"मदिरा पान की मस्ती, गृहिणी की उजड़ी गृहस्थी"
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यह मदिरा की लत मस्ती ने,
पति के जीवन को है जकड़ा!
पत्नी के दिल में दर्द बढ़ा,
उनमादी प्याला क्यों पकड़ा!
मदिरालय में बिकती मस्ती!
मिट जाती जीवन की हस्ती !
पी मदिरा गिरा बेहोशी में!
मद मस्त मगन मदहोशी में!
नित गृहकलेश की चिंता से ,
मुरझाया गृहिणी का मुखड़ा!
यह मदिरा की लत मस्ती ने ,
पति के जीवन को है जकड़ा!
वह सदा नशा में लिप्त रहा!
हर कर्तव्यों से रिक्त रहा!
अर्थ विवेक सब व्यर्थ गया!
तन मन शक्ति,पुरूषार्थ गया!
जो बात-बात पर लड़ता है,
आए दिन करता है लफड़ा!
यह मदिरा की लत मस्ती ने,
पति के जीवन को है जकड़ा!
चख भ्रमित हुई मुर्छित काया!
फिर लोटा पोटा चिल्लाया
जग जड़ चेतन से शून्य हुआ!
वह मृतक पिण्डिका तुल्य हुआ!
आँखों से आंसू झर झर बह,
रो रो कर सुनाती बस दुखड़ा!
यह मदिरा की लत मस्ती ने,
पति के जीवन को है जकड़ा!
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रचनाकार: कुंदन उपाध्याय 'जयहिंद'
मोबाइल: #8076277164
प्रस्तुति: डाटला एक्सप्रेस 8/2/2019