'कुंभ' आस्था का महासागर


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(प्रस्तुति: डाटला एक्सप्रेस (साप्ताहिक)/गाज़ियाबाद, उ०प्र०/13 से 19 फरवरी 2019/बुधवार/संपादक: राजेश्वर राय 'दयानिधि'/email: rajeshwar.azm@gmail.com/datlaexpress@gmail.com/दूरभाष: 8800201131/व्हाट्सप: 9540276160
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कुंभ ......सनातन धर्म के वास्तविक उद्घोष 'हर - हर गंगे' के जयकारे के साथ एक आस्था का समुद्र हिलोरें ले रहा है।आप विस्मित हो देखने की चेष्टा कर रहे कि यह कौन सी शक्ति है, यह कैसा विश्वास है जो इन सबों को एक कड़ी में पिरोये हुए है, जहाँ दुनिया सोशल साईट पे कुछ एक फ़ोटो फ़ॉरवार्ड कर अपने को धार्मिक मान रही, जहाँ पड़ोस के मंदिर में गये साल हो गया वहाँ ये कौन सा यज्ञ है जहाँ आहुति देने की होड़ लगी है। छोटे छोटे बैग, सर पे लदी टोकरियों में कोई फ़र्क़ नज़र ना आ रहा, ग़रीब-अमीर-स्त्री-पुरुष-जाति कोई अनुमान ना लगा सकते, बस यह सैलाब है जिसके हरेक क़तरे का जय-जयकार है “विश्व का कल्याण हो“....क्या ऐसा विश्व के कल्याण का सोचने वाला कोई और समूह है...? करोड़ों हृदय बस अपनी गंगा मैया की शरण में आए हैं .....वो डुबकी लगाते हैं, थोड़ी दूरी पर धूल में लोट रहे सायबेरियन पक्षी भी उनका अनुसरण करने की कोशिश कर रहे हैं, शायद उनमें भी मानव योनि मिलने की आस जग चुकी है।


विहंगम दृश्य:
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गाँव के गाँव दिख रहे, पूरी जनता आयी है,अशक्त से पहलवान तक हर तरह के लोग जो दसियों किलोमीटर चल के आ रहे एक दम से उल्लसित दिख रहे हैं। कुछ चुहलबाज़ी के मूड में तो कुछ हिमालय की तरह गंभीर लेकिन गंगा में नहाते उन्हें सूर्य को जल देते देखिए शायद ही कोई फ़र्क़ दिखे। सबकी आँखों में सिर्फ़ निश्छल प्रेम और विश्वास है। सनातन कृतज्ञ है नदियों का, पहाड़ों का, जंगलों का,सनातन भूलता नहीं है किसी के उपकार को वो झुक जाता है सम्मान में, वो "मइया“ बना लेता है, वो हाथ जोड़ लेता है क्या तुलसी, क्या गाय और क्या गंगा मैया सब पूज्य हैं उसके लिए।


पृथ्वी अपने नियम से मजबूर हो धूरी पे ज़रूर नाच के दिन और रात कर रही हो, धरातल पर एक बजे रात को भी उतना ही उजाला है जितना दिन में था। सफ़ायी वाले, फेरी वाले, बसें सब उतने ही जोश में रात -दिन काम कर रहे हैं। पोलिस वालों का व्यवहार किसी "प्रोपर्टी रिशेप्शन" वाले के माफ़िक़ एक दम शालीन है, व्यवस्था एक दम बढ़िया।


सुबह की आहट
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कुछ घंटों में सुबह हो जाएगी रश्मिरथी (सूर्य) की किरणें फिर उमंग का संचार करेंगी, और इस ठंड में भी श्रद्धालु ख़ुशी-ख़ुशी गंगा मैया के आँचल में खेलेंगे, माँ भी सालों साल बाद आए अपने बच्चों को देर तक दुलराएगी, आखिर सम्बंध भी तो यही है माँ और बच्चों वाला। ऐसे महान क्षण में पाप कटना, ना कटना कोई मायने रखता है क्या....?? और भला माँ के आँचल में खेलते बच्चे कभी पापी हो सकते हैं क्या....??



आएँ कुंभ में और साथ लायें अपनी नयी पीढ़ी को भी ताकि वो जान पाएँ कि आस्था में कितनी ताक़त होती है, आर्यावर्त की हज़ारों साल की परम्पराओं की रीढ़ कहाँ है, विविधता में एकता क्या होती है, प्रयाग नाम का महत्व क्या है ....?


प्रयाग
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'प्र' का अर्थ होता है बहुत बड़ा तथा 'याग' का अर्थ होता है यज्ञ। "प्रकृष्टों यज्ञो अभूद्यत्र तदेव प्रयाग" इस प्रकार इसका नाम ‘प्रयाग’ पड़ा। और आख़िरी में हम गर्व करें कि हम उन परम्पराओं के वाहक हैं जिसके “धार्मिक सिंहगर्जनाओं“ का भी मूल तत्व सिर्फ़ और सिर्फ़ “वसुधैव कुटुम्बकम्” ही है।



 


अनुभूति: डॉ० जे० एन० झा (हृदयरोग विशेषज्ञ)
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