जीडीए के प्रथम अपीलीय अधिकारी सी०पी० त्रिपाठी (अपर सचिव) को सारी अपीलें ही लगती हैं बलहीन


(मामला: गाजियाबाद विकास प्राधिकरण के जन सूचनाधिकारियों एवं प्रथम अपीलीय अधिकारी द्वारा आरटीआई में दुराग्रह एवं पक्षपात पूर्ण जवाब और फैसले देने तथा अपीलार्थी को हताश एवं उसकी मानहानि करने का)


डाटला एक्सप्रेस
17/07/2019
datlaexpress@gmail.com
रिपोर्ट: सुनील पाण्डेय


ग़ाज़ियाबाद: हमारे देश में प्रशासनिक सेवाओं में जाने का इतना क्रेज है कि डॉक्टरी और इंजीनियरिंग करने के बाद भी लोग आईएएस और पीसीएस बनने का मोह संवरण नहीं कर पाते, चाहें तो वर्षवार लिस्ट उठाकर देख सकते हैं। अब इसके पीछे सेवा और देशप्रेम की कितनी भावना होती है यह जगजाहिर है। गत दिनों बुलंदशहर के डीएम के यहाँ छापेमारी के उपरान्त रूपये गिनने की मशीन लगानी पड़ी। ये कोई तनहा उदाहरण नहीं है बल्कि एक आम बात है जो इन प्रशासनिक अधिकारियों के संदर्भ में आये दिन घटती ही रहती है। सारी भ्रष्टाचार की त्रिवेणी इन्हीं राजपत्रित (गज़टेड) अधिकारियों के यहाँ से निकलती है और ताज्जुब इस बात का है कि इन्हें कोई भय भी नहीं है। ख़ैर, इसी सिलसिले में एक बयान बहुत ही रोचक है कृपया अध्ययन करें..... *"नियत तिथि को अपीलार्थी के प्रतिनिधि यह स्पष्ट करने में असमर्थ रहे कि वह अनुभागीय जन सूचना अधिकारी द्वारा प्रेषित करायी गयी सूचना के किस बिंदु से असंतुष्ट हैं, न ही कोई आधार प्रथम अपील के माध्यम से लिया गया। जो सूचना अभिलेखों में उपलब्ध है उनका प्रेषण अनुभागीय जन सूचना अधिकारी द्वारा किया जा चुका है। जिस कारण अब उक्त परिप्रेक्ष्य में प्रथम अपील बलहीन होने के कारण निरस्त किये जाने के योग्य है।"*
उक्त तहरीर उन आरटीआई प्रथम अपील आदेशों की है जो वर्तमान में गाजियाबाद विकास प्राधिकरण के वाहिद (मात्र एक) प्रथम अपीलीय अधिकारी श्री सी०पी० त्रिपाठी द्वारा बिना किसी विचार-विश्लेषण के प्रत्येक आदेश में दुराग्रह एवं पक्षपात पूर्ण तरीके से अपीलार्थी को हताश करने की नीति एवं नियति से अन्यायपूर्वक चेंप कर भेज दी जाती है। इसी क्रम में प्राप्त एक नवीनतम समाचार के अनुसार आरटीआई आवेदक राजेश्वर राय 'दयानिधि' द्वारा दाखिल दो आवेदनों के आदेशों का हवाला देकर श्री त्रिपाठी के दुराग्रह एवं पक्षपात को साबित किया जा सकता है कि वो किस तरह अपने प्राधिकरण जीडीए के विभागीय सूचनाधिकारियों के पक्ष में खम ठोंककर खड़े हैं और इरादतन एक पोशीदा रणनीति के तहत भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रहे हैं।



(1)-आरटीआई क्रमांक: 21052/26.03.19
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बिंदु:03(तीन)अभियंत्रण जोनों से संबंधित


(a) 2018__2019 के लिए जारी निर्माण ठेकों की सूची।


(b) अनुमानित लागत, कार्यदायी फर्म, किया जा चुका और बाकी भुगतान।


(c) प्रत्येक अभियंत्रण जोन में नियुक्त प्रभारी, एई, जेई की नाम/पता/पद-नाम सहित सूची।


उत्तर:समय बीतने के बाद भी आधे जोनों (कुल आठ हैं) के उत्तर नहीं आये।
प्रथम अपील:07/05/2019
सुनवाई:अपील संख्या 267/2019 दिनांक 29/06/19
आदेश:पत्रांक 349/जन सूचना-प्र० अ०/RTI/2019/दिनांक 01.07.19
विश्लेषण:प्रथम अपील दाखिल होने के बाद कुछ जवाब आये परंतु अधूरे। बिंदु 03 अभी भी अनुत्तरित है। बिंदु 02 के जवाब अधूरे हैं। अपील में सशक्त ग्राउंड भी लिया गया था, आवेदक के प्रतिनिधि श्री रोशन कुमार राय द्वारा मज़बूती से अपना पक्ष भी रखा गया था, जिसे सीपी त्रिपाठी अति उदासीनता से इन्कार कर रहे हैं।


(2) आरटीआई क्रमांक: 21053/दिनांक 26.032019
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बिंदु: 03/प्रवर्तन जोन 02 से संबंधित


बिंदु संख्या (1)-2018 में अवैध निर्माण के लिए जारी की गयीं कारण बताओ नोटिसों की छायाप्रति सहित सूची।


बिंदु संख्या (2)- प्रवर्तन जोन 02 में नियुक्त प्रभारी/एई/जेई का नाम/पद-नाम/दूरभाष सहित सूची।


बिंदु संख्या (3)- 2018 में ध्वस्त की गयीं कारण अवैध इमारतों की सूची।


उत्तर: १- नियमानुसार शुल्क जमा करवा के अवलोकन करें।
२- प्राधिकरण की वेबसाइट देखें।
३- प्रथम के अनुसार।


प्रथम अपील:07/05/2019 संख्या 268/2019
सुनवाई:29/06/2019
आदेश:पत्रांक 358/ज०स०-प्र०अ०/ RTI/2019/दिनांक 01/07/19
विश्लेषण:अब आते हैं इसके जवाब पर, प्रथम प्रश्न के उत्तर में जीडीए प्रवर्तन जोन 02 का प्रभारी एवं सूचनाधिकारी जो अपना नाम बड़ी सफाई से चालाकी दिखाते हुए सूचना पत्र में नहीं लिखता, जवाब देता है कि *"नियमानुसार शुल्क प्राधिकरण कोष में जमा कराकर किसी भी कार्य दिवस में आकर पत्रावलियों का निरीक्षण किया जा सकता है." अब इसमें पेंच देखिए, माँगी गयी छायाप्रति है और 'विद्वान' सूचनाधिकारी पत्रावलियों का अवलोकन करवा रहा है। एक तरफ शुल्क जमा कराने की बात कर रहा है जबकि पृष्ठों की संख्या, बैंक का नाम और खाता संख्या का उल्लेख तक दुराग्रहपूर्ण ढंग से नहीं करता। अब कार्य दिवस में अवलोकन पर आते हैं, वो ये कि आप जब भी जायेंगे तो संबंधित बाबू या अधिकारी आपको मिलेगा ही नहीं और यदि मिल गया तो आपको दूसरे दिन आने के आदेश के साथ चलता कर देगा। प्रभारी/सूचनाधिकारी उसके फोन नंबरों पर सम्पर्क किया जाता है, परन्तु वो फोन नहीं उठाता, यदि उठाये तब तो उससे समय लेकर आवेदक मिले। अब एक ज्वलंत बात, जिस जीडीए स्थित कार्यालय पर बुलाने की बात की गयी है वहाँ की मौजूदा स्थिति ये है कि आप वहाँ पहुँच ही नहीं सकते, क्योंकि उपाध्याक्षा कंचन वर्मा ने उसे (जीडीए) आइएसआइएस के किले में तब्दील कर दिया है जहां किसी भी स्थिति में कोई प्रवेश ही नहीं कर सकता, इतनी लिखा-पढ़ी और पूछ-ताछ बढ़ गयी है कि आदमी आजिज़ आकर अन्दर जाने का विचार ही त्याग देता है। रहा सवाल उपाध्यक्ष साहिबा की सख्ती के परिणाम का तो वो ये है कि एक भी अवैध निर्माण नहीं रुका है यानि सिफ़र उपलब्धि है, यदि वो चाहें तो उन्हें पूरी सूची उपलब्ध करवाई जा सकती है।


अब उन कारण बताओ नोटिसों को न देने के उद्देश्य पर आयें तो वो ये है कि जिन निर्माणों को अवैध बताकर रोके जाने की कथित नोटिस (धमकी पत्र) जारी की गयी हैं वो तो बस उन निर्माणकर्ताओं से संपर्क साधने और उन्हें चढ़ावे के लिए मजबूर करने की एक सुनियोजित प्रक्रिया है। अब भला अपना ही पोल खोलने के लिए कोई कैसे जानकारी दे सकता है, क्योंकि आधिकारिक सूचना आने पर सारे अवैध निर्माणों के संरक्षक ये प्रभारी एवं अभियंता घिर जायेंगे।


अब आते हैं द्वितीय प्रश्न के उत्तर पर जिसमें प्राधिकरण की वेबसाइट पर जोन में नियुक्त अभियंताओं की सूची प्राप्त करने की बात कही गयी है, तो उसकी असलियत ये है कि वो अधूरी, बिखरी और अद्यतन है ही नहीं। तीसरे प्रश्न के बारे में भी इसी तरह टाल दिया गया है यानि 2018 में डिमॉलिश्ड इमारतों की जो सूची माँगी गयी है वो देने में हीला-हवाली करने का मुख्य कारण ये है कि काग़ज़ों में तो वो निर्माण ध्वस्त हैं परन्तु मौके पर कुछ के निर्माण जारी हैं तो कुछ के पूरे हो गये हैं, तो इस स्थिति में इतनी आसानी से सूचना देकर सूचनाधिकारी/जोन प्रभारी भला अपना चीरहरण क्यूँ करवायेगें।


इन बातों के आलोक में प्रथम अपील दाखिल करते समय आवेदक राजेश्वर राय 'दयानिधि' द्वारा सशक्त ग्राउंड भी लिया गया था, उनके प्रतिनिधि श्री रोशन कुमार राय द्वारा मज़बूती से अपना पक्ष भी रखा गया था, जिसे सीपी त्रिपाठी अति उदासीनता से इन्कार कर रहा है। अब जब माननीय त्रिपाठी जी ने सूचनाएं न दिलवाने का मन बना ही लिया है तो क्या किया जा सकता है। इसी त्रिपाठी की तरह पहले भी एक प्रथम अपीलीय अधिकारी एसएस वर्मा हुआ करता था जो अपीलार्थियों को कहता था कि "यहाँ से तो आपको कुछ नहीं मिलेगा, लखनऊ जाइये आयोग में"। ठीक उसी राह पर यह नये नवेले सीपी त्रिपाठी (अपर सचिव + प्रथम अपीलीय अधिकारी) भी अग्रसर हैं। जबकि गुप्ता जी जैसे महान अधिकारी भी इस पर रह चुके हैं जिन्होंने नित नये न्याय के प्रतिमान खड़े किये।


ऐसी स्थिति में प्रार्थी राजेश्वर राय ने द्वितीय अपील दाखिल करने का मन बना लिया है और कहा है कि भले ही उन्हें राज्य सूचना आयोग से लेकर उच्च न्यायालय तक क्यों न जाना पड़े वो सूचना ले के ही रहेंगे। वैसे इन अधिकारियों को ये पता होता है कि आरटीआई मामलों में अधिकतम 25,000 (पच्चीस हजार) रूपये की शास्ति (जुर्माना) लग सकती है और उसमें भी करीब डेढ़ से दो वर्ष का समय लग जाता है। इस बीच तो ये अभियंता/उच्चाधिकारी अवैध निर्माणों से लाखों- करोड़ों के वारे-न्यारे करवाके फ़ारिग हो चुके होंगे। इतिहास देखिए तो इस समय जीडीए के कई उच्चाधिकारी जो यहाँ से स्थानांतरित हैं, डीएम जैसे पदों को सुशोभित कर रहे हैं, परन्तु जीडीए में किये गये संगीन भ्रष्टाचारों में जांच का सामना कर रहे हैं। अब सवाल ये उठता है कि क्या जीडीए के सूचनाधिकारी या सीपी त्रिपाठी जैसे प्रशासनिक सेवाओं से चयनित प्रथम अपीलीय अधिकारी ऐसे ही सूचनाधिकार कानून का मज़ाक उड़ाते रहेंगे या उन पर कोई नकेल भी कसी जा सकेगी, जिससे नैसर्गिक न्याय की कुछ उम्मीद बँध सके।


यदि एक ज़मीनी सच्चाई की बात करें तो हमारे देश की सर्वदा से ये समस्या रही है कि हम दूसरों को तो उपदेश देने में आगे होते हैं परन्तु जब अपनी बारी आती है तो हम न कोई सबक़ लेते हैं न अमल करते हैं। हम अगर भ्रष्टाचार हटाने पर चर्चा करते हैं तो उस चर्चा के लिए भी जो मीटिंग तक बुलायी जाती है उसमें होने वाले खर्च में भी भ्रष्टाचार करते हैं। एक कानून बनने पर उसे तोड़ने के सौ नुस्ख़े तैयार कर लेते हैं। एंटी करप्शन सेल करप्शन में करप्शन करने के लिए संचालित हो रहे हैं। उगाही नीचे से ऊपर मतलब उर्ध्वगामी और सरकारी धन की लूट ऊपर से नीचे यानि अधोगामी रूप में बदस्तूर जारी है। ख़ैर, इस बहस-मुबाहिशे में क्या रखा है ये तो रोज़ ही होता रहता है और परिणाम वही ढाक के तीन पात। इन्हीं तमाम चीजों पर थोड़ा अंकुश लगाने के लिए भारत सरकार 2005 में सूचना का अधिकार (आरटीआई/राइट टू इन्फॉर्मेशन) कानून लेकर आयी थी, लेकिन इन बाबुओं और सूचना अधिकारियों ने उस कानून की ऐसी पुंगी बजाई कि उसकी हवा ही निकल गयी और वो फुस्स हो गया। जनहित का यह कानून अब बस कागजों में सिमटकर अंतिम साँसें गिन रहा है, इसका दसगात्र, श्राद्ध सब हमारे माननीय सीपी त्रिपाठी जैसे कर्मठ अधिकारियों ने कर डाला। ख़ैर, जहां उच्चतम न्यायालय की निष्ठा पर आये दिन प्रश्न चिन्ह लग रहे हों वहाँ सीपी त्रिपाठी जैसे मामूली लोग जो न्याय की कुर्सी की शोभा बिगाड़ रहे हों उनकी क्या बिसात। अब आखिर में एक बात जो अति गौर करने वाली है वो ये कि अगर इस प्रकरण की शिकायत उच्च स्तर पर की जाती है तो उसकी जाँच भी पलटकर इन्हीं त्रिपाठी जी पे ही आयेगी यानि मुजरिम और मुंसिफ़ एक।


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