उद्यान निरीक्षक संजीव कुमार ने बहुत कम समय में भ्रष्टाचार से बनाई करोड़ों की सम्पत्ति:

 


(मामला: गाजियाबाद विकास प्राधिकरण, उद्यान विभाग)


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गाज़ियाबाद: हमारे देश की ये सदियों पुरानी समस्या रही है कि हम यहां कभी भी ये कतई आकलन नहीं कर सकते कि सामने वाला कोई कितना पॉवरफुल और धनवान है। थोड़ा पीछे मुड़कर देखें तो मध्य प्रदेश का उदाहरण ले सकते हैं,जहां पिछली भाजपा सरकार में कई चपरासी और पटवारी ऐसे पकड़े गये जिनपे अरबों की बेनामी संपत्ति बरामद हुई। ये कोई मध्य प्रदेश तक ही सीमित नहीं है बल्कि पूरे भारत में इसका उदाहरण देखा जा सकता है। दरअसल ये वो लोग हैं जो उच्चाधिकारियों और ठेकेदारों/व्यापारियों के बीच की एक मजबूत कड़ी होते हैं जो उगाही/भ्रष्टाचार का माल से इधर-उधर करने तथा उसे ठिकाने लगाने का कार्य करते हैं और इस सारी कसरत में उस कालेधन का एक बड़ा हिस्सा चट कर जाते हैं और कम समय में ही मालामाल हो जाते हैं, यानि "चोरों का माल सब चोर खा गये" वाली कहावत चरितार्थ करते हैं।


ऐसा ही एक मामला गाजियाबाद विकास प्राधिकरण का प्रकाश में आया है, जिसमें प्राधिकरण के उद्यान विभाग में कार्यरत उद्यान निरीक्षक संजीव कुमार जिसकी भर्ती बैक लॉग से कोटे (अनुसूचित) के तहत 2006 में होती है और देखते ही देखते एक दशक में वो करोड़ों की चल-अचल संपत्ति का मालिक हो जाता है। अभी हाल में ही उसने गाज़ियाबाद के पॉश एरिया 'स्वर्ण जयंती पुरम्' में 200 (दो सौ) वर्गगज का एक प्लाट और एक वैगन आर खरीदी। उसके जीडीए द्वारा आबंटित मकान की सजावट देखकर कोई भी हैरान हो जायेगा, उसके सामने जिलाधिकारी निवास फेल है।


आखिर कहां से आया संजीव कुमार पर कालाधन
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जीडीए के उद्यान निरीक्षक संजीव कुमार की काली कमाई के बारे में जानने के लिए थोड़ा पीछे जाना पड़ेगा। पूर्व में जब एस०पी० शिशौदिया जीडीए में अपनी सपा, बसपा सरकारों में गहरी
पैठ के चलते स्थानांतरण नियमों को धता बताते हुए एक दशक से ऊपर जमे रहे थे, तो उनके काले साम्राज्य को यही संजीव कुमार ही संभालता था। चूंकि शिशौदिया की गिनती अतिशय भ्रष्ट अधिकारियों में होती थी, उनकी अन्य नामों से कई ठेकेदार फर्म्स चलती थीं, सो ऐसे में उन्हें किसी विश्वस्त आदमी की जरूरत थी जो उनका सारा कुछ मैनेज और मॉनीटर कर सके। ऐसे में उद्यान अधिकारी एस०पी० शिशौदिया और उद्यान निरीक्षक संजीव कुमार की रंगा-बिल्ला की जोड़ी का आविर्भाव हुआ और इन्होंने मिलकर जीडीए को खूब लूटा। सूत्रों से ये खबर है कि संजीव कुमार ने जीडीए की नर्सरी के पौधों को बेचने के लिए एक प्राइवेट कारिंदा रखा हुआ है और फ़र्जी़ रसीद बुक छपवा रखी है, जिससे ये पैसा प्राधिकरण कोष में न जाकर सीधे इसकी जेब में जा रहा है।


इस बीच सूबे में सरकार बदली, योगी के मुख्यमंत्री होने के बाद शिशौदिया लखनऊ विकास प्राधिकरण स्थानांतरित हो गया और अब फिर से मौजूदा सरकार में अपनी साठ-गांठ बनाकर पुनः हफ्ते में दो दिनों के लिए अपनी पार्ट टाइम ड्यूटी कथित निदेशक पद पर करवा ली है, परंतु इसके पीछे उसका मुख्य उद्देश्य अपने वसूली सिंडीकेट को संरक्षण देना है। अभी शिशौदिया के आने से जीडीए उद्यान विभाग में निरीक्षक संजीव कुमार की फिर से पूरी तूती बोल रही है और ये बैक टू बैक बेनामी संपत्तियां बना रहा है। अब इस खुलासे के बाद देखना ये काफी दिलचस्प होगा कि प्राधिकरण उपाध्यक्ष कंचन वर्मा और मुख्यमंत्री योगी इस संजीव+शिशौदिया की दुरभि संधि पर क्या संज्ञान लेते हैं।


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