'सिंहासन'
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लिखें इतिहास नया हम
सत्ता के सिंहासन का,
अँधियारों से लड़ने वाले
सरकारी निर्वाचन का।
भ्रष्टाचार हुकूमत करता
मेहनतक़श इंसानों पर,
सुप्त व्यवस्था गूँगी-बहरी
चुने इमारत लाशों पर।।
निर्धनता में दबी हुई हैं
बेबस चीख गरीबों की,
बुद्धिजीवियों को दिखती है
केवल पीर अमीरों की।
मासूमों की लाचारी को
लिख दें अब अंगारों से,
वो परिवर्तन दिखला देंगे
धधक उठे जो नारों से।
घर के जयचंदों को मिलकर
ईंटों में चुनवाएँगे,
अपराधी को बर्बरता से
नैतिकता सिखलाएँगे।
क़लमकार का फ़र्ज़ निभाकर
अंतस अलख जगाएँगे,
गद्दारों के नाम चयन कर
शिलालेख लिखवाएँगे।
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प्रस्तुति: डाटला एक्सप्रेस 31/01/2019
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डॉ. रजनी अग्रवाल 'वाग्देवी रत्ना'
वाराणसी (उ.प्र.)भारत