(भ्रष्टाचार मामला प्रवर्तन जोन 03, गाज़ियाबाद विकास प्राधिकार)
डाटला एक्सप्रेस संवाददाता
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गाज़ियाबाद:-भ्रष्टाचार और क्राइम का ग्राफ़ उत्तर प्रदेश की पिछली सरकारों में काफ़ी ऊपर रहा। जिसके परिणामस्वरूप प्रदेश ने 2017 में एक बड़ा सत्ता परिवर्तन योगी आदित्यनाथ के रूप में देखा।
योगी सरकार के आने के बाद लोगों में उम्मीद जगी की अब पुराने दिन लद गये और शायद स्थिति में सुधार आये। परंतु आज की ज़मीनी सच्चाई लोगों द्वारा की गई आशा के बिल्कुल विपरीत है।आज भी उत्तर प्रदेश के सरकारी विभागों में भ्रष्टाचार की स्थिति पूर्व की भाँति जस की तस बनी हुई है, जिसने आम लोगों की आशा को निराशा में बदल दिया है।
ऐसा नहीं है कि योगी सरकार स्थिति को सुधारने का प्रयास नहीं कर रही, जितना प्रयास यह सरकार भ्रष्टाचार और जुर्म को प्रदेश में कम करने के लिये कर रही है उतना प्रयास पूर्व की किसी सरकार द्वारा शायद ही किया गया हो।
दरअसल मौजूदा उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्रदेश को भ्रष्टाचार मुक्त राज्य बनाने के सपने को पलीता लगाने का काम उन्हीं के सरकारी विभागों में बैठे कुछ भ्रष्ट अधिकारीयों द्वारा किया जा रहा है। जिन्हें पुरानी सरकारों के समय से ही चांदी काटने की लत लगी हुई है जिसे वह शायद अपना मौलिक अधिकार समझने लग गए हैं। आज इतनी सख्त सरकार और मुख्यमंत्री होने के बावजूद कुछ भ्रष्ट अधिकारियों की यह पुरानी लत छूट नहीं पा रही, आखिर लत इतनी आसानी से छूटती भी कहा है। यहां हम लत रिश्वत को कह रहे हैं यानी पैसा और वह भी बेइंतहा जो बड़े से बड़े काम जिन्हें किसी भी विधा से कानूनी नहीं कहा जा सकता उन्हें पैसों के दमखम पर विभागों में बैठें कुछ भ्रष्ट अधिकारियों से करवा लिया जाता है। भाई आखिर जहां पैसा बोलता हो वहां किसी की क्या मजाल की कुछ बोल सके।
दुर्भाग्यवश कुछ ऐसा ही हाल आज प्रदेश के लगभग हर सरकारी विभाग का है। जिनमें बैठे कुछ पुराने तजुर्बेकार भ्रष्ट अधिकारी, जो किसी भी तरह योगी सरकार को उनके नेक मंसूबों में कामयाब नहीं होने देना चाहते। कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि आज भी यह अधिकारी पुरानी सरकारों के एजेंडे पर चल कहीं ना कहीं योगी सरकार की छवि को खराब करने का प्रयास कर रहे हैं। क्यूंकि गलती कोई भी करे गालियां सरकार को ही सुननी पड़ती हैं।
सरकार और उसके मंत्री चाहे कितने भी ईमानदार क्यूँ ना हो परंतु जब-तक सरकारी विभागों की नकेल नहीं कसी जायेगी तब तक भ्रष्टाचार मुक्त राज्य का सपना देखना बेमानी होगा। किसी शिकायत, आग्रह, सहायता आदि के लिये कोई व्यक्ति सीधा लखनऊ नहीं पहुंच जाता उसे इन्हीं सरकारी विभागों में आना पड़ता है। जिनमें बैठे अधिकारीयों और कर्मचारियों की कार्यप्रणाली ही उस व्यक्ति के मन में सरकार के प्रति अच्छी या बूरी छवि को बनाती है।
उक्त से संबंधित एक ऐसा ही मामला गाज़ियाबाद विकास प्राधिकार के प्रवर्तन जोन तीन (03) के प्रभारी से जुड़ा हुआ है।जिसमें प्रवर्तन जोन तीन के प्रभारी की सरपरस्ती में उनके अवर अभियंताओं द्वारा आज पूरे जोन के भीतर अपनी देख-रेख में स्वीकृत मानचित्र के नाम पर अनगिनत अवैध निर्माणों को संरक्षण दिया जा रहा है। परंतु प्रवर्तन तीन के प्रभारी द्वारा इन अवर अभियंताओं का समय-समय पर बचाव किया गया जिसके चलते उनके विरुद्ध कोई भी उचित कार्यवाही आज दिन तक नहीं हो पाई।
यदि जोन में हो रहे अवैध निर्माणों की शिकायत की जाती है तो प्रवर्तन प्रभारी (जो अपनी जाँच आख्याओं में अपना नाम और दूरभाष भी गुप्त रखते हैं) अपने एयर कंडीशंड कमरे में बैठे-बैठे अपने अवर अभियंताओं का बचाव करते हुए शाशन/प्रशासन/जनता को गुमराह करने के लिये भ्रामक आख्याओं को बिना जांच-पड़ताल के आगे प्रेषित कर देते हैं।
एक उदाहरण देखें जिसमें जोन तीन अंतर्गत आने वाले गोविंद पुरम के प्लॉट संख्या डी-249, डी-184, डी-211, डी-219, डी-517, डी-161 आदि अनगिनत प्लॉट्स पर जीडीए निर्माण नियमावलीयों का स्वीकृत मानचित्र होने के नाम पर खुलेआम उल्लंघन किया जा रहा है। जिसमें क्षेत्रीय अवर अभियंता के संरक्षण में निर्माणकर्ताओं द्वारा बिना शमन के अतिरिक्त निर्माण करने,एफएआर एवं सेट बैक नियमों का उल्लंघन करने (तय से अधिक क्षेत्र को कवर करके निर्माण करना) स्वीकृत मानचित्र के विपरीत निर्माण करने, एनजीटी गाइडलाइंस का उल्लंघन करते हुए खुले में निर्माण करने, अवैध भू-जल दोहन करने आदि जैसी अनियमितता बरती जा रही है। यह सभी निर्माण क्षेत्रीय अवर अभियंता की देख-रेख में लंबे समय से किये जा रहा हैं। जिसमें वह निर्माणकर्ताओं से अपनी सांठ-गांठ कर स्वीकृत मानचित्र के विपरीत निर्माणों को बहुत तेजी से पूरा करवा रहे हैं। इन सभी निर्माणों की पूर्ण जानकारी प्रवर्तन जोन तीन के प्रभारी को भी है परंतु फिर भी वह क्षेत्रीय अवर अभियंता का बचाव इन निर्माणों व इसके अतिरिक्त निर्माणों के विरुद्ध आने वाली शिकायतों पर भ्रामक और झूठी आख्या प्रस्तुत कर शुरू से करते आये हैं और ऐसा क्यूँ है यह समझना किसी के लिये भी सरल है।
उक्त सभी निर्माणों में क्षेत्रीय अवर अभियंता के संरक्षण में निर्माणकर्ताओं द्वारा बरती जा रही अनियमितताओं के संबंध में शिकायतें भी की गई जिनके सन्दर्भ संख्या 40014021018325, 40014021018328, 40014021018333, 40014021018335, 40014021018334, 40014021018327 हैं, पर प्रवर्तन जोन तीन के प्रभारी द्वारा अपने क्रमशः कॉमन जवाब पत्रांक संख्या 765/प्रवर्तन जोन 03/22.06.2021, 796/प्रवर्तन जोन 03/22.06.2021, 763/ प्रवर्तन जोन 03/22.06.2021, 766/प्रवर्तन जोन 03/22.06.2021, 760/प्रवर्तन जोन 03/22.06.2021, 762/प्रवर्तन जोन 03/22.06.2021 में बहुत ही भ्रामक और असंतोषजनक आख्या लगाई गई, जिसमें प्रभारी द्वारा शिकायतों में कहा गया प्रश्नगत् स्थल पर किये जा रहे निर्माण के संबंध में भवन स्वामी को शमन/स्वीकृत मानचित्र प्रस्तुत करने हेतु निर्देशित कर दिया गया है, निर्माण के विरुद्ध उ.प्र नगर योजना एवं विकास अधिनियम 1973 की सुसंगत धाराओं के अंतर्गत कार्यवाही करते हुए वाद योजित किया गया है। जबकि प्रवर्तन प्रभारी द्वारा प्रेषित आख्याएं ज़मीनी सच्चाई से बिल्कुल अलग है। कई महीनों से निरंतर हो रहे इन सभी निर्माणों में निर्माणकर्ता द्वारा क्षेत्रीय अवर अभियंता के संरक्षण में भारी अनियमितताएं बरती गई व आज भी बरती जा रही हैं जिनकी जानकारी ख़बर में ऊपर की ओर दी गई है। यदि इन सभी निर्माणों व क्षेत्र में हो रहे अन्य सभी निर्माणों का भी जीडीए से अतिरिक्त किसी अन्य जांच एजेंसी द्वारा जांच करवाई जाये, तो पता चलेगा कि प्रवर्तन जोन तीन अंतर्गत आने वाले गोविंदपुरम, राज नगर, संजय नगर आदि क्षेत्रों में हो रहे लगभग हर निर्माण में निर्माणकर्ता और क्षेत्रीय अवर अभियंता द्वारा सांठ-गांठ कर भारी अनियमितता बरतते हुए निर्माण किये गये व आज भी किये जा रहे हैं, जिनपर प्रवर्तन जोन तीन के प्रभारी का पूरा आशीर्वाद बना रहा।
दरअसल जीडीए के अभियंता अवैध निर्माणों को पूरा करवाने के लिये एक रणनीति के तहत काम करते हैं। जिसमें निर्माण के विरुद्ध न्यायालय या प्राधिकरण में हल्का फुल्का वाद दायर कर संबंधित थाने में मुक़दमा दर्ज करवा देना, दिखावटी सीलिंग या हल्की फुल्की डिमोलिशिंग की कार्यवाही कर देना आदि। यदि कोई व्यक्ति अवैध निर्माण होने की शिकायत करता है तो जांच अधिकारी शिकायतों कुछ ऐसे कहते हुए कि उक्त निर्माण के विरुद्ध उ.प्र नगर योजना एवं विकास अधिनियम 1973 की सुसंगत धाराओं के अंतर्गत कार्यवाही कर दी गई है, निर्माण को सील बंद कर पुलिस अभिरक्षा में दे दिया गया है, भवन स्वामी को शमन/मानचित्र प्रस्तुत करने हेतु सूचित कर दिया गया है बता आख्या प्रेषित कर शिकायत का निस्तारण कर देता है। इन्हीं कागज़ी कार्यवाहियों की आड़ में निर्माणकर्ता द्वारा निर्माण को पूरा कर लिया जाता है।नतीजतन शमन शुल्क व नियमों के उल्लंघन की दशा में निर्माण पर होने वाले जुर्माने से प्राप्त होने वाली धन राशि का राज्य सरकार को नुकसान उठाना पड़ता है। यदि कोई अधिकारी गलती से मौके पर पहुंच भी गया तो उसके समक्ष दिखावटी सीलिंग की कार्यवाही कर निर्माणकर्ता को (प्रपत्र ब) कारण बताओ नोटिस थमा दिया जाता है।अधिकारी के जाते ही निर्माण को पुनः शुरू कर दिया जाता है।
ताज्जुब तो तब होता है जब जांच अधिकारी अपनी खीज निकालते हुए शिकायतकर्ता को ही आदि शिकायतकर्ता, दुराग्रही, पूर्वाग्रह से ग्रसित, ब्लैक मेलर आदि कहने से नहीं चुकता, जबकि वह शिकायतकर्ता को जनता तक नहीं।
उक्त मामले की शिकायत जनपद, मंडल व शाशन स्तर पर की जा रही है जिसमें देखना दिलचस्प होगा कि ऐसे भ्रष्ट एवं अकर्मण्य अभियंताओं के विरुद्ध क्या कार्यवाही होती है। हमारे द्वारा पूरे जोन में हो रहे अन्य अवैध निर्माणों, अवैध प्लॉटींग्स, अवैध स्थापित मोबाईल टावरों एवं आवासीय प्लॉटों पर नियमों के विपरीत निर्मित व संचालित होटलों, स्कूलों, बैंक्वेट हालों, अस्पतालों तथा अवैध निर्मित मार्केटों की जानकारियां जुटाई जा रही हैं जिन्हें जल्द प्रकाश में लाया जायेगा।