जीडीए उपाध्यक्ष कंचन वर्मा द्वारा परिसर में मीडिया एवं एनजीओ प्रतिनिधियों के प्रवेश पर लगाया गया प्रतिबंध.


(रिसेप्शन तक पर जाने के लिए लेना पड़ रहा है टोकन, जनता हो रही है हलकान)


डाटला एक्सप्रेस
रोशन कुमार
22/01/2019


गाजियाबाद: हमारे भारतीय संविधान के चार स्तंभों में से एक स्तंभ मीडिया भी होता है तथा हमारे संविधान ने पत्रकारों को बहुत से अधिकार भी दिए हैं जिनमें सबसे अहम अधिकार है मीडिया की स्वतंत्रता, शायद यह बात जीडीए वीसी कंचन वर्मा भूल गयी हैं या फिर वह खुद को भारतीय संविधान से भी ऊंचा मानती हैं और पत्रकारों से उनकी स्वतंत्रता ही छीनने पर उतारू हो गई हैं। जहां पुलिस मुख्यालयों, जिलाधिकारी परिसरों और न्यायालयों तक में मीडिया का प्रवेश और सम्मान सामान्य बात है, वहाँ जीडीए जैसे प्राधिकरण में मीडिया को हिकारत से देखा जा रहा है और उसके साये से भी बचा जा रहा है। जिन नौकरशाहों ने देश का बेड़ा गर्क कर दिया वो मीडिया पर उंगलियां उठा रहे हैं।


ज्ञात हो कि इंग्लैंड अपनी ट्रेनिंग पर जाने से पहले कंचन वर्मा ने जीडीए परिसर में अखबार डालने तक पर प्रतिबंध लगा दिया था, इसके बावजूद भी ना जाने वो कौन सा ऐसा गुस्सा जो उन्हें मीडिया कर्मियों से है कि शांत ही नहीं हुआ और विलायत से अपनी ट्रेनिंग ले वापस आ दोबारा जीडीए वीसी का कार्यभार संभालने के बाद पूरी तरह से पत्रकारों के प्रवेश पर ही प्रतिबंध लगा दिया। पत्रकार तो समाज की आँख और कान होता है यदि पत्रकार ही कहीं आने-जाने में असमर्थ व असहाय होगा तो ज़रा सोचिए समाज किस दिशा में आगे बढ़ेगा। रही बात जीडीए की तो माननीय उपाध्यक्ष महोदया का अपने अभियंताओं, मुंशियों तक पर तो कोई चाबुक चलता नहीं जिनकी छत्रछाया में ना जाने कितने ही अवैध निर्माण फल-फूल रहे हैं और रोज फाइलें गुम हो रही हैं। यदि महीने में एकाध अवैध निर्माण शगुन के तौर पर ध्वस्त भी हो जाता है तो उसको दोबारा बनने से ये लोग कभी नहीं रोक पाते। परंतु इनके सारे गैरज़रूरी आदेश-उपदेश पब्लिक और पत्रकारों के लिए ही हैं।


प्रतिबंध से पहले जीडीए परिसर में बैठे कर्मचारियों-अधिकारीयों को थोड़ा यह तो चिंता रहती ही थी कि उनके किसी तरह के भ्रष्टाचारी, असामाजिक व गैरकानूनी कृत्य पर शायद किसी पत्रकार की नज़र हो सकती है, जैसे वह परिसर में शराब पीये,गुटख़ा खाये, ताश के पत्तों पर हाथ साफ करे, खाली बैठे गप्पे लड़ाए,सिगरेट के धूएँ का छल्ला उड़ाये, घूस से गल्ला भरने जैसे कामों को करने से बचने का खौफ लिए तो जीता ही था, लेकिन तालिबानी प्रतिबंध के बाद वह भी अब खत्म हो जाएगा। अब बंद दरवाजों के पीछे चाहे वह कुछ भी करे, कैसे भी अपनी मनमर्ज़ी चलाए भला कौन रोकने वाला है या यूं कहें रोक तो पहले भी कोई नहीं सकता था केवल देख और पूछ सकता था अब तो जनता का वह आसरा जो पत्रकारों के जरिए मुमकिन था उसे भी बड़ी मेमसाहब ने छीन लिया, आखिर उन्हें कौन समझाए कि इन अॉफिसों में कोई पिकनिक मनाने नहीं बल्कि काम के लिए जाता है।


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