किस मुँह से ध्वज फहराओगे...? /राजेश्वर राय 'दयानिधि'

किस मुँह से ध्वज फहराओगे (52 पद) 



(1)
जब स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र मनाने जाओगे,
तुम अपनी कथनी-करनी में जब भारी अन्तर पाओगे,
तो शीश उठाकर फिर कैसे झंडे से आँख मिलाओगे.?
अपराधबोध मन में लेकर,किस मुँह से ध्वज फहराओगे.?



(2)
जो बजे बिगुल या शहनाई वो मेरे लिए मर्शिया है-
हम हैं ग़रीब हिस्से मेरे आँसू की फसल शर्तिया है,
सत्तर वर्षों से होठों पर संगीत नहीं गूँजा अब तक-
ग़मज़दा बना हम जनता को,क्या राष्ट्रगान गा पाओगे..?
किस मुँह से ध्वज फहराओगे...?


(3)
हम रोटी खातिर रोते तुम, ब्रेड जाम लगाकर चाभ रहे,
ऊपर से दूध-दही-मक्खन-फल-फूल-सब्ज़ियाँ दाब रहे,
तुम भू-स्वामी को भूमिहीन करने का कुटिल कर्म करके-
उसकी ज़मीन 'सेज़ों' में ले, ख़ुद अपनी 'सेज' सजाओगे।
किस मुँह से ध्वज फहराओगे...?


(4)
तुमको थी आयी छींक और मंत्रालय हेल्थ हिल गया था,
फॉरेन में चेकअप टूर खातिर चाटर ही प्लेन मिल गया था,
हम मर जायें तो भी ना मिलता मुर्दावाहन ढोने को-
तुम बाजे-गाजे-चंदन से अपना शवदाह कराओगे।
किस मुँह से ध्वज फहराओगे...?
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(5)
कल आये थे तुम मेरे दर, कर जोड़े और झुकाये सर-
विजयी हो करके हे कौए, हो गये बाज तुम उपजे पर,
तुम एक पाट पहले ही थे, अब ये तेरे चमचे अफ़सर-
इन दोनों पाटों में अब हम जनता को तुम दरवाओगे।
किस मुँह से ध्वज फहराओगे...?
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(6)
हम गरीब अब तक अपने डिस्टिक सेंटर तक नहीं गये-
पूरा जीवन खट खेतों में दो रोटी भर को नहीं भये,
मेरे ही वोटों के बल पर राजा बाबू तुम बन करके-
अनुदानों से ही अब मेरे तुम विश्वभ्रमण को जाओगे।
किस मुँह से ध्वज फहराओगे...?
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(7)
कितने अरमानों से हमने तुमको अपना विश्वास दिया,
उन आशाओं - उम्मीदों का तुमने है सत्यानाश किया,
जिस जनता ने सर पर तेरे ये ताज सजाकर भेजा है,
उसको सत्ता में आने पर तुम 'टोपी' ही पहनाओगे।
किस मुँह से ध्वज फहराओगे...?
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(8)
विद्या पर कुछ हक़ था मेरा,पर वो भी अब तो ऐंठी है,
लक्ष्मी से करके सॉठ - गाँठ,उसके ही घर जा बैठी है,
देसी बच्चों के हाथों से, कॉपी-किताब-पिंसिल लेकर-
तुम अपने शोहदे बच्चों को,परदेशों में पढ़वाओगें।
किस मुँह से ध्वज फहराओगे...?
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(9)
जीवनभर जज़्बातों से तुम जनता के खेले-खाये हो,
जो उमर हुई तो अपनी संतानों को आगे लाये हो,
कुछ भी हो लेकिन हाथों से डोरी ना छूटे सत्ता की-
सो उसकी खातिर दुनिया के हर दॉवों को अज़माओगे।
किस मुँह से ध्वज फहराओगे...?
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(10)
तुम नोकट जोनों में रहते,क्या जानोगे बिजली किल्लत,
कोई मौक़ा-आयोजन हो, हो जाती है कितनी ज़िल्लत,
वोटों खातिर माफ़ी-मुफ्ती-चोरी भी होने देते हो-
बाक़ी सत्ता में आकर केबल-कँटिया ही डलवाओगे।
किस मुँह से ध्वज फहराओगे...?
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(11)
तुम खुद आदी गैंगस्टर हो,हम तेरा क्या कर पायेंगे,
औक़ात कहाँ मेरी तुमको, हथड़ियों में भर पायेंगे,
बेहतर होगा ख़ामोशी से सर नीचा कर जी लें ऐसे-
आवाज़ उठाये तो हमको तुम डंडों से फुड़वाओगे।
किस मुँह से ध्वज फहराओगे...?
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(12)
सुख बँटता है ऊपर से वो नीचे तक जाके लुप जाता,
दुःख बंटता है नीचे से वो ऊपर तक जाके छुप जाता,
मनरेगा में मज़दूरी का खाता मेरा ना खुल पाया-
तुम स्विस जा के झूठे नामों से खातों को खुलवाओगे।
किस मुँह से ध्वज फहराओगे...?
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(13)
लाखों खर्चा करके वे डिगिरी-डिप्लोमा लाते हैं,
फिर भी बेचारे बच्चे दर-दर की ठोकर खाते हैं,
लिखनेवाले हाथों में तुम पेन पकड़ाने के बदले-
यार पकौड़े तलने खातिर पौना ही पकड़ाओगे।
किस मुँह से ध्वज फहराओगे...?
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(14)
जो अनुदान करोड़ों का सरकारी बँटने आया था,
जगजाहिर है ज़ालिम तूने उसमें जी भरके खाया था,
सुविधाओं की गंगा का मुँह अपने घर को मुड़वाकरके-
तुम हम दीनों को अंजलिभर पानी खातिर तरसाओगे।
किस मुँह से ध्वज फहराओगे...?
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(15)
कितने ही कानून यहाँ वर्षों से बेबुनियादी हैं,
लेकिन जम गयीं जड़ें उनकी वे इतने अधिक मियादी हैं,
गर कभी अदालत किसी समिक्षा-संशोधन को बोलेगी-
तो तुष्टिकरण खातिर तुम तो अध्यादेशों को लाओगे।
किस मुँह से ध्वज फहराओगे...?
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(16)
मंचों से भाई-चारे की तकरीरें गढ़ते रहते हो,
अपने हर पाप परायों की पीठों पे मढ़ते रहते हो,
भाई-भाई का मिल-जुलकर रहना भाता है नहीं तुम्हें-
उनको भिड़वाने खातिर दिन-रात यार भरमाओगे।
किस मुँह से ध्वज फहराओगे...?
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(17)
एक - एक से महापुरुष इस हिन्द भूमि पे आये हैं,
अपनी धरती को छोड़ो तुम, वो विश्व पटल पे छाये हैं,
उनका पैग़ाम-नाम उनकी ही मातृभूमि से ख़ारिज़ कर-
जीते जी अपनी मूरत को तुम जगह-जगह लगवाओगे।
किस मुँह से ध्वज फहराओगे...?
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(18)
एक गया दूजा आया, सिलसिला यही बस क़ायम है,
सिंहासन मिलते ही समझो, हो गया सिरे से दायम है,
कुछ काम नवीन नहीं करना,आदत में तेरी शामिल है-
बस पिछली सरकारों की लाखों कमियाँ ही गिनवाओगे।
किस मुँह से ध्वज फहराओगे...?
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(19)
जेठ माह में घर तेरा कुछ माघ - पूस सा होता है,
पर आम आदमी बिजली बिन पंखे-कूलर के सोता है,
पैरालिसिस पॉलिसी को मारे या देश फ़क़ीर बने-
तुम तो संसद की सर्दी में जी आँख मूँद सो जाओगे।
किस मुँह से ध्वज फहराओगे...?
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(20)
निर्भय होकर शुरू-शुरू में तुम ग़रीब के लिए लड़े,
फिर इन्हीं ग़रीबों के बलबूते तुम सत्ता के बुर्ज़ चढ़े,
तुम चना नहीं पाये जीवन में, चोटा घोल-घोल पीये-
पर अब व्हिस्की संग डीनर में, तुम मुर्ग़े ही भुनवाओगे।किस मुँह से ध्वज फहराओगे...?


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(21)
जहां ग़रीबीवश नंगे फैशन का चलन पुराना है,
वहां देश के मुखिया का लाखों का शूट रबाना है,
मरने पर भी मारकीन मामूली मिलता नहीं जहाँ-
वहाँ रोज़ तुम नयी-नयी सदरी-कुर्ते सिलवाओगे।
किस मुँह से ध्वज फहराओगे...?
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(22)
देसी दूल्हा बिन दहेज हमको ना ढंग से मिल पाता,
पर आयातित दूल्हा-दूल्हन तेरे बच्चों को है भाता,
मेरी बिटिया की शादी में खाना तक पूरा पड़ा नहीं-
तुम कई शादियों जितने खानों-पानों को फिंकवाओगे।
किस मुँह से ध्वज फहराओगे...?
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(23)
खाद्य सुरक्षा बिल के बदले, संरक्षण बिल लाये ना,
लाखों टन,आनाजों को तुम,गोदामों में रखवाये ना,
अब खुले गगन के नीचे,उनको सड़ने दोगे तबियत से-
फिर उनसे दारू-बीयर-व्हिस्की-रम के अर्क बनाओगे।
किस मुँह से ध्वज फहराओगे...?
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(24)
थोड़ी सी बारिश में सड़कें, खेत सदृश हो जाती हैं,
फिर एड-पैड-चिथड़े-लत्ते-कन्डोम बहाकर लाती हैं,
पानी के ड्रेनिंग-सप्लाई का,जतन नहीं तुम कर पाये-
कहते हो दिल्ली सीटी को शंघाई शहर बनाओगे।
*किस मुँह से ध्वज फहराओगे...?
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(25)
खपड़ा-नरिया-छान नहीं थी,सूरज सीधा घुसता था,
बादल दो क्षण बरस गया,घर चौबिस घंटे रिसता था,
सत्ता में आते भूल गये अपना दिन वो दुनिया अपनी-
अब तो रहने खातिर तुम तो फारम हाउस बनवाओगे।
किस मुँह से ध्वज फहराओगे...?
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(26)
कर विरोध सत्ता का पहले,तुम ख़ुद क़िस्सा बनते हो,
फिर उसी सियासत का पीछे से जाके हिस्सा बनते हो,
महक़ पसीने की,पूँजी श्रम की लेकर तुम पहुँचे हो-
पर कुछ दिन में अपने कुकर्म की बदबू से बस्साओगे।
किस मुँह से ध्वज फहराओगे...?
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(27)
बायसिकिल पंचर तेरी बारहो महीने रहती थी,
बॉडी तेरी जाड़ा,वर्षा,गरमी सूरज की सहती थी,
दलित और कमज़ोरों के नेता बन संसद पहुँचे तो-
फिर एसी में सो करके एसी की ही कार चलाओगे।
किस मुँह से ध्वज फहराओगे...?
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(28)
वोटों खातिर झुग्गी, कच्ची कॉलोनी भी बसने दोगे,
आँखें मूँदे तुम उससे सरकारी रेवन्यू - बिल भी लोगे-
इक दिन झटके में एक्वॉयर, कॉलोनी हो जायेगी, तो-
तुम उसपे बिना मुरौव्वत के बुलडोजर ही फेरवाओगे।
किस मुँह से ध्वज फहराओगे...?
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(29)
दंगों की आगों को, चूल्हे की आग समझते आये हो,
तुम बना चिताओं पे चपातियाँ राजनीति की खाये हो,
नफ़रत की दावानल में पानी के बदले तुम तो प्यारे-
ठंडे हुए पलीतों पर पेट्रोल-आग छिड़काओगे।
किस मुँह से ध्वज फहराओगे...?
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(30)


राजसभा का हो चुनाव, या रेस रायसीना की हो,
कुछ भी कर गुज़रोगे,सवाल जब सत्ता के ज़ीना की हो,
'बाई हुक या क्रुक' सिंहासन हाथों से ना जाने पाये-
सो 'हॉर्स ट्रेडिंग' का नग्न नाच तुम डंके पे करवाओगे।
किस मुँह से ध्वज फहराओगे...?
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(31)
इतिहास उठाकर देखो तो बस ताल ठोंकते आये हो,
कामों से ज़्यादा तुम अपने भाषण के बल पे छाये हो,
दो उँगली से चर्चिलवाले विक्ट्री निशान को बना-बना-
तुम सभी मोर्चो पर तबियत से कंट्री को हरवाओगे।
किस मुँह से ध्वज फहराओगे...?
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(32)
समझ नहीं आता हमको जो घोषित शत्रु हमारे हैं,
वो मन में घृणा-गाँठ लेकर क्यूँ आते मेरे दुआरे हैं,
जो भोंक रहे छूरा-बर्छी वर्षों से पीठों पर मेरे-
उनसे इस्लामाबाद और पीकिंग जा हाथ मिलाओगे।
किस मुँह से ध्वज फहराओगे...?
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(33)
डायन भी घर चार छोड़ करके ही पहुँचाती हानी,
पर तुम हो जिनके साथ उन्हीं के हो दुश्मनआला जानी,
व्हिप को भी तोड़ क्रॉसवोटिंग करना तेरी फ़ितरत में है-
सो अपने बंधु-बान्धुओं को ही संसद में हरवाओगे।
किस मुँह से ध्वज फहराओगे...?
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(34)
जिस दर बैठोगे,उसको दीमक के जैसे चाटोगे,
मित्रों-संगठनों को तुम तो, टुकड़ों-टुकड़ों में बांटोगे,
चलते-चलते कब पल्ला, फेंकोगे नहीं भरोसा है-
तुम अच्छी-ख़ासी चलती-फिरती,सरकारें गिरवाओगे।
किस मुँह से ध्वज फहराओगे...?
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(35)
कुछ तो स्विट्जरलैंड गया, कुछ अनुदानों में दे डाला,
घाटे की वित्त व्यवस्था को जो भी आया उसने पाला,
बाँध,सड़क,फ्लाईओवर,पुल में फुल काट कमीशन को-
तुम मुफ़्ती में ही विश्वबैंक का क़र्ज़ा सर चढ़वाओगे।
किस मुँह से ध्वज फहराओगे...?
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(36)
आँख मूँदकर तेल डाल कानों में पहले सोये थे,
जब दबे पाँव दुश्मन आया तो, तुम सपनों में खोये थे,
गर ऐसे सरहद की निगरानी रक्खोगे भैया जी तो-
तुम एक कारगिल करवाये, दो-चार और करवाओगे।
किस मुँह से ध्वज फहराओगे...?
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(37)
विष‍धर का बिन दाँत निकाले,बीन बजाये जाते हो,
तारीख गवाही देती है, तुम उससे मुँह की खाते हो,
जो पाक कुण्डली में मेरी कुण्डली मारकर बैठा है-
तुम उससे मातृभूमि अपनी ये बार-बार डसवाओगे।
किस मुँह से ध्वज फहराओगे...?
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(38)
यहाँ करोड़ों लोगों के सपनों में रोटी आती है,
आधी से बढ़कर आबादी तक नहीं पेटभर खाती है,
हम सौ-पचास के नोटों में महदूद जी रहे हैं जीवन-
तुम ब्लैकमनी संग्रह खातिर ही बड़े नोट छपवाओगे।
किस मुँह से ध्वज फहराओगे...?
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(39)
जो बातें सत्य-अहिंसा की बढ़के चुनाव में करते हो,
तो देख अदा लगता ऐसा जैसे जनता से डरते हो,
भीगी बिल्ली बनकर छींका, जब वोटों का तोड़ोगे तो-
फिर सारे अस्त्र-शस्त्र पीछे से हमपे ही अज़माओगे।
किस मुँह से ध्वज फहराओगे...?
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(40)
मून और मंगल पर पहुँचे, अंतरिक्ष में घूम रहे,
तुम रोज़ जहाज़ों से जानी हो ऊँचे नभ को चूम रहे,
है बीस सेंचुरी बीत गयी,इंटरनेट का युग आ पहुँचा-
लेकिन मेरे गाँवों में तुम बिजली भी नहीं लगाओगे।
किस मुँह से ध्वज फहराओगे...?
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(41)
जो गया तुम्हारा लिए नहीं, ऊपर से भी दे आते हो,
दो-दो विधान,दो-दो निशान जेके में खूब चलाते हो,
जब संसद तक चढ़के दुश्मन हर चूल हिला देगा तेरी-
तो रेडअलर्ट कर सीमा पर तुम झूठी धौंस दिखाओगे।
किस मुँह से ध्वज फहराओगे...?
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(42)
लोकतंत्र है यहाँ मगर कुछ राजतंत्र सी है सत्ता,
आवाज़ उठायी है जिसने बस साफ़ हुआ उसका पत्ता,
शासन की सारी शक्ति सनम हाथों में अपने ले करके-
तुम सारे ओहदों पर अपने शोहदों को ही बैठाओगे।
किस मुँह से ध्वज फहराओगे...?
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(43)
नगरी-नगरी, द्वारे-द्वारे वोटों खातिर फिरते हो,
तुम छोटे-बड़े,दीन-दुखियों,तक के चरणों में गिरते हो,
जब भी चुनाव आये तो उनका, पानी भी भरदो बेशक़-
पर पूरे पाँच बरस उनसे, बेगारी ही करवाओगे।
किस मुँह से ध्वज फहराओगे...?
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(44)
'राज' तुम्हारे ज़ुल्मों की फेहरिस्त हो चुकी है भारी,
सो परिवर्तन खातिर प्रियवर! संघर्ष हो चुका है जारी,
अब इस ज़लज़ले-सुनामी में तेरा सब छिन्न-भिन्न होगा-
गर बदले नहीं एक दिन तो ख़ुद ही मिट्टी मिल जाओगे।
किस मुँह से ध्वज फहराओगे...?
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(45) 02/10/2018 /3:46 am/gzb


भारत की पूँजी को तुम तो, ताऊ का माल समझते हो,
सत्ता में आते ही उस पर, लोमड़ की भाँति झपटते हो,
जिन चोट्टे पूंजीपतियों को अरबों-खरबों दिलवाते हो-
उनको एनपीए होते ही तुम लाइनपार भगाओगे।
किस मुँह से ध्वज फहराओगे...?
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(46) 02/10/2018/4:06 am/gzb


तुम भले भूमिहीनों में थे, बस गये असामी बन करके
पर जब सत्ता उदरस्त हुई तो, चलते हो जी तन करके
तुम पौदर-पोखर-देवालय-होलिका दहन से ले करके-
सारी ही ग्राम समाज भूमि का, पट्टा स्वत: कराओगे।
किस मुँह से ध्वज फहराओगे...?
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(47) 02/10/2018 /4:27am/gzb


जिन ग़रीब-मज़दूरों के, वोटों से चुनकर आते हो,
उन थके-थकाये लोगों का ही, सारा माल उड़ाते हो,
तुम राशन कोटे का,विधवाओं की पेंशन,मनरेगा की-
मजदूरी संग खाद-बीज की, सब्सिडी खा जाओगे।
किस मुँह से ध्वज फहराओगे...?
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(48) 02/10/2018 /4:42am/gzb


खुले शहर की सुन्दरता, तुमको भाती है कभी नहीं,
सौ के सौ ऐसे ही हो, माना इनमें सम्मिलित सभी नहीं,
तुम चारागाह, खेलने के मैदानों औ' तालाबों की-
खुली ज़मीनों पर कब्ज़ा कर, कॉलोनी कटवाओगे।
किस मुँह से ध्वज फहराओगे...?
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(49) 09/10/2018 /9:37 pm/gzb


तुम भी सुनो मित्र मेरे जो ले आरक्षण बैठे हो,
अपने भाई के हिस्से का खाकर गुमान में ऐंठे हो,
तेरा खुद ही भाई बेशक़ झुग्गी में भूखा-प्यासा हो-
पर तुम लोभी अपने कोटे को उसको नहीं दिलाओगे।
किस मुँह से ध्वज फहराओगे....?
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(50) 09/10/2018/9:52 pm/gzb


तुम चुनाव में खर्च नहीं करते निवेश हो रघुराई,
दिख जाती है फ़ितरत तेरी,पर्दानशीन वो चतुराई,
जो कुछ भी दान-दहेज-छूट तुम पहले हमको बांटोगे-
फिर उसको उल्टा टैक्स बनाके मुझमें ही हिरकाओगे।
किस मुँह से ध्वज फहराओगे...?
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(51) 9/10/18/gzb/11:10pm


माल अधिकतम मूल्यों पे तुम बड़े शौक से बेच रहे,
लेकिन बिक्री बुक में डंडा तुम आड़ा-टेढ़ा खेंच रहे,
कच्ची-पक्की दो-दो बुक रखनेवाले प्यारे लाला जी!
तुम खुद तो टेनी मार रहे, बच्चों से भी मरवाओगे।
किस मुँह से ध्वज फहराओगे...?
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(52)10/10/18/gzb/7:59pm


सोच रहे क्या बिजलीवालों तुम भी यहां कहां कम हो,
अपने विभाग के दर्द और घाटे के तुम घोषित बम हो,
पहले कंटिया डाल कराओगे चोरी तुम चुपके से-
फिर पीछे से छापा कर हमको रंगे हाथ पकड़ाओगे।
किस मुँह से ध्वज फहराओगे...?
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राजेश्वर राय 'दयानिधि'
8800201131 /9540276160


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