कविता श्रृंगार-दशकम् ,रचनाकर: राम ममगाँई 'पंकज'

श्रृंगार-दशकम्
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भैया की बारात में
मिली मुझे रात में
छोटी मुलाकात में
मीठी मीठी बात में
अब खो गए हम
उसके हो गए हम


प्राण नहीं गात में
दिल नहीं साथ में
मन नहीं हाथ में
नींदे नहीं रात में
अब खो गए हम
उसके हो गए हम


नखरे हजार है
रोज बाजार है
वो गंगा पार है
वो मेरी यार है
अब खो गए हम
उसके हो गए हम


कहती है शान से
मेरे लिए जान दे
मेरी बाते ध्यान दे
मेरी बातें मान ले
अब खो गए हम
उसके हो गए हम


वो मुझे सताती है
वो मुझे बताती है
मेरे लिए जीना है
मेरे अधर पीना है
अब खो गए हम
उसके हो गए हम


तेरे लिए नथनी है
ये उसकी कथनी है
तेरे लिए दिन राते
है उसकी ये बाते
अब खो गए हम
उसके हो गए हम


उसकी ही यादों मे
सावन में भादों में
भीगे हम पानी में
उसकी नादानी में
अब खो गए हम
उसके हो गए हम


दिल में उसका राज है
यही उसका काज है
अद्भुत उसका साज है
सपनों में वह आज है
अब खो गए हम
उसके हो गए हम


वो बडी दिलदार है
आँखे उससे चार है
दिल मेरा बेकरार है
शादी को तैयार है
अब खो गए हम
उसके हो गए हम


चन्दा सा चेहरा है
दिल मुझे दे रहा है
मुझे वो कह रह है
दिल मे मेरा पहरा है
अब खो गए हम
उसके हो गए हम
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प्रस्तुति: डाटला एक्सप्रेस 30/01/2019



कवि राम ममगाँई 'पंकज'


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