सुरेश मेहरा के दोहे

 


शुभम  गदाधर  महाबल , गौरीसुत  गजनान ।
वंदन   करता  आपको , 'सुर' भूपति भगवान ।।


सुर हाथों  को  जोड़कर , ये  करता अरदास ।  
माँ   दुर्गा    नारायणी , रहना   हरदम   पास ।।


मैया  का   गुणगान जो , करते  हैं  दिन रात ।
उनके घर में  हो सदा ,ख़ुशियों  की  बरसात ।।


मासूमों   को   नोचते , धरती   पर  मक्कार ।
माँ चंडी का रूप धर, आओ फिर  इक बार ।।


हर दिन मैया  आपका , करता है  जो जाप ।
पास  रहे   उसके   ख़ुशी , दूर  रहें  सन्ताप ।।


भक्तों  को राहत मिली ,सुखी हुए सब सन्त ।
माँ दुर्गा ने  जब किया , महिषासुर का अंत ।।


भूल  मातु मुझसे हुई , सर पर रख दो हाथ ।
गर्दन   कटती    देखकर , बोले    भैरोनाथ ।।


चलो त्रिकूट  पहाड़ पर , मैया जी का वास ।
कहते  हैं  पूरी   वहाँ , होती  सबकी  आस ।।


अनुगत श्रीधर सा सही , बनिए तो श्रीमान ।
घर  में   आएँगी  स्वतः , माँ  देने  वरदान ।।


आओ   बैठो  नाव  है , चलने   को  तैयार ।
माँ  गौरी  ले जा  रहीं , भवसागर  से  पार ।।


जिससे डरती धूप भी ,वो तरूवर की छाँव ।
माता  का  दरबार 'सुर' ,सबसे   सुंदर ठाँव ।।


तारा  रानी की  कथा , सुनता   जो  इंसान ।
जगराते की  रात वो , हो   जाता  धनवान ।।


सप्तशती का पाठ जो , करता   है  इंसान । 
माँ दुर्गा उसकी करें , हर मुश्किल आसान ।।


माँ   दुर्गा   सुरसुन्दरी , काली ऐ सुखधाम ।         
सब तेरे  ही रूप हैं , कितने   सुंदर   नाम ।।       


रखतीं उस इंसान पर ,मैया करुणा ख़ास ।
नौ दिन जो नवरात्र में , रखता है उपवास ।।


जो हर पल  सुर  सोचते , आना तेरे द्वार ।
मैया  उनको भी  बुला , तू अपने  दरबार ।।


जीवन भर मत छोड़ना, माँ दुर्गा का हाथ ।
पत्ते रहते  वो  हरे , जो तरूवर  के  साथ ।।


घर में चौकी  पूजता ,जो नित प्रातः शाम ।
उसके नौ दिन में सभी,बनते बिगड़े काम ।।


माता ने जग को दिया सुर यह भी सन्देश ।
घर  पूजो  हनुमान  को , दूर रहेंगे  क्लेश ।।


शक्तिहीन लाचार थे, होकर भी  बलवान ।
माँ ने भैरोनाथ का ,जब  तोड़ा अभिमान ।।


मैया  के  दरबार  में , पूरी   हो  हर  बात ।
पर उतना ही माँगना जितनी हो औक़ात ।।


जितने  प्यारे  नाम  हैं , उतने  सुंदर रूप ।
तू   गर्मी  में  छाँव है ,  माँ  सर्दी  की धूप ।।


माँ को आना ही पड़ा,देख भक्त का प्यार ।
ध्यानू ने जब रख दिया,अपना शीश उतार ।।


चलो चलें हम काँगड़ा ,माँ ज्वाला के धाम ।
एक  नारियल भेंट से , बनते बिगड़े काम ।।


माँ दुर्गा से माँग लें ,  सिमरन  का वरदान ।
चिंता दुख तक़लीफ़ से , ग़र बचना इंसान ।।


दुनिया से करवा दिया ,भक्तों का सम्मान ।
माँ ज्वाला ने तोड़कर,अकबर का अभिमान ।।


लाल चुनरिया ओढ़कर,घर आतीं हर साल ।
माँ   कंजक  के  रूप में , करने मालामाल ।।


बिन  तेरे   माँ   शारदा , जीवन  था  बेनूर ।
तेरी   किरपा   से हुए , परमहंस   मशहूर ।।


माँ आतीं नवरात्र में , जग  करने आबाद ।
पूरी करने के लिए ,हर दिल की फरियाद ।।


होने पर जो गलतियाँ, रखता दिल को साफ़ ।
मैया  उस   इंसान  को,कर  देती  हैं  माफ़ ।।


हे दुर्गे माँ  आपके , चरणों  की  मैं  धूल ।
याद कराना ये मुझे , जब भी जाऊँ भूल ।।


दिल में रखता जो सदा,श्रद्धा भक्ति अपार ।
खुद आतीं मां कालका,चलकर उसके द्वार ।।


ब्रम्हा  जी  जग रचयिता,नहीं मानता कौन ।
माँ   काली के  सामने , रहते  वो  भी मौन ।।


मैया  बनते  हैं स्वयं , उसके  बिगड़े  काम ।
ज्योत जलाए आपकी जो नित सुबहो शाम ।।


अर्धकुँवारी  भावनी , रखना   मेरा  ध्यान ।
दूल्हा बन संसार से , जब  जाऊँ  शमशान ।।


माने ये  संसार सुर ,उनको  कितना  खास ।
लेकिन बारह  राशियाँ , माँ काली की दास ।।


जकड़े जाती रात दिन , लालच की जँजीर ।
माँ   जगदम्बा  पार्वती , हर  लो  मेरी  पीर ।।


यूँ  करता   संसार    माँ , तेरी   चर्चा  आज ।
जिसके दिल में हो दया,करे दिलों पर राज ।।


अपना  कर सुर  देख लो , माँ  दुर्गा  की रीत ।
तुमको  जनजन से स्वयं, यहाँ  मिलेगी प्रीत ।।


माँ हों जब  विकराल  तो, चुप्पी  धरते  शेर ।
दुष्टों  को  इक   वार  से , माँ कर  देतीं   ढेर ।।


माँ  दुर्गा  के सामने  मत  करना  सुर  भूल ।
गुल  रखतीं इक हाथ तो , दूजे  रखें  त्रिशूल ।।


सुरेश मेहरा/दिल्ली



प्रस्तुति: डाटला एक्सप्रेस


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