डाटला एक्सप्रेस की प्रस्तुति
मुझे देखकर अब उसका शर्माना चला गया
राह देखने वाला आज जमाना चला गया
जैसे बच्चे जीते बेफिक्री में जीवन को
आज बुजुर्गों से उनका डर जाना चला गया
रिश्ता था या नहीं तुम्हारे और हमारे बीच
बंजारे दिल का छुपकर मुस्काना चला गया
ख़्वाब रात को हैरत का सन्नाता ले आते
फिर भी जाने कैसे नींद चुराना चला गया
जिस्म वही है और रूह भी बदली नहीं अभी
लेकिन जाने क्यों उनका इतराना चला गया
अजब बात है "अंचल" वो भी कैसे उलझ गए
जो सुलझे थे अब खुद को सुलझाना चला गया।।।।
ममता शर्मा "अंचल" अलवर राजस्थान