डाटला एक्सप्रेस के 'साहित्य सेतु' परिशिष्ट में आज दिनांक 19/01/2019 को प्रस्तुत है, प्रज्ञान पुरुष के नाम से मशहूर चर्चित व्यंग्यकार पंडित सुरेश 'नीरव' की एक 'व्यंग्य ग़ज़ल' ये गठबंधन सियासत का.....! -------------------------------------

ये गठबंधन सियासत का अजब मंजर दिखाता है-
जो अक्सर घोषणा करने से पहले टूट जाता है।


जो मुर्ग़ा बांग देकर सारी दुनिया को जगाता है-
छुरी चलने से पहले पेटभर दाने वो खाता है।


जो वादे ओढ़ता है और वादों को बिछाता है-
वो मतदाता तो भूखे पेट भी नारे लगाता है।


वो रोता है कभी ख़ुद पर कभी ख़ुद को हंसाता है-
मगर लंगड़ी सियासत में कलाबाजी दिखाता है।


वो जब पिछड़े हुए लोगों के आगे गिड़गिड़ाता है-
वो शातिर भेड़िया है भेड़ की सूरत में आता है।


वो जनता को फ़क़त बारात की घोड़ी समझता है-
जिसे अपने इलेक्शन में वो जीभर कर सजाता है।


किसी भी पक्ष की बातें उसे अच्छी नहीं लगतीं-
वही नेता सफल है जो अलग भोंपू बजाता है।


सियासत की अजब बारात है किस से कहें 'नीरव'-
जो फूफा को मनाते हैं, तो मामा रूठ जाता है।


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