अनु नेवटिया--कोलकाता, हावड़ा, पश्चिम बंगाल की एक मार्मिक रचना "आह से वाहहहहहह"


आह से वाह  ...... ? 
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हम पर लिखकर कौन सा
एहसान करते हो?
आह को वाह कहकर गुमान करते हो ?
बेबसी लिखना चाहते हो हमारी?
कविता लगती है तुमको लाचारी ?
महसूस करके देखो ये दर्द.....
कभी बनो हमारे हमदर्द.......
चित्रकार, कवि, लेखक
और कभी निर्देशक
सबके लिए हम एक विषय समान है
और नेताजी के तो भाषणों की जान हैं
निराश ना हो
तुम्हारे काम के भी आड़े न आएंगे
अपनी गरीबी का सारा हाल सुनाएंगे
देखो इन सूखे बर्तनों को
शायद इनकी खनक
तुम्हे कोई गीत दे जाए
ये पत्थर की दीवारें लिखो
ऐसा आशियाना शायद ही ज़िक्र में आये
इन मासूम चेहरों को देखो
ये देश का भविष्य गढ़ते हैं
लिखना तुम अपनी रचना में
कुछ फूल फूटपाथ पर सड़ते हैं
एक माँ की मज़बूरी देखो
देने को बस झूठी आशाएं हैं
लिख देना सजाकर इसे भी
इसमें बहुत संवेदनाएं हैं
जो हताश सा बैठा कुछ सोच रहा है
शायद अपनी किस्मत को कोस रहा है
बस उसे ना लिखना लाचार और मजबूर
घर का मुखिया है वो हमारा
और तुम्हारे देश का मजदूर......


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(प्रस्तुति: डाटला एक्सप्रेस (साप्ताहिक)/गाज़ियाबाद, उ०प्र०/30 जनवरी से 05 फरवरी 2019/बुधवार/संपादक: राजेश्वर राय 'दयानिधि'/email: rajeshwar.azm@gmail.com/datlaexpress@gmail.com/दूरभाष: 8800201131/व्हाट्सप: 9540276160



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--अनु नेवटिया--
कोलकाता, हावड़ा,पश्चिम बंगाल  


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