यवस्था और मुख्यमंत्री योगी द्वारा पुलिस को निरंकुश छोड़ दिए जाने को देखते हुए नैसर्गिक न्याय की उम्मीद बिल्कुल न के बराबर दिखती है।


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