संविधान दिवस पर 'भारतीय संविधान में बुद्ध दर्शन' शीर्षक से दलेस का कार्यक्रम


डाटला एक्सप्रेस संवाददाता 

26 नवंबर 2022 को रात 8 बजे, 73वें संविधान दिवस के अवसर पर 'दलित लेखक संघ' द्वारा आयोजित ऑनलाइन कार्यक्रम का आरंभ संविधान की उद्देशिका के पाठ से संचालक सत्या सिद्धार्थ द्वारा किया गया। इसके उपरांत कार्यक्रम के विषय 'भारतीय संविधान में बुद्ध दर्शन' पर वरिष्ठ लेखक दामोदर मोरे जी का व्याख्यान समझने और अनुकरणीय रहा। उन्होंने अपने वक्तव्य में संविधान की उद्देशिका के महत्व को बताते हुए कहा कि बुद्ध दर्शन के प्रतिस्मुत्पपात में इसकी जड़ें हैं तथा इसमें क्रान्तिकारी व प्रगतिशील विचारों का समावेश है। बाबा साहब ने आधुनिककाल के सामाजिक अभियंता की तरह इसे तैयार किया। इसमें वर्णव्यवस्था के सोशल स्ट्रक्चर को दरकिनार कर इसे पांच स्तंभ - न्याय, समता, स्वतंत्रता, बंधुता, और धर्मनिरपेक्षता को आधार बनाकर गढ़ा जिसमें शूद्रों का स्थान तो है परंतु शुद्रता की कहीं जगह नहीं। इसके इतर भारत में हमेशा दो चश्में रहे जिनमें एक सामान्य है तो दूसरा जातीय, जिसमें दोष ही दोष है। यह अदृश्य चश्मा जिसमें अपनी जाति में दुर्गुण भी क्यों न हो सब कुछ अच्छा दिखता है। इसे ही जाति का चश्मा कहा जाता है। इसके प्रभाव में समाज के ढांचे को चार वर्णों में बांटा गया। यह व्यवस्था एक मीनार की तरह है जिसमें नीचे की मंज़िल पर रहने वालों को ऊपर जाने का अधिकार नहीं क्योंकि ऊपर जाने के लिए किसी सीढ़ी का प्रावधान रखा ही नहीं गया।

उन्होंने संविधान की धारा 13.1 से जोड़ते हुए अपनी बात रखी। उन्होंने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए इस बात की ओर भी संकेत किया कि वर्तमान में जिस तरह से मानवीय मूल्यों को पैरों तले रौंदा जा रहा है। वह लोकतंत्र का हिस्सा नहीं है। लोकतंत्र की जड़े समता, स्वतंत्रता, बन्धुता के बुद्ध दर्शन में हैं जिस तरह राजसत्ता, धर्मसत्ता, अर्थसत्ता और शिक्षासत्ता से शोषित पीड़ित वर्ग को दूर रखा गया। वहीं बुद्ध ने अपने समय में न्याय के सप्त सिद्धांत रचे। जिसके तहत हमें हर नागरिक के साथ धर्म संगत, न्याय संगत व्यवहार करना होगा तभी पृथ्वी धर्म राज्य बनेगा

    बुद्ध ही विश्व के सबसे पहले विचार स्वतंत्रता के उद्धता है। तथागत बुध का मन नीले आसमान जैसा था जिसमें कोई अड़चन नहीं। दस परमिता- मैत्री-मातृभाव, बुद्ध के मैत्री भाव का पालन किया जाए तो जातिभेद की दीवार गिरने में देर नहीं लगेगी। संविधान का केंद्र बिंदु यही मानवतावाद है। 

अध्यक्ष डॉ.राजकुमारी ने संविधान दिवस की शुभकामनाएं देते हुए कहा कि भारतीय संविधान की लोकतांत्रिक प्रणाली नवीन नहीं है उसका मूल आधार बौद्ध दर्शन में निहित है, जो मानवीय समानता, मेल -जोल, सामाजिक न्याय की परिपाटी रही है। बौद्ध दर्शन विषमताओं से परे समता, बंधुता, सहानुभूति, सहयोग, सद्भावना, सदाचार को स्थापित करता है, वही संविधान की आधारशिला रही है। तथागत बुद्ध वर्णवाद, जातिवाद, ऊंच- नीच, आदि जितनी भी विषमतामूलक व्यवस्थाएं रही उनको समाप्त किया बाबा साहब अम्बेडकर ने भी उसी दर्शन और सिद्धांतों का अनुसरण करते हुए समतामूलक और लोकतांत्रिक समाज की सरंचना की इच्छा रखी और संविधान निर्मित किया।

हीरालाल राजस्थानी ने सार संदर्भ में कहा कि लोकतंत्र की मौजूदगी हमें सिंधुघाटी के अवशेषों में साफतौर पर दिखती है जहां के सार्वजनिक स्नानागार, कुंए व नगरीय संरचना यही बताती है कि ये स्थल सबके लिए समान रूप से उपलब्ध व उपयोगी रहे थे। इसलिए यह कहा जा सकता है कि अखण्ड भारत लोकतांत्रिक प्रणाली का भूखंड रहा है। फिर आर्यों ने इसको जातिगत व्यवस्था में बांट दिया जिससे यह देश भेदभाव की भेंट चढ़ता गया। लेकिन आज अनेक संघर्षों के बाद जब पुनः लोकतंत्र कायम हुआ है तो आज संविधान का महत्व उस समय और अधिक हो जाता है जब जातिगत उत्पीड़न बढ़ता दिखाई पड़ता है और धार्मिक उन्माद अपने चरम पर सिर चढ़कर लोकतंत्र के अंतस पर प्रहार करता दिखता है। उस समय अधिकारों से ज्यादा न्याय का पक्ष ज़रूरी हो जाता है। लेकिन क्या कारण है कि उस समय चुप्पी पसरी हुई होती है और पद-पुरस्कारों की बौछारें लालच के साथ मिलकर अन्याय को बढ़ावा देती है। इसमें कोई संदेह नहीं कि भारतीय संविधान में बुद्ध दर्शन की झलक स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ती है। जब समता, न्याय, बंधुता और स्वतंत्रता को प्रमुखता में देखते हैं तो वहां बुध स्थापित हुए जान पड़ते हैं। यही हमारे संविधान की खूबसूरती भी है। इसने सामाजिक रूढ़िवाद के नियमों को उलटकर रख दिया जिस कारण आज नए भारत में हम सच्चे लोकतंत्र को महसूस करते हैं। उन्होंने आगे कहा कि संविधान से परे बाबा साहब ने उपेक्षित समुदाय को तीन सूत्र दिए - शिक्षित बनो, संगठित रहो और संघर्ष करो। 

  कार्यक्रम के अंत में धन्यवाद सरिता संधू ने किया। कार्यक्रम में उपस्तिथि - डॉ. राजेश पाल, खन्ना प्रसाद अमीन, आरपी सोनकर, सुनील पंवार, रश्मि रावत, रामप्रसाद राजभर, नानकचंद फरुकाबाद, हरपाल बौद्ध, संजय शांडिल्य, सुनीता राजस्थानी, जितेंद्र विसरिया, भीम भारत भूषण, आशीष बौद्ध, पुरुषोत्तम शर्मा, सतीश यादव, गिरिजेश यादव, नीरज मिश्रा, जावेद आलम, नितिन सिंहमार, ज्योत्सना, सुमन सबलानिया, चित्तरंजन गोपे, रजनी दिसोदिया, चंद्रा निगम, ममता जयंत, अज्जू रजनी और रेखा रानी इत्यादि की रही।

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