इलाहाबाद विश्वविद्यालय एवं विकास पुरूष प्रो० हांगलू


रिपोर्ट: संतोष कुमार मिश्र
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(प्रस्तुति: डाटला एक्सप्रेस (साप्ताहिक)/गाज़ियाबाद, उ०प्र०/ 27 फरवरी से 05 मार्च 2019/बुधवार/संपादक: राजेश्वर राय 'दयानिधि'/email: rajeshwar.azm@gmail.com/datlaexpress@gmail.com/दूरभाष: 8800201131/व्हाट्सप: 9540276160



नई दिल्ली- इलाहाबाद वि0वि0 भारत के पुराने विश्वविद्यालयों में से एक है, इसके पूर्व मद्रास, कोलकता एवं बम्बई में अंग्रेजों ने विश्वविद्यालय स्थापित किया। गंगा, यमुना एवं अदृश्य सरस्वती के संगम पर स्थापित यह विश्वविद्यालय महर्षि भारद्वाज की गुरूकुल परम्परा का निर्वहन करते हुए लगभग सभी क्षेत्रों में कीर्तिमान स्थापित किया। इस विश्वविद्यालय में विज्ञान, साहित्य राजनीति, प्रशासनिक सेवा आदि क्षेत्रों में अभूतपूर्व योगदान दिया। बताते चलें कि आजादी के पूर्व यह विश्वविद्यालय अपने ज्ञान यज्ञ में ’आक्सफोर्ड’ को भी मात देता था और पूरे विश्व में अपने गौरव को कभी धूमिल नहीं होने दिया।


आजादी के बाद यह उत्तर प्रदेश राज्य का अभिन्न अंग बन कई प्रदेशों के छात्रों का विद्यार्जन का दायित्व अपने कंधों पर
लेकर एक सार्थक मिसाल पेश किया। सन् 2005 में इस संस्था का केन्द्रीय स्वरूप प्राप्त करना ही कही न कहीं  इसके दुर्गति का कारण बना, प्रथम कुलपति के रूप में प्रो0 राजेन हर्षे, जिनके उपर विश्वविद्यालय के मूलभूत ढांचे को विकसित करने का दायित्व था, वे सिर्फ विश्वविद्यालय के कुछ भ्रष्ट लोगों के साथ संलग्न होकर येन-केन-प्रकारेण अपने कार्यकाल को पूरा करने में लगे रहे। वस्तुतः ’पूरब के आक्सफोर्ड' के पराभव का आरंभ इसी समय से हो गया। प्रो0 हर्षे के कार्यकाल में जिन मूलभूत सुविधाओं का विकास होना चाहिए था, वह लगभग ’शून्य’ था। दूसरे कुलपति के रूप में आई0आई0टी0 मुम्बई के प्रोफेसर ए0के0 सिंह की नियुक्ति हुई, उनको विश्वविद्यालय के ही मठाधीशों ने अपने गुंडो द्वारा 2 दिन तक कुलपति आवास में बन्द रखा।
किसी तरह बाहर निकलकर वे मुम्बई पलायन कर गए और वहीं से अपना त्यागपत्र सरकार के पास भेज दिया।


जनवरी 2016 में प्रो0 आर0 एल0 हांगलू के कार्यभार ग्रहण करने के बाद से ही वही विनाशकारी शक्तियाँ इनको भी कमजोर करने की लगातार कोशिश करने में जुट गयीं। वर्तमान कुलपति  ने ’पूरब के आक्सफोर्ड’ को पुराना गौरव दिलाने की लगातार कोशिश की और विश्वविद्यालय की छवि को धूमिल करने वाली शक्तियों को चुनौती के रूप में स्वीकार किया। विश्वविद्यालय को मठाधीशों के चंगुल से मुक्त कराने हेतु ये दृढ़ संकल्प थे। विश्वविद्यालय के ये मठाधीशों संघटक महाविद्यालयों को किसी भी प्रकार से विश्वविद्यालय के समकक्ष नहीं देखना चाहते थे।


 



प्रोफेसर आर० एल० हांगलू (कुलपति इलाहाबाद विश्वविद्यालय)


 


महाविद्यालयों की स्थिति केवल ’प्रवेश’ एवं ’परीक्षा’ तक ही सीमित हो गयी थी। महाविद्यालय केवल ’डिग्री’ प्राप्त करने का केन्द्र बन चुके थे। शिक्षकों की संख्या लगभग समाप्त प्राय थी।


ऐसी स्थिति में वर्तमान कुलपति ने महाविद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति कार्य एक चुनौतीपूर्ण ढंग से लेकर किया, परिणामतः 2 ही सत्र में कालेजों में पठन-पाठन सुचारू रूप से चलने लगा, छात्रों और अभिभावको में खुशी की लहर दौड़ पड़ी। प्रो0 हंगलू यहीं नहीं रुके, उन्होंने भागीरथ प्रयास करके कालेजों में ’स्नातकोत्तर’ एवं ’रिसर्च’ के कोर्स का भी सफल क्रियान्वयन किया। यद्यपि इस कार्य में वर्तमान कुलपति को उन मठाधीशों का विरोध भी झेलना पड़ा जो पीढ़ीगत रूप से कई वर्षों से विश्वविद्यालय के विकास में अवरोधक बने हुए थे।


प्रो0 हंगलू ने निर्भयतापर्वक विश्वविद्यालय एवं कालेजों में अनुशासित शैक्षणिक वातावरण प्रदान किया है, इसमें कोई शक नहीं। यही नहीं विश्वविद्यालय के छात्रावासों की स्थिति बहुत दयनीय थी, इसका प्रमुख कारण था कि पूर्व कुलपतियों ने इस तरफ कोई ध्यान ही नहीं दिया। परिणामस्वरूप 20-30 वर्षों से अनाधिकृत रूप से असामाजिक तत्व कब्जा जमाए हुए थे। इसको भी कुलपति ने चुनौतीपूर्ण ढंग से वहाँ रहनेवालों को बाहर का रास्ता दिखाया एवं नियमित प्रवेश एवं संचालन की सुचारू व्यवस्था प्रदान किया। विगत् दशकों से बिगड़ी हुई व्यवस्था को एक बार फिर से पटरी पर लाने का कार्य प्रो0 हंगलू ने अद्भुत संचालन शक्ति के साथ
किया है।


यही नहीं कुलपति का कार्यभार ग्रहण करने के बाद जो भी वित्तीय अनियमितताएँ प्रकाश में आयीं उन प्रकरणों की गहन जांच का आदेश प्रो0 हांगलू ने दिया, विश्वविद्यालय एवं कालेजों के कुछ शिक्षक प्रशासनिक अधिकारी एवं वहाँ का प्रबन्धन वित्तीय अनियमितता में लिप्त थे। सूचना मिलते ही कुलपति ने तुरंत कार्यवाही सुनिश्चित कर ’रिसीवर’ नियुक्त कर इसकी सूचना यू0जी0सी0 एवं मानव संसाधन विकास मंत्रालय को भी भेजी। विश्वविद्यालय में ऐसे शिक्षकों पर भी कार्यवाही सुनिश्चित की जो अध्ययन एवं अध्यापन के प्रति पूर्णतया उदासीन थे और अपना सारा समय मठाधीशी में
ही व्यतीत करते थे, निःसंदेह वर्तमान कुलपति का प्रयास है कि उक्त समस्याओं से परिसर मुक्त हो। इलाहाबाद वि0वि0 का एक गौरवशाली इतिहास रहा है, बहुत से वैज्ञानिक, शिक्षाविद्, साहित्य, संविधान विशेषज्ञ राजनेता इस संस्थान से जुड़े रहे, प्रो0 हांगलू ’पूरब का आक्सफोर्ड’  कहे जाने वाले इस संस्था के प्रति संवेदनशील ही नहीं अपितु इसकी घटती हुई साख के प्रति चिंतित एवं इसके पुराने गौरव को वापस लाने हेतु सतत् प्रयत्नशील भी हैं इसमें कोई संदेह नहीं।


अगर विश्वविद्यालय पर एक विहंगम दृष्टि डाली जाये तो प्रो0 हांगलू के कार्यकाल में कई निर्माण कार्य भी हुए एवं पहले
से चल रहे कार्यों को पूर्णता भी प्रदान हुई। इसमें पुराने भवनों यथा- दरभंगा हाल आदि का नवीनीकरण, प्रशासनिक भवनों का निर्माण कार्य, दीन दयालु उपाध्याय ई लर्निग सेन्टर,तिलक हाल का निर्माण, विवेकानन्द भवन का निर्माण, उच्च स्तरीय सुविधा युक्त सी0बी0सी0एस0 भवन। इन सभी निर्माण कार्यों से विश्वविद्यालय के सभी वर्गों को लाभ प्राप्त हो रहा है।
       
वर्तमान में ’पूरब का आक्सफोर्ड’ शिक्षकों की कमी को लेकर उद्वेलित है, जहाँ 20 शिक्षक होने चाहिए वहाँ 2-3 शिक्षकों से पूरा विभाग चल रहा है।माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा स्पष्ट आदेश दिए जाने के बाद भी नियुक्तियों पर रोक समझ से परे है। किसी भी शैक्षिक संस्था में शिक्षक ’प्राण वायु’ है परन्तु ऐसा लगता है ’राजनीतिक कुचक्र’ में शिक्षकों की भर्ती भी फँस गई है। किसी भी कुलपति को कमजोर कर ’कठपुतली’ बनाने का प्रयास इस ’ कैंपस’ की पुरानी परम्परा है। अब इसमें कोई शक नहीं कि सरकार भी शिक्षकों के अभाव में जूझ रहे ’पूरब  के आक्सफोर्ड’ पर ध्यान न देकर ’कुलपति हटाओ’ मुहिम में मठाधीशों के साथ शामिल हो गई है। कुलपति को हटाना समस्या का समाधान नहीं है। राधाकृष्णन आयोग ने भी उच्च शैक्षिक संस्थाओं को राजनैतिक हस्तक्षेप से मुक्त करने की मांग वर्षों पूर्व किया था, आयोग की संस्तुतियों को केन्द्र सरकार ने सहमति भी प्रदान किया था।
       
प्रो0 रतन लाल हांगलू की कार्यशैली कुछ मठाधीशों को उनके कार्यभार ग्रहण करने से ही अप्रिय लग रही है। वर्तमान कुलपति एक सुलझे हुए व्यक्ति हैं,उन्होंने अस्थिर विश्वविद्यालय की गरिमा को बढ़ाया है, इसका ताजा उदाहरण पूरबी उत्तर प्रदेश के लगभग एक दर्जन सांसदों ने वर्तमान कुलपति के पक्ष में उनके द्वारा किए गए सार्थक कार्यों से सरकार को अवगत कराने के साथ ही साथ उक्त कार्यों हेतु उत्साहवर्धन भी किया है। वर्तमान में सरकार को सोचना चाहिए कि ’पूरब के आक्सफोर्ड’ का हित किसमें है, इस पर विचार की आवश्यकता है। निःसंदेह एक कुलपति का जो दायित्व है उसको प्रोफेसर हांगलू ने निभाया है, उन्होंने वही किया है जो विश्वविद्यालय के सुधार के लिए आवश्यक है। इसमें कोई शक नहीं है प्रो0 आर0एल0 हांगलू ’पूरब के आक्सफोर्ड’ के विकास पुरूष हैं। विगत् दिनों इलाहाबाद के समाचार पत्रों में जो प्रकाशित हुआ कि कुलपति को छुट्टी पर भेजने की कोशिश हो रही है।इसमें किसको फायदा होगा? किसको अस्थिर किया जा रहा है? सच देखा जाय तोे वहां के शोधार्थियों, छात्रों को अस्थिर किया जा रहा है क्योंकि किसी
विश्वविद्यालय में सबसे ज्यादा तो छात्र और शोधार्थी ही सफर करते हैं और छात्रों का नुकसान ’राष्ट्रीय नुकसान’ है। ’कुलपति हटाना’ समस्या का समाधान न होकर अपने-अपने स्वार्थों की तिलांजलि देना ही विश्वविद्यालय


एवं राष्ट्रहित दोनों में है।


 


 


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