दयानिधि अब तो लो अवतार...! रचयिता: राजेश्वर राय (पद क्रमांक 01 से 100)


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पाप बढ़ा जब-जब धरती पर आये बारंबार
एक बार फिर इस धरती को है तेरी दरकार
दयानिधि अब तो लो अवतार......!
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01-- ठरकी ससुर
फायलेरिया-फोते से प्रिय ससुर हमारे दुक्खी हैं,
फिर भी मदर इंडिया वाले हलकट लाला सुक्खी हैं,
आंख-कान नाकाम हो गये,कमर कमानी सी टेढ़ी-
बावजूद इसके भी उनकी काम इंद्रियां भुक्खी हैं,
छूने-छाने की कोशिश से उस ठरकी के लगे मुझे-
अगर हाथ चढ़ गयी तो मूआ देगा नत्थ उतार।
दयानिधि अब तो लो अवतार.......!
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02-- थिंक टैंक
थिंक टैंक बनता हूं लेकिन अन्दर से मैं रीता हूँ,
बड़ी बतकही करूँ मगर ख़ुद फ्रस्ट्रेशन में जीता हूँ,
बीयर-ब्रॉथल-बिरयानी का सेवन करता छुप-छुप कर -
लेकिन दुनिया के आगे बकता रामायण-गीता हूँ,
ज्ञानी बनकर प्रवचन पूरी दुनिया को देता फिरता-
पर ख़ुद अब तक जीवन में पाया कुछ नहीं उखार।
दयानिधि अब तो लो अवतार.....!
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03-- बच्चों की शादी
बच्चों की शादी को लेकर बीवी बहुत सुनाती है,
उमर बढ़ रही है उनकी कह-कह मुझको झपिलाती है,
"ख़ुद बुड्ढे हो गये हो फिर भी आग लगी रहती तुमको"-
ऐसा कहके सच्चाई का शीशा मुझे दिखाती है-
चौदह की ही एज से अपने सेज सो रहे हो हर दिन-
लेकिन इन बच्चों का क्यों कर रहे न कोई जुगार।
दयानिधि अब तो लो अवतार.....!
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04-- सुलभ स्वच्छता
खाकर गुटका-चिप्स रोड पर रैपर रोज़ डालता हूँ,
घर का कूड़ा मैनेज करने का गुन नहीं पालता हूँ,
बीयर-पानी-सोडे की बोतल,दोना-पत्तल-पन्नी--
गाड़ी से बेलौस फेंकना हरगिज़ नहीं टालता हूँ,
एक संस्था सुलभ स्वच्छ दुनिया को करती डोल रही--
एक हूँ मैं जो जहाँ भी पाया दिया गन्दगी डार।।
दयानिधि अब तो लो अवतार.....!
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05-- नेचर का नाश
दूह लिया धरती से जल,जंगल को ज़ालिम बन काटा,
कूड़े-कचरे-पशु अवशेषों से सड़कें पारक पाटा,
क़ब्ज़ा कर नज़ूल की भूमी प्लाट काटने की खातिर--
हरितपट्टियां हथियाकर कुएं-तालाबों को भाटा,
एक लुटेरे जैसा लूटा हमने धरती-अम्बर को--
सागर का सरमाया, नदियों का ले लिया कछार।।
दयानिधि अब तो लो अवतार.....!
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06-- प्रकृति का प्रतिशोध
पस्त प्रकृति प्रतिशोध ले रही,पिघल रहे सारे हिमखण्ड,
ज्वालामुखी उगलते लावा आज हो रहे काफ़ी चण्ड,
वर्षा-भूजल-नदियां-सागर सभी निगलकर ये मानव--
घूम रहा विक्षिप्त बना जैसे होे कोई अजगर सण्ड,
नेचर नष्ट हो रहा है,धरती हिल रही ज़लज़लों से--
मौसम-ऋतुयें रूठ रहीं, सूरज उगले अंगार।
दयानिधि अब तो लो अवतार....! 
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07- बद्द बिटिया
बेटी मेरी पढ़ी-लिखी कम ऊपर से फेसबुकिया है,
मम्मी का शह पा अपने हो गयी बड़ी घर फुकिया है,
काम-धाम-चउका-बरतन-खाना-पानी से बैर उसे-
जिसके कारण फेमली मेरी,बहुत हो रही दुखिया है,
मैं तो मेहनतवाला सीधा-साधा दुलहा ढूंढ़ रहा-
लेकिन माई-धीया चाहें जेई-तहसिलदार।
दयानिधि अब तो लो अवतार.....!
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08- केएलपीडी
पत्नी जी उठती हैं आठ बजे फिर वो अंगड़ाती हैं,
क्योंकि पूरी रात फेसबुक पर वो माथ खपाती हैं,
उनकी चैटिंग की बैटिंग से वाट लग गयी है घर की-
अब तो बच्चों पर भी पक-पक-पक-पक-पक चिल्लाती हैं,
सेज शयन के समय भी गर उनको मैसेज आ जाये तो-
केएलपीडी मोड पे हमको देती हैं वो डार।
दयानिधि अब तो लो अवतार....!
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09- आत्म परिचय
काशीपुर-आज़मगढ़-यूपी मेरा जनम ठिकाना है,
पारस पिता,मात मुखना,गुरुवर संगम को माना है,
कादीपुर-चेंवता-तेरही-चण्डेसर और प्रयाग पढ़ा-
फिर तिरानबे से दिल्ली में आकर तम्बू ताना है,
अंशू-अमृत-रामराज-रमचन्दर-सरजू-दरगाही-
जेएन-डीएस राय और प्रेरक हैं सूबेदार।
दयानिधि अब तो लो अवतार.....!
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10- सेक्स की सनक
सारी सेक्स साइटें दिन भर नेट पर सर्च कर रहे हैं,
अपनी छोड़ बकाया दुनिया पर सब खूब मर रहे हैं,
अदला-बदली,आगे-पीछे,नये एंगलों के अतिरिक्त-
प्रॉप-पतुरिया-पुरुष वेश्या के भी संग झर रहे हैं,
तन की तपन तरी पाये कैसे, इस नाते ढूँढ़ रहे-
बुढ़िया नये लवंडे तो,बुढ़ऊ कन्या कचनार।
दयानिधि अब तो लो अवतार....!



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11- अंकलों की आँखें
इतनी बच्ची नहीं कि दिल की बात समझ मैं ना पाऊँ,
उनका मन करता है ''इसको पाऊँ तो मैं खा जाऊँ''
अंकलवों की आँखे जब भी मेरा एक्स-रे करती हैं-
दिल करता है उंगली डाल के उनको बाहर ले आऊँ,
बच्चों के बच्चे भी उनके मुझसे उम्र में ज्यादा हैं-
फिर भी मूए जब भी गुज़रूं देखें आँखे फार।
दयानिधि अब तो लो अवतार....!
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12- बेवफ़ा बुढ़िया
नाती-पोते-बहुओं में मशगूल हमेशा रहती है,
दॅाव देखकर छेडूं तो "क्या करते हो" ये कहती है,
बुढ़िया सठियाया कहती, पर मुझ  साठे-पाठे के दिल-
अब भी अरमानों की दरिया ठट्ठे मारे बहती है,
पेंशन के पैसे खातिर तो खुदी पेश हो जाती है--
बाकी ससुरी गायब रहती कई-कई पखवार।
दयानिधि अब तो लो अवतार....!
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13- समर्पण का शॉक
एक फोन कर दूं तो पहले दौड़ा-दौड़ा आता था,
लाख भगाऊँ फिर भी मेरे इर्द-गिर्द मंड़राता था,
रूप-रंग-फ़ैशन पर मेरे ख़ूब क़सीदे पढ़-पढ़ कर-
मुझको ख़ुश रखने की खातिर हर नुस्ख़े अज़माता था,
एक बार संग क्या सोई,बातों में उसकी आ करके-
अब तो देख घिनाता है,दिल से भी दिया बिसार।
दयानिधि अब तो लो अवतार....!
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14- स्वच्छता
स्वच्छ जगह में तन-मन-यौवन सभी सुरक्षित रहता है,
धर्म-कर्म की चर्चा पढ़ने-लिखने को मन कहता है,
सीलन-बदबू-सड़न-गलन बिखरी यदि यत्र-तत्र हो तो-
ऐसे आलम में दिमाग़ में ग़ुस्सा अविरल बहता है,
गर माहौल मलीन मिले तो मन में मिचली आती है-
साफ़ परिस्थितियों में ही आते हैं उच्च विचार।
दयानिधि अब तो लो अवतार...! 
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15- सौतेली 
सौतेली कह दुनिया हमरे दिल कै फोकला छोलै ले,
अपने और पराये के तरजूई हमके तोलै ले,
भले जसोदा से ज़ादा जज़्बा हमरे दिल में हउवै-
तब्बो हमके मयभा महतारी कै बोली बोलै ले,
दूबी कै सुटुकुनि हम छुइ देयीं तब्बो दुनिया थूकै-
सग महतारी भले मारि ले पथरी-काँचि निकार।
दयानिधि अब तो लो अवतार......
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16- हर हर गंगे
राजा-परजा-मुनी-कवी गुन जिसके गाते आये हैं,
रिद्धि-सिद्धि-हरियाली-मौसम-मोक्ष इसी से पाये हैं,
अमृत जल से जलधि बनी कल-कल-छल-छल जो बहती थी-
उस गंगा पर हमने लाखों ज़ुल्म-ज़लालत ढाये हैं,
चीनी मिल-डिस्टिलरी-सीवर-टैनरियों का पानी हम-
बिना मुरौव्वत इसके अन्दर रोज़ रहे हैं डार।
दयानिधि अब तो लो अवतार......!
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17- हर हर गंगे
नालों से जो ज़हरीला जल बह गंगा में आता है,
उस दूषित जल से पेड़ों-पौधों को सींचा जाता है,
फिर जो अन्न-फूल-फल-सब्ज़ी उससे पैदा होती है -
उस घातक ख़ुराक को मानव और जानवर खाता है,
अनजाने में मीठा विष बेलौस ले रहे हम हर दिन-
ख़ुद के साथ-साथ नस्लों को भी कर रहे बिमार।
दयानिधि अब तो लो अवतार.....!
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18- हर हर गंगे
क़िस्म-क़िस्म की सब्ज़ी से गंगा का अंचल सजता था,
कम लागत में लौकी-नेनुआ-टिण्डा-खीरा उगता था।
मीठे ख़रबूज़े-तरबूज़े का वो मौसम चला गया-
जब गर्मी में हरियाली से नदी किनारा फ़बता था,
पुलिस खा रही हफ़्ता,खनन माफ़िया बालू खोद रहे-
और अवैध क़ब्ज़ों से,सूख रही है इसकी धार।
दयानिधि अब तो लो अवतार...!
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19-  टीवी वाली बहू
बढ़िया बहुत बहू बनकर टीवी पर जो बतियाती हैं,
धर्म-कर्म-आदर्शों से अपनेे जो ख़ूब लुभाती हैं,
लेकिन लैविस लाइफ की लालसा लिए ललितायें वो-
लाखों नाजायज़ कर्मों के नुस्खे ख़ुद अज़माती हैं,
कॉलगर्ल-ड्रग डीलिंग-स्मग्लिंग रैकेट में मिलें कभी-
कभी ड्रिंक ड्राइव तो कभी हैं मिलती हुक्काबार।
दयानिधि अब तो लो अवतार......!
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20- पढ़ी पतोहू
पढ़ी पतोहू लाया तो वो पोंछा नहीं लगाती है,
राशन-कूकर-गैस पड़ी पर खाना नहीं पकाती है,
हम ठहरे किसान के बच्चे अड़बी-तड़बी क्या जाने -
वो तो अंग्रेजी में पूरे घर पे हुकुम चलाती है,
अपने भी कपड़े-लत्ते-कमरे का केयर ना करती-
साफ़-सफ़ाई बिन कर डाली घर को मेरे खोभार।
दयानिधि अब तो लो अवतार......!



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21- कमाऊ बहू
सुन्दर-पढ़ी बहू ब्याहा लेकिन वो कर्कश निकल गयी,
लगी कमाने जब तब तो पूरा हाथों से फिसल गयी,
क्या बतलाऊँ दोस्त तुम्हें कमज़ोर नहीं वो क़ातिल है-
सारे संस्कार-मूल्यों को सीधे-सीधे निगल गयी,
अगर कमाऊ बहू बाँधने वाले हो बेटे से तो-
एक बार बन्धू कर लेना उस पर पुनर्विचार।
दयानिधि अब तो लो अवतार......!
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22- रंणुहा ससुर 
तन की तपिश ने जब ससुरे को बाहर ठीये दिखा दिया,
तब उस रंणुहे को आजिज़ आ हमने अपनी चिखा दिया,
कुछ दिन वेतन, अब पेंशन की पर्ची मेरे हाथ में दे- बस
उसने सारे खातों में अब मुझको वारिश लिखा दिया,
पुण्य मिल रहा, घर का पैसा घर के काम आ रहा है-
चीज़ चाम की कौन मेरी घिसकर हो रही नोखार।
दयानिधि अब तो लो अवतार......!
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23- कमसिन आँटी
अंटी जी गुज़रीं तो अंकल कमसिन एक पकड़ लाये,
अन्तर बहुत उम्र में था,सो उसको नहीं रगड़ पाये,
गिरा दाँत,झुक गयी कमर,पोपटा जैसे खुद सूख हुए-
पर अंटिउवा की बॉडी में दिन-दिन अभी अकड़ आये,
अंकल जी तो मुश्किल से दो घूँट छाछ पीते होंगे- 
बाकी दही-मलाई काट रहा है गाँव-जवार।
दयानिधि अब तो लो अवतार.....!
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24- बदमाश बुड्ढा
दादा जी गुरुमुख हो करके, चार धाम भी कर आये,
बेमन की जपते अब माला,जीवन भर पीये-खाये,
एक साँस में सौ-सौ गाली घरवालों को दे करके-
चौबिस घंटे देते रहते हैं अपनी घटिया राये,
पाँव दबाकर रात को बीवी से भी मिलने जाऊँ तो-
जान बूझकर पड़े-पड़े देते हैं तभी खंखार।
दयानिधि अब तो लो अवतार.....!
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25- वोट बैंक
दलित किसी का वोट बैंक तो कुछ का सुन्नी-सीया है,
कोई पिछड़ों का प्रेमी,कोई सवर्ण संग जीया है,
भारत और भारती का इन सबमें कोई ज़िक्र नहीं-
केवल सबका राजनीति का अपना-अपना ठीया है,
सत्तर बर्षों से सत्तू लेकर भारत को ढूँढ़ रहा-
नहीं मिला तो आज कराया हूँ एफआईआर।
दयानिधि अब तो लो अवतार......!
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26- नेता
कल के डाकू आज प्रभारी थाने के बन घूम रहे,
सब क़ानून ठोकरों में रख ऊँची क़ुर्सी चूम रहे,
ऐसे में इनके ग़ुनाह की कौन सज़ा देगा इनको-
जहाँ समूचे सिस्टम ही इनकी थापों पे झूम रहे,
जनसेवक,युगपुरुष,लोकनायक उपाधियों के धारक-
असल में हैं ये छँटे हुए गुण्डे-बेदीन-अय्यार।
दयानिधि अब तो लो अवतार.....!
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27- जन प्रतिनिधि
लोकतंत्र में लक्ष्मी जी की खेल बनी विषबेल यहाँ,
धन से वोट ख़रीदे जाते लगती जमकर सेल यहाँ,
कोई आये, कोई जाये फ़र्क़ नहीं पड़ता कुछ भी-
बादस्तूर दौड़ती रहती है दौलत की रेल यहाँ,
ऐसे जन प्रतिनिधियों से उम्मीद कौन सी रक्खोगे-
जिनको वोट नोट ले करके दोगे बरख़ुरदार।
दयानिधि अब तो लो अवतार.....!
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28- सुगर
शूगर सुगर छीन ली पहले तेल-मशाला फिर आलू ,
चावल चाहूँ चखना तो चिकचिक होती घर में चालू ,
पीर पाँव की नहीं प्यार से सोने देती, ऊपर से- 
भूख बहुत बढ़ गई, प्यास से सुखता है मेरा तालू ,
नीम तेल,गुठली जामुन की,जूस करेले का पीऊँ-
कभी चिरैता चूर्ण,कभी ले रहा हूँ मैं गुड़मार।
दयानिधि अब तो लो अवतार......!
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29- पराईप्रीति
कौन कब कहा इसे मगर ये बात बहुत ही है सच्ची,
अपना बच्चा दूजे की बीवी ही लगती है अच्छी,
सीधे शब्दों में समझाऊँ तो इतना ही मतलब है-
अपनी दाल-भात, दूजे की लगती मटन और मच्छी,
अपनी ब्यूटीफुल बीवी बेशक़ हो पर बेस्वाद लगे-
दूजी फ़ीकी हो, फिर भी वो लगे मशालेदार।
दयानिधि अब तो लो अवतार.....!
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30- अधर्म
कितने ही दुधमुँहें दूध बिन दुर्गति दबकर काट रहे,
पर लाखों पीपे पय हम पिण्डी पर प्रतिदिन पाट रहे,
अन्न बिना कितनी अर्थी भूखों की रोज़ निकलती है-
बेशक़ गोदामों में दाना भरा लाट का लाट रहे,
दीये तक दहलीज़ों पर दुर्लभ हों जहाँ दरिद्रों के-
वहाँ पे घी की लौ से लहकें मंदिर और मजार।
दयानिधि अब तो लो अवतार.....!



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31- कन्फ़्यूज़ यूपी
टूटा चैन, फेल है फिर्री, बायसिकिल अब पंचर है,
पंजे में कुछ बचा नहीं हो गया सिरे से बंजर है,
हाथी रौंद रहा ख़ुद अपनी सेना, कमल क़शमक़श में-
ऐसा कुछ यूपी चुनाव का गड्ड-मड्ड सा मंजर है,
जनता भी कन्फ्यूज हो रही किसे जिताये वोट करे-
उसकी तो बुद्धी पर जैसे गया है पाला मार।
दयानिधि अब तो लो अवतार......!
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32-  फिर से..
पाँच वर्ष पर उसी शख़्स ने दरवज्जा फिर नॉक किया,
जिसने पिछली बार जीतकर हृदय हमारा चाक किया,
घपले-घोटालों से अबकी बार टिकट ना पाये तो-
ख़ुद अपनी ही मूल पार्टी का ही दो-दो फाँक किया,
अब बतलाओ किस मुँह से ये वोट माँगने आये हैं-
जिनका आधा दशक नहीं पाया हमने दीदार।
दयानिधि अब तो लो अवतार.....!
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33- चुनाव या वार
मदिरा-मनी-मसलपावर-मुर्ग़ों में गरम मशाला है,
लैश असलहों से गुर्गों ने अपना फ्रंट संभाला है,
सभी टोलियों में वोटर से अधिक दिख रहे अपराधी-
जिनको जीत दिलाने खातिर नेताओं ने पाला है,
देसी बम,कट्टा,बल्लम,चाकू,हॉकी सब निकल गये-
लगता है चुनाव ना होकर छिड़ी हुई है वार।
दयानिधि अब तो लो अवतार...! 
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34- कुपुत्र
देख दुर्दशा मुल्लायम की भीतर छुपकर रो आया,
फिर सारे सरकारी दफ्तर जा करके मैं हो आया,
कौन भरोसा बेटों का कब गेम बजा डालें साले-
इसी वास्ते सब समेट डाला हाथों में जो आया,
सोच रहा हूँ शाहजहाँ ने कैसे सितम सहा होगा-
कैसे तड़पा होगा वो बेचारा एनटीआर।
दयानिधि अब तो लो अवतार......!
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35- ज्ञानी
एक समय अत्यधिक ज्ञानियों से था पड़ा यहां पाला,
युद्ध महाभारत जैसा उन सबने मिल करवा डाला,
फिर इतिहास गया दुहराया वैसे ही ज्ञानी आये-
जिनने देश बाँटकर नरमुँडों की पहना दी माला,
राजा बनने की जल्दी में आग लगाकर निकल लिए-
रार मिटाने के चक्कर में बढ़ा गये हैं रार।
दयानिधि अब तो लो अवतार.....!
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36-  नेता-नौकरशाह
जनता जीये-मरे भले पर देश रहा है इनको पाल,
ये बेग़ैरत अभय भ्रमण कर रहे लिए तन मोटी खाल,
इनकी पहुँच-प्रतिष्ठा-पैसों में इतना पॉवर है कि-
कभी नहीं कर पाये ना कर पाओगे तुम बाँका बाल,
नौकरशाहों-नेताओं की दुरभि संधि का ही फल है-
हम अन्त्योदय-बीपीएल ये अरबों के ज़रदार।
दयानिधि अब तो लो अवतार.....!
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37-  फौजी चाचा
"फौजी चाचा" गर्मी की छुट्टी में जब घर आते थे,
कटिया-दंवरी-न्यौता सारा काम खुदी निपटाते थे,
चाची जी मचिया पर बैठी जब भी पान चबाती थीं-
तब उनको कनअखियों देख के चाचा जी मुस्काते थे,
गन्ने की पेड़ी खनने से घूर फेंकने तक लेकर-
सारा काम उन्हीं के जिम्मे रहता था हर बार।
दयानिधि अब तो लो अवतार......!
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38- फौजी चाचा
बूट-बेल्ट-बीवी-बालों को ब्यूटीफुल वो रखते थे,
ड्यूटीवाले कपड़ों को ही घर पे खूब पहनते थे,
बन्दूक़ों-संगीनों की सोहबतवाले "फौजी चाचा"-
चाची के आगे भीगी बिल्ली की माफ़िक रहते थे,
सीमा का वो विजयी सैनिक शस्त्र सरेंडर कर देता-
जब चलता चाची की नज़रों का मोहक मोर्टार।
दयानिधि अब तो लो अवतार.....!
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39- फौजी चाचा
काले नाम लिखे बक्से में 'रम' की बोतल रखते थे,
उसी जमा पूँजी पे "फौजी चाचा" बहुत उछलते थे,
पान-सुपारी-कत्था-चुन्ना-ज़र्दा-और सरौता संग-
मउनी में बीड़ी-सुर्ती रख ताश खेलते रहते थे,
कलिया-मछरी संग चाची से अक्सर छुपकर लेते थे-
ओल्डमंक का पैग और सिगरेंटें चारमिनार।
दयानिधि अब तो लो अवतार.....!
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40- भाव प्रधानता
मेरे पास भावनाओं का केवल भरा ख़ज़ाना है,
ना कोई उस्ताद नहीं आदर्श किसी को माना है,
अपने अनुभव-अवसादों का बस अनुवाद कर रहा हूँ-
ना पुराण पढ़ रक्खा ना नोबल पाने की ठाना है,
अहर-बहर-सुर-ताल-वज़न का कोई इल्म नहीं मुझको-
ना छंदों की विधा जानता,ना ही मात्राभार।
दयानिधि अब तो लो अवतार......!



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41- गँवईं इश्क़
कुड़ियों की तलाश में कुत्तों जैसे फिरते रहते थे,
इस क्रम में गाली-गलौज-मुक्का भी अक्सर सहते थे,
शादी-मेला-लीला का जब सीजन आये तब जाकर--
फोन-सोन बिन दिल की बातें मिल मुश्किल से कहते थे,
धरती माँ की गोद सेज थी,लुँगी-गमछा बिस्तर--
अरहर-ऊँख खेत था अपना होटल थ्री स्टार।
दयानिधि अब तो लो अवतार.....!
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42- चाय-पान की दुकान
बिजनस मेरा लगा बैठने तब मैंने इक टेस्ट किया,
उनकी सेनुर-टिकुली पर थोड़ा सा फिर इन्वेस्ट किया,
चाय-पान की जो दुकान कल तक बोहनी को बैठी थी--
आज उसी की सेल इन्हीं के जलवों ने ही बेस्ट किया,
अपना काम चल रहा चौचक,मलकिन का भी क्या घाटा--
कोई आँख सेंक ले या कर ले बातें दो चार।
दयानिधि अब तो लो अवतार.....!
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43- भगद्वार
बड़े बड़े ज्ञानी विज्ञानी इस दर शीश झुकाते हैं,
शरणागत् होने पर ही मुश्किल से किरपा पाते हैं,
नहीं रजोगुण बिन मुक्ती मिलती उनको भवसागर से--
चाहे योग-साधना करके लाख गुलाटी खाते हैं,
सारी रिद्धि-सिद्धि-सुख-वैभव इसके इर्द-गिर्द ही है-
स्वर्ग से भी बढ़कर संसार में सुन्दर है भगद्वार।
दयानिधि अब तो लो अवतार....!
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44- मधुमेह
सोकर उठते गोली लूँ,फिर खाने से पहले सूई,
खाने के बाद चार गोली, तब रुकती है शूगर मूई,
जहाँ कहीं भी ज़ख़्म ज़रा सा अगर जिल्द में आ जाये-
वहाँ-वहाँ पक जाता है, फिरता हूँ फिर बाँधे रूई,
पावर्टी पौरुष में आने से घट गयी तन्यता है-
सो मादाओं की महफ़िल से मुड़ जाता मनमार।
दयानिधि अब तो लो अवतार...!
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45- चुनाव से तौबा
कुछ मुवावज़े की माया,कुछ ठेकेदारी से आया,
ऐंठ बढ़ गयी भाया,बारूदी हो गयी मेरी काया,
कुछ मित्रों ने चूड़ी ऐंठी,कुछ तो मत भी मारी थी--
सो चुनाव का टिकट कई लाखों ख़र्चा कर मैं लाया,
नींदें भी नीलाम हो गयीं,सपनों को सद्मा पहुँचा-
लक को लकवा मार गया, हो गयी है ऐसी हार।
दयानिधि अब तो लो अवतार....!
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46-  नेता
जहां कहीं भी मिले फायदा उसी जगह घुस जाते हैं, 
पद-पैसा-पॉवर खातिर बस राजनीति में आते हैं, 
गैंग बनाकर गुर्गों का गुरु से कर अपने गद्दारी-
अपना बहुत क्रियेटिव करियर ये कम्बख़्त बनाते हैं,
बारूदी-बेतुका और वल्गर बयान देनेवाले-
ये प्राणी ही चला रहे हैं भारत की सरकार।
दयानिधि अब तो लो अवतार.....!
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47- सब्र और समझ
कर्मों के क़दमों में अपनी सभी कामना फ़ना किया, 
नश्वर है हर शै यह कहकर मैंने मन को मना लिया, 
रुख़सत करके क्लेशों का कारवां करीने से कब का-
दिल के वीराने को वृंदावन ही मैंने बना दिया, 
असफल होने पर अवसाद अभी मन में ना आता है-
सक्सेसफुल होने पर भी रहता हूँ निर्हंकार।
दयानिधि अब तो लो अवतार.....!
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48- राज्यसभा
राज्य सभा में सीधे-सच्चे सेवक पहले जाते थे, 
लोकसभा को हर मुद्दे पर ये विधिवत् समझाते थे, 
लेकिन अब ये शरणस्थली बनकर थके-थकायों की-
उनकी जगह ले चुकी जिस दर काबिल प्रतिनिधि आते थे, 
धनबल और पहुँचवाले अब सीट लगाकर बोली लें-
ज्ञानी-विज्ञानी खातिर अब क्लोज हुआ यह द्वार।
दयानिधि अब तो लो अवतार.....!
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49- कवि
अपनी कुंठाओं का क़ातिब बनकर लिखता फर्रा हूँ, 
फट्टू-फेंकू-फोकटिया, पर बनता शाइर खर्रा हूँ, 
तुनकमिजाज़, ख़ास क़िस्मों की इज़्ज़त का मैं आकांक्षी--
बात-बात में बिदके जो वो कवी एक गंड़जर्रा हूँ,
भले भगाया जाऊँ, खाऊँ लात, न कविता सुने कोई-
फिर भी राग अलापूं अपनी ही, आदतानुसार। 
दयानिधि अब तो लो अवतार......!
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50- टिप्पणीकार 
ख़ुद जीवनभर नहीं नहीं लिखे, पढ़ने लायक दो लाइन भी, 
पर बनें पाणिनी-चाणक्या ये ज्ञान-बुद्धि की माइन भी, 
इनकी अपनी इक लॉबी है, इनका अपना चलता सिक्का--
पैसे लेकर देते रहते फेवर में अपनी साइन भी, 
हर लेखन में बिलावजह ही टांग अड़ानेवाले ये--
झोलाछाप, कहे जाते हैं एक टिप्पणीकार।।
दयानिधि अब तो लो अवतार.....!



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51- कवि-लेखक
लेखक-कवी  एक दूजे की टाँग खींचते   रहते हैं, 
अपनी  को गुरुतर, दूजे की रचना बौनी कहते हैं, 
अपनी कृतियों में  ऊंची बातें   करनेवाले ये खग-
पद-पैसा-तमगे की खातिर रोज़ ज़लालत सहते हैं, 
ख़ुद तो कुंठा-नाकामी-अवसादों से हैं  भरे हुए-
लेकिन दुनिया  को  प्रवचन देते हैं  लच्छेदार।
दयानिधि अब तो लो अवतार.....!
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52- चुनाव
लाखों नौकरियों का झांसा, क़र्ज़ मु'आफ़ी कर देंगे, 
संविधान से ऊपर जाकर, आरक्षण का वर देंगें, 
जो ज़ुबान पर आया, नेता बक-बक वही लगा करके--
लगता है ये जीते तो जनता की झोरी भर देंगे, 
मैनीफेस्टो-दृष्टिपत्र में लम्बी लिस्टें हैं इनके-
टेबलट-लैपटाप-देसी घी से ले गाय दुधार।। 
दयानिधि अब तो लो अवतार......!
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53- चुनाव 
आयी बाढ़ इलेक्शन की तो सारे रिश्ते उलट गये, 
बने बनाये बिगड़ गये तो, बिगड़े कितने सुलट गये, 
अदला-बदली ख़ूब हो रही नेताओं की आपस में--
कहीं गले का मिलन,कहीं तो धुआंधार चल बुलट गये, 
थप्पड़ खा पंजे से कोई गया विराज कमल पर है--
कोई हाथी से उतरा सयकिल पर हुआ सवार। 
दयानिधि अब तो लो अवतार.....!
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54- चुनाव
वोटर और सपोटर की ख़ुब बढ़ी हुई फ़रमाइश है, 
इस चुनाव में तन-धन बल की बहुत बुरी अजमाइश है, 
गर फटहे हो तो आदर्श तुम्हारे फ़र्ज़ी-फोकट हैं-
बस मुर्ग़ा-मोटर-मधु-माया की ही यहां नुमाइश है, 
नज़र करोड़ों पर है तो कुछ खर्चा करना ही होगा-
तभी चुनाव जीतने का होगा सपना साकार।
दयानिधि अब तो लो अवतार.....!
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55- उन्नत उम्मीदें
पाने से ज़ादा जीवन में मैं अब तक खोता आया, 
फिर भी हंसकर दरवेशों सा खा-पीकर सोता आया, 
हंसी ज़माने को देकर जाने का अहद कर लिया है- 
बेशक़ यारों इस दुनिया में मैं तन्हा रोता आया,
उन्नत उम्मीदों की खेती करने का मैं आदी हूँ - 
चाहे नाकामी की नागिन डसे हज़ारों बार।
दयानिधि अब तो लो अवतार......!
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56- स्वतंत्रता दिवस 
गाँधी चाह रहे थे नेहरू जल्दी राजा बन जायें, 
जिन्ना सोचा पाकिस्तानी धरती जीते जी पायें, 
इन सबने मिल अंगरेजों से खुर्द-बुर्द कर भारत को-
लाखों लोगों को मरवाया,उसकी गाथा क्या गायें, 
समझ नहीं आता भारत के बँटने का मैं शोक करूँ-
या योमे आज़ादी पर सजवाऊँ तोरणद्वार।
दयानिधि अब तो लो अवतार....!!! 
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57- बहादुर औ' दुधहार 
मर्यादा का मर्दन कर बस मज़ा लूटना फ़ितरत है-
नर-मादा दोनों के अन्दर बढ़ी हुई ये हसरत है, 
नशा और अय्याशी को बस खेल समझने वाली इस-
पीढ़ी को लगता है जैसे संस्कार से नफ़रत है, 
पती पतित पीए के पैरों में पनाह पाकर ख़ुश हैं-
पत्नी भी लेकर सो रहीं बहादुर औ' दुधहार।
दयानिधि अब तो लो अवतार....! 
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58- फौजी
एक सिपाही सीमा पर सर अपना कटवा देता है,
पर उसके बच्चों की सुध ना देश कभी ये लेता है,
आन-बान-सम्मान देश का जो गिरवी रखते आये,
आज हिंद का मालिक उनकी बेटी-शोहदा बेटा है,
देश द्रोहियों-भ्रष्टों पर तो संगमरमरी कोठी है-
मगर शहीदों की समाधियों पर झाड़ी-झंखार।
दयानिधि अब तो लो अवतार......!
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59- कारगिल 
पाक चाक़ जब कर बैठा भारत से अपनी यारी को,
घुसा कारगिल में आतंकी   छेड़ दिया   खुद्दारी को, 
फौजों ने तब  मेरी पोंकियाकरके उसे  पहाड़ों पर-
बेनक़ाब कर डाला उसकी कपट और अय्यारी को, 
भाग निकलने का भी मौक़ा उन कुत्तों को नहीं दिया-
चारों तरफ  से   ऐसा    मारा      घेर के    धूआंधार।
दयानिधि अब तो लो अवतार.....!
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60- चुनाव
गरम जेबवालों के ही पीछे सारी दुनिया जाये, 
फटहे और फ़क़ीरों के पीछे कोई भी क्यूँ आये, 
लेन-देन का चलन जहां चल गया चुनावों में चौचक-
वहां सिर्फ सेवक समाज का कैसे विजयसिरी पाये, 
है चुनाव का मौसम तो जनता भी सोचे कुछ ले लूँ-
बर्ना कौन बाद में दे देंगे ये बंगला-कार। 
दयानिधि अब तो लो अवतार.....!



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61- मुझको गर्भ में डालो मार
मेरे पैदा होने पर मैया भी नाक सिकोड़ेगी, 
पूरी फेमली ज़र्द पड़ी दर्दों की चादर ओढ़ेगी, 
कल दहेज का दानव तुमको दंभ दिखायेगा अपना-
कम दहेज ले आयी तो सासू ना ज़िन्दा छोड़ेगी, 
एक राय मैं सोच-समझकर तुमको देती हूं पापा! 
पैदाइश से पहले मुझको गर्भ में डालो मार।
दयानिधि अब तो लो अवतार...।
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62- मुझको गर्भ में डालो मार
प्रतिभा से ज्यादा मेरी पोशाक निहारी जायेगी,
जिस दर जाऊंगी बस मेरी चीर उतारी जायेगी,
दो रोटी के बदले पति की चरणपादुका बन करके-
घिसट-घिसट फिर कैसे मुझसे उम्र गुज़ारी जायेगी, 
शादी-ब्याह, मेरी रखवाली, तेरे बस की बात नहीं-
फिर कहती हूं पापा मुझको गर्भ में डालो मार।
दयानिधि अब तो लो अवतार...!
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63- मुझको गर्भ में डालो मार
तू ग़रीब की बच्ची थी, बापू खरीदकर लाये थे,
घरवालों ने तेरे उसमें खुद अच्छे पैसे खाये थे, 
मैया क्यूं इस दुनिया की दुर्दशा भूलती हो अपनी-
तुम पर इसी ज़माने ने ही ज़ुल्म हज़ारों ढाये थे, 
तन के प्यासे-अय्याशों की इस दुनिया में लाने से-
बेहतर है माई मुझको तुम गर्भ में डालो मार।
दयानिधि अब तो लो अवतार...! 
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64- अपनों की कामुक नज़रें
घर-बाहर अब किसी जगह भी नहीं सुरक्षित रहती हूं, 
बदल गयीं सबकी नज़रें, यह अप्रिय सत्य मैं कहती हूं, 
अपनों और परायों में कुछ फ़र्क़ नहीं लगता क्योंकि-
गैरों संग अपनों के भी अब कामुक हमले सहती हूं, 
उस दुनिया में क्या आना, बोलूं तो जीभ  कट रही है-
सगा बाप भी कर देता हो जिस दर मेरा शिकार।
दयानिधि अब तो लो अवतार...!
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65- भ्रूण हत्या
धरती का भगवान कहाता, डिगिरी उसपे भारी है,
मगर डाक्टर मेरी खातिर रखता नीयत खारी है, 
थोड़े पैसों खातिर मेरी रोज़ सुपारी ले करके- 
मुझे उदर में टपकाने का उसका धंधा जारी है, 
जान बचाने की जिसने जीवन में हलफ़ उठाई थी-
रोज़ कोख में मार रहा कन्याओं को दो-चार। 
दयानिधि अब तो लो अवतार...!
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66- ट्रैफिक हवलदार 
पालूशन-बीमा-डीएल-पेपर कंप्लीट हमारा था, 
निर्धारित रूटों पे ही हमने गाड़ी को डारा था, 
लेकिन जेब गर्म कम होने से ट्रैफिकवाले ठुल्ले-
ने गुस्से में आ करके चालानी पर्चा फारा था,
गाड़ी का मालिक हो करके मैं मंगता-खाता ही हूँ-
असली मालिक तो है वो ट्रैफिक का हावलदार। 
दयानिधि अब तो लो अवतार......!
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67- बिजी विदाउट बिजनेस
कभी पड़ी गैरज में गाड़ी, कभी खड़ी है थाने में, 
कभी ड्राइवर भाग गया, मैं उलझा किस्त पटाने में, 
डेंटिंग-पेंटिंग-ओवरह्वेल्मिंग भर का ही बस हो करके-
बिजी विदाउट बिजनेस हूँ गाड़ी का काम जमाने में,
दिन का चैन रात की नीदें इस गाड़ी ने छीन लिया-
दिल करता है आग लगाकर सोऊँ टांग पसार। 
दयानिधि अब तो लो अवतार....! 
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68-  हफ़्ता वसूली
पीकेट-चौकी-थाने पर वैसे तो हफ्ता जाता है, 
फिर भी सौ-पचास आये दिन वो ऊपर से खाता है, 
शनिदेव के सदृश राशि में बैठ पुलिसवाला मेरे,
कोट-कचहरी-थाने के चक्कर भी वो लगवाता है,
गाड़ी किश्त-ड्राइवर ख़र्चा-मेंटीनेंस काट करके-
मुश्किल से जल पाता घर का चूल्हा मेरे यार। 
दयानिधि अब तो लो अवतार...! 
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69- अपना हाथ जगन्नाथ 
कभी भगा डिग्री के  पीछे, कभी कैरियर का लोचा, 
नहीं बसा पाया घर अपना बार-बार बेशक़ सोचा, 
नौ मन तेल न हो पाया ना राधा नाच सकीं अब तक-
जो भी हो पर काम मारता काया में अक्सर खोंचा, 
तन्हा हूँ पर तन की तपिश बुझानी भी तो पड़ती है-
सो हाथों की सेवा के ना सिवा कोई आधार।
दयानिधि अब  तो लो अवतार...!  
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70-  लाइक/कमेंट
सुबह-शाम जब ह्वाटसैप-एफबी पर यारों आता हूँ, 
पढ़ने से ज़्यादा तुम सबकी घटिया टैग हटाता हूँ, 
झूठा मैं लाइक-कमेंट दे देकर तेरी वालों पर-
बड़ी सफाई से मैं अपनी तुमको पोस्ट पढ़ाता हूँ,
मत मुग़ालते में मित्रों आना तुम मेरी लाइक के-
वो तो बिना पढ़े ही दे देता हूँ धूआंधार। 
दयानिधि अब तो लो अवतार...!



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71- बेटी से घृणा
बहू चाहिए सबको लेकिन बेटी देख घिनाते हैं, 
भूल गये बेटी के वालिद सेहरा उन्हें पिन्हाते हैं, 
सिर पर रखना जिन्हें चाहिए ठोकर उनको मार रहे-
जिनके पांव पूजने चहिए, उनसे पांव पुजाते हैं, 
हर कोई गर यही सोचकर बेटी पैदा नहीं करे-
फिर तो धीरे-धीरे मिट जायेगा ये संसार। 
दयानिधि अब तो लो अवतार...!
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72- बहुओं की चीत्कार
मांग में भर सिन्दूर, सजाकर सेहरा शीश पे लाते हैं, 
मेहंदी वाले हाथ चूमकर जिसकी सेज सजाते हैं, 
कुछ दिन में दहेज का दानव जब सिर पर चढ़ जाता है-
अपनी उसी प्रियतमा को फिर ये दिन-रात सताते हैं, 
गैस-किरोसिन आज तलक बेटी को नहीं जला पाये-
जहां भी देखो गूंज रही बस बहुओं की चित्कार। 
दयानिधि अब तो लो अवतार...!
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73-  टाइट फैशन
धोती-कुर्ता-पाजामा-लुंगी लद गयी जमाने से, 
ढीले कपड़े खत्म हो रहे टाइट फैशन आने से,
बेढब बदन बेड़ियों जैसे जकड़े इनमें लगते हैं-
और बिगड़ जाती है सूरत इनसे जिस्म सजाने में, 
कसे हुए कपड़ों को देख के यही कल्पना करता हूँ-
पास कहाँ से होती होगी इनसे गरम बयार। 
दयानिधि अब तो लो अवतार...! 
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74- परस्त्रीगमन
पुरुष पुराण-वेद-गीता पढ़ लाखों ज्ञान कूटता है-
लेकिन परस्त्री संग गमन न इसका कभी छूटता है, 
पत्नी शादीशुदा एक बेशक़ घर में मौजूद रहे-
फिर भी टाँग उठाये ये कुत्ते सा कहीं मूतता है,
भग के भवसागर में भीग के भाग्य भंग कर बैठे हैं-
कितने ज्ञानी-विज्ञानी-अभिमानी-ओहदेदार। 
दयानिधि अब तो लो अवतार....!
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75-  पाहुन
कौवों की बोली से पहले शगुन विचारा जाता था, 
उत्सव होता था घर में जब कोई पाहुन आता था, 
कई दिनों तक आवभगत होती थी उन मेहमानों की-
उन्हें खिलाकर ही पूरा परिवार बाद में खाता था, 
अब तो कुछ घंटों में सारे गेस्ट पेस्ट हो जाते हैं - 
नहीं रहे मेजबान पुराने ना वो रिश्तेदार
दयानिधि अब तो लो अवतार...!  
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76- नवरात्र
नव दिन के नवरातम् में ई बलमा हमरा भटक गया, 
गुस्सा बहुत बढ़ गयी उसकी,लगता जैसे सटक गया, 
व्रत मेरा बर्बाद कर दिया है उसकी हंसती दुनिया-
"पूजा कब है" इसी बात पर आ करके वो अटक गया, 
नवमी को कन्यापूजन कर उसको जब मैं पूजूँगी-
तभी उतर पायेगा उसके दिल का गरम बुखार। 
दयानिधि अब तो लो अवतार......!
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77- दशमीं  28.09.2017 
कुछ के नौ दिन व्रत में बीतें कुछ पहले आखिरी रहें, 
दारू-माँस-मशाला-लहसुन-प्याज आदि से फिरी रहें,
पर नवमीं पुजते पावक लग जाती उन्हीं शरीरों में-
जो नौ दिन खटियों पर भक्ती-भूख-भाव से गिरी रहें, 
कुछ खाने-पीने तो कुछ मैथुन-मदिरा में मस्त रहें--
सो दशमीं की सुबह मिले भक्तों में बहुत ख़ुमार। 
दयानिधि अब तो लो अवतार.....!  
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78- मुद्रा की महिमा
छैल छबीली महबूबाओं का मैं किशन कन्हैया था, 
बड़े-बड़े कस-बल वालों का बापू-मैया-भैया था, 
शिक्षा-दिक्षा-रूप-रंग-फ़न कम था फिर भी दौलत के-
होने से मैं कवि-लेखक-संगीतग और गवैया था, 
धन-पद-बल-रसूख़ था जब तक सबको बहुत महकता था-
पर अब वही फ़क़ीरी में लगता हूँ बदबूदार। 
दयानिधि अब तो लो अवतार.....!
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79- जनसंख्या विस्फोट 
शादी से बचने को बहुत बहाने सभी गढ़ रहे हैं, 
लड़की पर लड़की लड़कों पर लड़के खुदी चढ़ रहे हैं, 
खुलेआम ही गर्भपात हो रहा हजारों हर दिन पर-
बावजूद इसके भी लाखों बच्चे रोज़ अड़ रहे हैं, 
कॉपर-टी, निरोध, माला-डी, नसबन्दी होने पर भी-
नहीं रुक रही किसी तरह जनसंख्या की बढ़वार। 
दयानिधि अब तो लो अवतार.....!
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80- चुम्मों का संसार
किस्सी-चुम्मी-पप्पी-पुच्ची जाने क्या-क्या करते हैं, 
फ्रैंच और लिपलाक किसिंग में जीभें मुंह में भरते हैं, 
इतने चुम्मों की वरायटी पढ़ी-सुनी ना देखी है, 
जितने किस्मों के चुम्में इन युवा मुखों से झरते हैं, 
टेलीफोनिक-वायरलेस-फ्लाइंग किस- व्हाट्सैप तक ले-
इन बच्चों पे बहुत बड़ा है चुम्मों का संसार।
दयानिधि अब तो लो अवतार....! 



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81- जीजा
"साली आधी घरवाली" कह जीजा मुझे ताकता है, 
अपने पद-पैसे-पौरुष की डींगें ख़ूब हाँकता है,
मम्मी-दीदी का मज़ाक में उसको लेने का फल है-
अब तो अंगवस्त्र-बिस्तर-लैट्रिन में मेरे झाँकता है,
दिल करता है पंजा मारके उसका मुँह नोंचूं-खाऊँ-
जब दिखता उसकी आँखों में है सूअर का बार। 
दयानिधि अब तो लो अवतार......!
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82-  लवमैरिज
रूप-रंग का कुछ घमंड कुछ पढ़ने-लिखने का प्राइड,
घर से भाग बन गयी चिकने एक निखट्टू की ब्राइड, 
चूस के उसने कुछ दिन में धंधे पर मुझको बिठा दिया-
सो मैं जा भी नहीं सकूँ अब लौट आज घर की साइड, 
गोद बदलती रहती हूँ हर दिन ना जाने कितनों की-
यही सज़ा है मिरी छोड़ने का अपना घर-बार। 
दयानिधि अब तो लो अवतार.....!
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83-  परस्त्रीगमन 
जब दूजी को छूआ था तो अपनी नहीं सुहाती थी, 
लेकिन रखुई छोटी-छोटी बातों पर रिसियाती थी, 
अपनी को मारा-पीटा जैसै भी इस्तेमाल किया-
जो पहनाया पहनी जो दे दिया उसे हंस खाती थी। 
अपनी से ज्यादा खुशियां हैं नहीं कहीं ये तब जाना-
जब हर दर पे देख लिया हमने अपना मुँहमार। 
दयानिधि अब तो लो अवतार.....!
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84- बेवफ़ाई   29.09.2017 
मुझे छोड़कर मत जाओ प्रियतमा हमारी बेरुख़ बन, 
मेरे दिन फिर से आयेंगे तब चलना तुम भी बन-ठन, 
माना आज मुफ़लिसी मुझपे जीवन भी उलझा उलझा-
पर ये समय दिखाने का है तुमको मुझसे अपनापन, 
इन कंधों पर भार तुम्हारा तब तक मैं ढो सकता हूँ-
जब तक चल ना जाऊँ हो कंधों पर चार सवार। 
दयानिधि अब तो लो अवतार....!
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85- सास की कुटाई 
किसी सास में अब तक हमने माँ का रूप नहीं देखा, 
इक्का-दुक्का छोड़ के है दुनिया का ये जोखा-लेखा, 
वो भी कभी बहू थीं लेकिन बनते सास खींच डालीं-
अपने और पतोहू के दरम्यान नफ़रतों की रेखा, 
थोड़ी बहुत कुटाई उन सासों की बहुत ज़रूरी है-
जिन्होंने बहुओं का जीना कर डाला है दुश्वार। 
दयानिधि अब तो लो अवतार...! 
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86-  कवि
चार कवि आ धमकें तो बीवी तबियत से धोती है,
सो मेरी महफ़िल अब कुछ मय्यत के जैसी होती है, 
मुझको-मेरे ज़ानिसारों को सिर्फ़ निठल्ला समझ के वो-
उन्हें देखते गुर्रा करके अपना आपा खोती.........है, 
मुक्का सहकर मेहरारू का कवि मजमा लगवाता हूँ - 
कारण, कवि बनने की खुजली से हूँ मैं.......लाचार।
दयानिधि अब तो लो अवतार......!
................................................
87- कवि
चाय-नाश्ता-पेप्सी-कोला-दारू-लंच कराता..........हूँ 
तब मुश्किल से कविता सुननेवाला फाँस के लाता हूँ,
उस निरीह को अपनी गर्दभ धुन में ग़ज़लें चेंप सभी-
फिर दोबारा आने खातिर सौ ढंग से फुसलाता....हूँ,
कोमा में वे चले गये या तो 'इहबास' में भर्ती हैं-
मेरी शायरी के सदमें का जो हो गये शिकार। 
दयानिधि अब तो लो अवतार.....!
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88- कवि
शायर बनने की खुजली मुझको है उभर गयी जब से, 
घर की अर्थव्यवस्था दरहम-बरहम मेरी हुई तब से,
दर-दर गीत सुनाने की चाहत में यायावर होकर-
फटहे धोती-चप्पल में हो गया फटीचर हूँ कब से, 
"मेरे जैसा शायर अब तक नहीं धरा पर आया है"-
यही सोच ख़ुद पर आशिक़ हो शेखी रहा बघार। 
दयानिधि अब तो लो अवतार.....!
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89- कवि
मकड़ी के जालों जैसी कविताएँ रच के लाते हैं, 
सुननेवालों के मन का मर्दन कर खूब सुनाते हैं, 
दो ताली बज जाय वाह झूठी भी कोई कर दे तो-
कवि महोदय जहाँ भी देखो वहीं शुरू हो जाते हैं, 
सौ में से निन्यानवे तो बस अनल राग में गाते हैं - 
जिसकोे सुन श्रोता का जलता गुप्त जगह का बार।
दयानिधि अब तो लो अवतार...!
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90- कवि
सनद-मेडल खातिर भी पापड़ कई बेलने पड़ते हैं, 
हुक्मरान-नौकरशाहों के   ताप   झेलने    पड़ते हैं, 
ग़ैरत गिरवी रखकर स्तुति-निंदा की उंगली पकड़े-
चापलूस बन जोड़-तोड़ के दॉव  खेलने पड़ते हैं, 
अपने को बस प्यार-प्रशंसा मिल जाये वो बेहतर है-
बाकी  सनद-मेडल  जाये  अपनी माँ के  भगद्वार। 
दयानिधि अब तो लो अवतार...! 



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91-  नाराज़ गर्लफ्रैंड
फ्यूल-फोन-रेस्टोरेंटों का खर्चा कम हो जाता..........है
करवट बदल-बदल जो जागे, नाक बजा सो जाता...है,
फैशन-हेयरकटिंग-फिल्म-परफ्यूम आदि सब जोड़ो तो-
गर्लफ्रैंड रूठे तो बन्दा प्रॉफिट में तो जाता.............है,
काफ़ी ख़र्चा रूठी को लाइन पे लाने में लगता-
सो नाराज़ ही रहने दो तुम उस ससुरी को यार।
दयानिधि अब तो लो अवतार......!
................................................ 
92-  बुढ़ापा
वक्त जवानी का जो गुज़रा उसकी अपनी थाती थी, 
कानी,कोतड़,लूली,लंगड़ी,बुढ़िया भी चल जाती थी, 
तन में ताक़त, पर्स में पैसा जब तक पास हमारे था-
पूरी नारी ज़ात हमारे मन मन्दिर को भाती.......थी, 
उमर बढ़ गयी, शूगर घेरा, तन की जान जा चुकी है-
अब तो बस बटखरा झुलाये फिरता हूँ......मनमार।
दयानिधि अब तो लो अवतार.....!
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93-  नेतारूपी घरियार
सत्तर वर्ष हो गये पर पूअर का प्रोग्रेस सिफर रहा, 
भाषण-लेखन-नारों में बस इस मुद्दे का जिकर रहा, 
तेल बिना तलवे बच्चों के जिस कंट्री में सूख गये-
वहीं शुद्ध घी मूर्ति-चिता पर नदियों जैसा बिखर रहा,
पय-पूरी-पूआ-पुलाव-पनघट घी घोंट घपुच्चर बन-
लील देश को गये हैं कुछ नेतारूपी घरियार।
दयानिधि अब तो लो अवतार.....!
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94- कवि
मंच मुझे मिल जाये तो मुश्किल से उसे छोड़ता हूँ, 
कविता बेदम, वाणी मद्धम तब भी तान तोड़ता हूँ, 
झूठे संस्मरण, चुटकुल्ले, आँखों में आँसू भरकर-
ड्रामा करके भावुकता का महफ़िल साथ जोड़ता हूँ, 
अपनी सुना झुका सर चुपके से कल्टी हो जाता हूँ-
बाकी कौन जा रहा सुनने औरों की........सुरधार। 
दयानिधि अब तो लो अवतार...!
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95-  नीतिनियंता   02.10.2017
नीति नियंताओं की नाकामी से कंट्री जूझ रही, 
दर्द सुनानेवाली ड्योढ़ी नहीं एक भी सूझ रही, 
शासन और प्रशासन अपना घर भरने में बीजी हैं - 
जनता की ज़हमत कोई सरकार नहीं है बूझ रही, 
सारे संकट के स्वामी तो संसद में ही शोभित हैं -
वहीं से सत्तर वर्षों से कर रहे हैं........बंटाधार।
दयानिधि अब तो लो अवतार...! 
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96-  बेवफ़ा औरत
एक पुरुष मेहनत मज़दूरी करके जिसको था पाला, 
दारुण दुख सह करके झाड़ा जिसके जीवन का जाला, 
अंकशायिनी-लालचवश वो स्त्री बन करके..........तेरी-
पति-परिवार छोड़ कहती जब पहना दो तुम वरमाला-
अपना सबकुछ छोड़ तेरे संग भाग रही जो औरत है-
तेरी वफ़ादार होगी तू करना मत...............यतबार।
दयानिधि अब तो लो अवतार......!
................................................
97- नारी शोषण 
"जहां नारियां पूजी जातीं वहीं देवता रहते है", 
दुनिया के हर धर्मग्रंथ ये बात एक स्वर कहते हैं
पर इतिहास अगर स्त्री का कभी उठाकर देखो तो-
इनकी आंखों से रक्तिल आँसू ही अविरल बहते हैं, 
पूजा क्या बस प्रजनन-अय्याशी का इनको माल समझ-
होता आया है इनके संग...............शोषण-अत्याचार।
दयानिधि अब तो लो अवतार.....!
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98- पशुरूपी मानव
एक पशू को देखो तो उसकी भी जीवनशैली है, 
पर मनुष्य की सोच-समझ-सूरत ही सारी मैली है
जहां पशू मन-मुंह-ऋतु पाये बिन सहवास नहीं करता-
वहीं पुरुष में जाने कैसी काम अग्नि की थैली है, 
उसके लिए नहीं वर्जित है चाहे स्त्री कोई हो-
बच्ची-बुढ़िया-रजस्वला-पागल-सनकी-बीमार।
दयानिधि अब तो लो अवतार.....!
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99- जनसेवक
बोर्ड एनजिओ का गाड़ी पे गले में सोना- पारद है, 
ठाले-झगड़ालू-भसण्ड लड़कों की छोटी गारद है, 
बिन पूँजी बिजनेस करनेवाले शातिर 'जनसेवक' जी-
बोलचाल में माहिर थे सो कृपा किये माँ शारद है,
वैसे भाषण सुनने पर तो लगता है जननेता हैं -
लेकिन कई किस्म के वो करते हैं.....दुर्व्यापार।
दयानिधि अब तो लो अवतार...!
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100- लवमैरिज 
मां-बापू-रिश्तेदारों की च्वॉइस पहले चलती थी, 
उनके आशीषों से शादी खूब फूलती-फलती थी
'लव मैरिज' का नया चलन चल गया ज़माने में जबसे-
तबसे पशेमान पीढ़ी है,पहले हाथ न मलती थी, 
माचोमैन-मनीवाला दुल्हा लड़कियां ढूँढ़ती अब- 
लड़के ढूंढ रहे डिक्की-बोनट में सिर्फ उभार।
दयानिधि अब तो लो अवतार...!



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राजेश्वर राय/8800201131


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