ये गठबंधन सियासत का अजब मंजर दिखाता है-
जो अक्सर घोषणा करने से पहले टूट जाता है।
जो मुर्ग़ा बांग देकर सारी दुनिया को जगाता है-
छुरी चलने से पहले पेटभर दाने वो खाता है।
जो वादे ओढ़ता है और वादों को बिछाता है-
वो मतदाता तो भूखे पेट भी नारे लगाता है।
वो रोता है कभी ख़ुद पर कभी ख़ुद को हंसाता है-
मगर लंगड़ी सियासत में कलाबाजी दिखाता है।
वो जब पिछड़े हुए लोगों के आगे गिड़गिड़ाता है-
वो शातिर भेड़िया है भेड़ की सूरत में आता है।
वो जनता को फ़क़त बारात की घोड़ी समझता है-
जिसे अपने इलेक्शन में वो जीभर कर सजाता है।
किसी भी पक्ष की बातें उसे अच्छी नहीं लगतीं-
वही नेता सफल है जो अलग भोंपू बजाता है।
सियासत की अजब बारात है किस से कहें 'नीरव'-
जो फूफा को मनाते हैं, तो मामा रूठ जाता है।