डॉक्टर यास्मीन सुल्ताना नक़वी (प्रयागराज/उत्तर प्रदेश)
डाटला एक्सप्रेस
प्रिय मित्र राजेश्वर राय जी नमस्कार, आज मैं अपनी आपा यानी डॉक्टर यास्मीन सुल्ताना जी के और मेरे मधुर रिश्तों को आपसे सांझा कर रही हूँ। मुझे नहीं मालूम कि कैसे लिखते है, मुझे तो बस सीधी सरल भाषा में बयानी करना आता है। ये गूगल पर जब अनगिनत लोगों के बारे में देखती हूँ तो सोचती हूँ कि अभी भी कुछ लोग ऐसे हैं जो नींव का पत्थर ही बने रहने में खुश हैं, जो दिखावे से ज़्यादा कर्म करने पर यकीन करते हैं, ऐसी ही मेरी आपा हैं जो बिन थके अनवरत बस निष्काम कर्म किये जा रही हैं और समर्पित हैं मातृभाषा हिंदी के लिए।
डॉक्टर यास्मीन सुल्ताना नक़वी जी ने अनगिनत किताबें लिखीं और 80 (अस्सी) किताबों का सम्पादन भी किया
मेरी जान-पहचान उनसे दूरभाष के जरिये 2017 में हुई थी जब उनकी संस्था 'समन्वय' के अध्यक्ष श्री पूर्णेन्दु कुमार सिंह जी ने मुझे समन्वय से जोड़ा और राजस्थान प्रदेशाध्यक्ष बनाया। मेरी खुशी का ठिकाना न रहा जब आपा से पता चला कि मेरी आदर्श परम् आदरणीया आधुनिक काल की मीरा महादेवी वर्मा जी ने ही 'समन्वय' संस्था के निर्माण और उसके जरिये समाज के चौमुखी कल्याण का निर्णय लिया था, किन्तु अफ़सोस कि वो समन्वय के रजिस्ट्रेशन से पूर्व ही अलौकिक दुनिया में चली गयीं यहीं देह छोड़कर। आदरणीया महादेवी वर्मा जी की उनके अंतिम 17 बरसों में सेवा करने वाली और उनका अंतिम संस्कार करने वाली उनकी सबसे चहेती शिष्या डॉक्टर यास्मीन सुल्ताना नक़वी जी ने 40 दिनों में ही समन्वय को महादेवी वर्मा जी का चाहा हुआ रूप दिया और 31 बरस से समन्वय राष्ट्रीय स्तर पर सक्रियता से कार्य कर रही है। ये सब आदरणीया डॉक्टर यास्मीन सुल्ताना नक़वी जी एवं डीएसपी पद से रिटायर आदरणीय पूर्णेन्दु कुमार सिंह जी के ही प्रयासों और मेहनत से हो पा रहा है।
डॉक्टर यास्मीन सुल्ताना नक़वी जी की एक रचना.
महामहीम गवर्नर पण्डित केशरीनाथ त्रिपाठी जी के आवास पर एक पारिवारिक मुलाकात:
इतनी बीमारियों और घर-बाहर की जिम्मेदारियों से जूझते हुए भी यास्मीन सुल्ताना जी के चेहरे पर शिकन तक नहीं आती। 05 वर्ष जापान में हिंदी को अपना योगदान देकर आयीं यास्मीन सुल्ताना जी इस समय भारत और जापान की सेतु बनी हुई हैं। डॉक्टर यास्मीन सुल्ताना जी भारत और जापान के रंगमंच की डायरेक्टर हैं। 'समन्वय' और 'साकुरा की बयार' पत्रिका का सम्पादन भी करती हैं जिसमें भारत और जापान के हिंदी भाषी अपनी रचनायें छपवाते हैं। वो एकदम साधारण में असाधारण हैं। सादगी कोई उनसे सीखे। सच में वो उम्र ही नहीं मानवता और दरियादिली में भी बड़ी हैं। उनसे संबंधित कुछ अविस्मरणीय पलों को आपसे साझा कर रही हूँ हो सके तो आप इन्हें अपने समाचार पत्र में स्थान दें जिससे इन्हें लोग जान सकें और इनसे जुड़ सकें।
प्रेषक: कवयित्री ममता शर्मा/अलवर, राजस्थान
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