अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर अधिवक्ता सोनिया बोहत को मिला वूमन एंपॉवरमेंट का विशेष अवार्ड:


डाटला एक्सप्रेस


नई दिल्ली:-अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस (8 मार्च ) पर आयोजित कार्यक्रम में देश की महान हस्तियों ने शिरकत की। इस कार्यक्रम में अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी, फिल्म जगत की हस्तियां, मॉडलिंग, शिक्षा जगत, समाज सेवा, पत्रकारिता इत्यादि क्षेत्रों से कुछ महान हस्तियों को अवार्ड से नवाज़ा गया। इस कार्यक्रम का आयोजन डीडी न्यूज़, डीडी दिव्या, आज की दिल्ली, वाईपी फिल्म प्रोडक्शन हाउस, आलंबन चैरिटी ट्रस्ट की तरफ से किया गया। अधिवक्ता सोनिया बोहत ने अपने संबोधन में में कहा कि.....


"महिला सशक्तिकरण के बारे में जानने से पहले हमें यह भी जान लेना चाहिए कि महिला सशक्तिकरण का क्या तात्पर्य है। क्या यह किसी व्यक्ति की क्षमता से संबंधित है, जहां महिलाएं परिवार-समाज के सभी बंधनों से मुक्त होकर अपनी निर्माता खुद हों या अपनी निजी स्वतंत्रता का फैसला लेने का अधिकार देना ही महिला सशक्तिकरण है। परिवार-समाज की सभी बन्दिशों को तोड़ते हुए वे अपने भविष्य की निर्माता खुद बनें। उन्हें अपने फैसले खुद लेने देना, उनके अधिकार, विचार, शिक्षा, दिमाग हर पहलू से महिलाओं को सशक्त बनाना, उन्हें स्वतंत्र बनाना ही महिला सशक्तिकरण है। समाज के सभी क्षेत्रों में पुरुष और महिला दोनों को बराबरी में लाना होगा, समाज, परिवार के उज्ज्वल भविष्य के लिए महिला सशक्तिकरण बेहद जरुरी है, इसलिए महिलाओं को स्वच्छ वातावरण की बहुत जरूरत है, जिससे कि वह हर क्षेत्र में अपना खुद का फैसला ले सकें। देश,परिवार, समाज किसी के लिए भी हो विकास बहुत ज़रूरी है, इस देश में आधी आबादी महिलाओं की है, इसलिए देश को पूरी तरह से विकसित बनाने में महिलाओं की भूमिका बहुत जरुरी है, इसीलिए उचित वृद्धि और विकास के लिए हर क्षेत्र में महिलाओं का स्वतंत्र होना बहुत जरूरी है।


एक महिला एक बच्चे को जन्म देती है, राष्ट्र के उज्ज्वल भविष्य को बनाने में सबसे बेहतर तरीका एक महिला के पास होता है, इसलिए राष्ट्र निर्माण में महिला अहम योगदान प्रदान कर सकती है। 21वीं सदी की नारी को नवीन मूल्यों को जानना होगा, और समाज में परिवर्तन के लिए आगे आना होगा, तभी महिला सशक्तिकरण का सपना साकार हो सकता है। वैदिक काल में नारी को पुरुष के समक्ष सम्मानजनक स्थान प्राप्त था, लेकिन दुर्भाग्यवश नारी की स्थिति में परिवर्तन आया, इस 21वीं सदी की नारी को नवीन मूल्यों के सृजन एवं नूतन समाज की संरचना के लिए आगे आना होगा। नारी की सम्मानित भूमिका तभी साकार हो सकती है।



संविधान में महिला को समान अधिकार है, यदि संविधान में स्त्री और पुरुष को एक समान अधिकार दे रहे हैं तो फिर हम सामाजिक तौर पर समान अधिकार क्यों नहीं दे रहे,कहने को तो राष्ट्रपति, राज्यपाल, मुख्यमंत्री भी बनी हैं, लेकिन फिर भी आज तक परिवर्तन पूरी तरह नजरद नहीं आया। महिला सशक्तिकरण तभी संभव हो सकता है, जब महिलाओं में अपने अधिकारों के प्रति सचेत होने की भावना व स्वाभिमान की भावना जागृत हो। सकारात्मक परिवर्तन से ही महिलायें सामाजिक, शैक्षणिक, राजनीतिक एवं आर्थिक रुप से ज्यादा मजबूत हो सकती हैं। 50प्रतिशत हमारे देश में महिलाओं की आबादी है, लेकिन फिर भी हमारे अंदर कहीं न कहीं सशक्तिकरण की कमी है, जहाँ हमारा देश प्राचीन समय से अपनी सभ्यता संस्कृति विरासत, परंपरा, धर्म, भौगोलिक विशेषताओं के लिए जाना जाता है वहीं दूसरी तरफ यह पुरुषवादी राष्ट्र के रूप में भी जाना जाता है, फिर दूसरी तरफ यहाँ महिलाओं को पहली प्राथमिकता दी जाती है। समाज में और परिवार में उनके साथ बुरा व्यवहार किया जाता है,वह घर की चारदीवारी के बीच में आ जाती हैं, और उनको सिर्फ पारिवारिक जिम्मेदारी ही समझाई जाती है, उनको उनके अधिकारों से दूर रखा जाता है। जब तक उनको उनके अधिकारों से दूर रखा जाएगा तब तक वे राष्ट्र निर्माण में अच्छी भूमिका नहीं निभा सकतीं। भारत के लोग इस देश को मां का दर्जा देते हैं, लेकिन मां के असली अर्थ को कोई नहीं समझ पाता, इसलिए महिलाओं का सबसे महत्वपूर्ण औजार शिक्षा है, जिसके द्वारा उसे सक्षम बनाया जा सकता है। भारतीय सविधान के अनुसार पुरुषों की तरह सभी क्षेत्र में महिलाओं को बराबरी का अधिकार देने के लिए कानूनी प्रावधान तो है लेकिन वह सिर्फ संविधान तक ही सीमित है। महिला दिवस पर देश की हर संघर्षरत महिला को मेरा सर झुका कर नमन।"


 


डाटला एक्सप्रेस
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