डाटला एक्सप्रेस की प्रस्तुति
मन का कुछ अहसास कहो जी
कोशिश कर कुछ ख़ास कहो जी
तिलभर भी बाकी हो यदि तो
मिलने की कुछ आस कहो जी
जितने भी हो आप हमारे
खुलकर के आभास कहो जी
पतझड़ के मौसम में भी क्या
बाकी है मधुमास कहो जी
हमने तुम्हें मुहब्बत भेजी
पहुँच गई क्या पास कहो जी
क्या अब तक अरमान प्रीत के
छूते हैं आकाश कहो जी
पहले था उतना ही "अंचल"
अब भी है विश्वास कहो जी
ममता शर्मा "अंचल"
अलवर (राजस्थान)