झन- झना दे चेतना के...
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झन -झना दे चेतना के, जड़ विनिद्रित तार को l
माँ !जगा दे आज तो, सोये हृदय के प्यार को ll
राग रंजित प्राण हो अब, रंग कुछ ऐसा चढ़ा l
नेत्र अंतर के खुले अब, पाठ कुछ ऐसा पढ़ा ll
देख पाये रूप तेरा, पा सके तव द्वार को ll
ज्ञान आभा बुधित में भर,हृदय में शुचि भावना l
कर्म पथ पर पग बढ़े, कर्तव्य की हो साधना ll
हम समझ लें आज से, प्रतिबिम्ब तव संसार को ll
झन -झना दे चेतना के, जड़ विनिद्रित तार को l
माँ !जगा दे आज तो, सोये हृदय के प्यार को ll
पीड़ितों को बाँटकर ममता, हृदय की हम खिले l
प्यार का सागर भरे उर में, सभी से हिल मिले ll
खोल दे माँ आत्मा की, रूद्ध सी इस धार को ll
है नहीं कुछ पास पूजा, थाल हम जिससे भरें l
झर चुके सद्गुण सुमन, अर्पित तुझे अब क्या करें ll
आज तो स्वीकार ले, आँसू भरी मनुहार को ll
झन -झना दे चेतना के, जड़ विनिद्रित तार को l
माँ ! जगा दे आज तो सोये हृदय के प्यार को ll
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अशोक गोयल/पिलखुवा 08218065876
09259053955
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प्रस्तुति: डाटला एक्सप्रेस/27.01.19