डाटला एक्सप्रेस की प्रस्तुति
कब मिलोगे बोलिए जी
चुप जुबां को खोलिए जी
याद में छुप कर बहुत दिन
अब बहुत दिन रो लिए जी
क्यों बसे आकर ज़हन में
क्यों तसव्वुर हो लिए जी
है अगर हमसे मुहब्बत
लफ़्ज़ से रस घोलिए जी
है जरूरत एक हां की
शब्द भी क्या सो लिए जी
कर सके पूरे न वादे
दोस्त खुद को तोलिए जी
देखिए हमने नयन भी
आंसूओ से धो लिए जी।।।।
ममता शर्मा 'अंचल' (अलवर "राजस्थान")