"ओ मेरे मन".......(पुस्तक समीक्षा)



'ओ मेरे मन...' : समर्पित प्रेम की ग़ज़लें
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'ओ मेरे मन...' कवयित्री ममता शर्मा 'अंचल' का प्रथम ग़ज़ल-संग्रह है, जिसमें 97 हिंदी ग़ज़लें संकलित हैं। उनकी ग़ज़लें पढ़कर ऐसा लगा जैसे वे भावनाओं के समंदर में डूबती-उतराती हुई अपने अगले पड़ाव की ओर तेज़ी से बढ़ी जा रही हैं। कल्पना के पंखों पर सवार होकर वह मन के सीमाहीन अंतरिक्ष की सैर करती दिखाई देती हैं। ऐसा महसूस होता है कि वह सिर से पाँव तक दिल ही दिल हैं।


प्रख्यात ग़ज़लकार डा. कृष्णकुमार 'नाज़' ने पुस्तक में 'अस्तित्व का संपूर्ण समर्पण' शीर्षक से दिए गए अपने वक्तव्य में लिखा है- ''ममता मासूम अहसासों की चितेरी कवयित्री हैं, वह भगवान श्रीकृष्ण की पुजारिन हैं, वह कृष्ण की बाँसुरी हैं। बाँसुरी, यानी प्रेमी का हृदय। बाँसुरी, यानी अपने अस्तित्व का संपूर्ण समर्पण। बाँसुरी, यानी संगीत को पाने का रहस्य। बाँसुरी के पास सब कुछ होते हुए भी अपना कुछ नहीं होता। सब कुछ प्रेम के साथ प्रेमी को समर्पित है। प्रेमी चाहता है, तो वह मधुर स्वर निकालती है। प्रेमी ख़ामोश हो जाता है तो वह भी ख़ामोश हो जाती है। बाँस की पोंगरी से बाँसुरी बनने तक की यात्रा एक अविरल तपस्या ही तो है।''वहीं ग़ज़लकार अशोक अंजुम लिखते हैं- ''ममता जी की झोली अहसासों से चकाचक है। उनके अश'आर दिल से दिलों की दूरी तय करने में कोई कोताही नहीं बरतते।''



पुस्तक के फ्लैप पर प्रसिद्ध गीतकार सोम ठाकुर लिखते हैं- ''मैंने पाया है कि 'अंचल' ने ग़ज़ल की सारी अपेक्षाओं का बड़े कौशल के साथ पालन किया है। उनका कथ्य तो जीवन के सारे पार्श्वों का स्पर्श करता ही है, उनकी अभिव्यक्ति भी सर्वसुगम है। रचनाओं की भाषा न कठिन है और न सरल वरन् वह भाव के साथ जन्मी सहज भाषा है। मेरा विश्वास है कि उनकी रचनाओं का सुधी पाठकों द्वारा समुचित स्वागत किया जाएगा।''
वहीं दूसरे फ्लैप पर प्रख्यात गीत-ग़ज़लकार डा. कुँअर बेचैन लिखते हैं- ''सुश्री ममता शर्मा का यह ग़ज़ल-संग्रह कअपनी नई छटा के साथ हिंदी-ग़ज़ल-संग्रहों की क़तार में अपनी ज़ोरदार उपस्थिति दर्ज करा रहा है। ग़ज़ल का प्रमुख विषय यूँ तो प्रेम रहा है और प्रेम में भी मुख्यतः विरह, ...और इसी प्रेम को आराध्य बनाकर इश्क़-मजाज़ी के रास्ते से होकर इश्क़-हक़ीक़ी तक पहुँचने का लक्ष्य- साधन भी। मुझे प्रसन्नता है कि ममता शर्मा ने इस तथ्य को समझकर उसे आत्मसात भी कर लिया है। यही कारण है कि वे अनुपम सौंदर्य-चेतना से जाग्रत दिव्य प्रेम को उस मुक़ाम तक ले आई हैं, जहाँ ब्रह्म और आत्मा की तरह प्रेमीजन एक-दूसरे से यह कहते हैं-



मैं तुममें, तुम मुझमें प्रियतम
इक-दूजे को क्यों ढूँढें हम


ग़ज़लों की भाषा आम बोलचाल की हिंदी है, जिसे समझने में किसी को भी कोई कठिनाई नहीं हो सकती। उन्होंने शेर बातचीत के लहजे में कहे हैं। जैसा महसूस किया, वैसा ही लिख दिया। ममता जी जानती हैं कि वासना सागर की ओर बहती नदी की भाँति है, जबकि सागर स्वयं प्रेम का भंडार है। वासना बहाव है, खिंचाव है, तनाव है जबकि, प्रार्थना स्वयं में विश्रांति है। जहाँ वासना है, वहाँ लालच है; जहाँ प्रेम है, वहाँ समर्पण है। ममता जी का प्रेम भी वासना रहित है। उसमें स्थान-स्थान पर समर्पण के दर्शन होते हैं। कुछ सुंदर शेर देखिए-


टूट-टूटकर जुड़ी डोर मेरे मन की
किंतु न छू पाई मैं देहरी यौवन की
कहा उम्र ने मुझसे, बड़ी हो गई मैं
खोजा जब, तो पाई मूरत बचपन की
कहा वक़्त ने, पगली! कँगना पहन ज़रा
पहने तो आवाज़ न आई खन-खन की
पीड़ा मुस्काई तो ग़म भी मीत हुआ
दुनिया को दुनिया भायी मुझ विरहन की


मुझे विश्वास है कि साहित्य के सुधी पाठकों को इस पुस्तक की रचनाएँ निश्चित रूप से अपनी ओर आकर्षित करेंगी और यह पुस्तक साहित्यिक समाज में अपनी ज़ोरदार उपस्थिति दर्ज़ कराएगी।
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पुस्तक का नाम : ओ मेरे मन...
पृष्ठ संख्या : 120, मूल्य : 200/- रुपये
प्रकाशक : दृष्टि प्रकाशन, जयपुर।
कवयित्री : ममता शर्मा 'अंचल',
3/73 काला कुआँ हाउसिंग बोर्ड अलवर (राजस्थान)-301001, मोबाइल : 72200-04040
Email : ms6843142@gmail.com
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समीक्षक : पीयूष शर्मा, (साहित्यकार)
ख़यालगो पंडित श्री लल्ला महाराज साहित्यिक सदन, मोहल्ला अफ़रीदी, छोटा चौक, शाहजहाँपुर (उ.प्र.)
मोबाइल : 92609-88451
Email : piyushspn9@gmail.com
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प्रस्तुति: डाटला एक्सप्रेस/गाज़ियाबाद, उ०प्र० से प्रकाशित/ 26 अप्रैल 2019/संपादक: राजेश्वर राय 'दयानिधि'/email: rajeshwar.azm@gmail.com/datlaexpress@gmail.com/दूरभाष: 8800201131/व्हाट्सप: 9540276160



कवयित्री: ममता शर्मा 'अंचल'



समीक्षक: पीयूष शर्मा


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