धरती बोल रही है,वृक्ष लगायें वृक्ष उगायें।
निज अंतर-पट खोल रही है,वृक्ष लगायें वृक्ष उगायें।।
कटते पेड़ सिमटते जंगल,कैसे हो जंगल में मंगल
गरमी से भू डोल रही है,वृक्ष लगायें वृक्ष उगायें।
तपती धरती बोल रही है,वृक्ष लगायें वृक्ष उगायें।।
वृक्ष नहीं कैसे हो बरसा,बरसा को हर कोई तरसा
प्रकृति स्वयं में खौल रही है,वृक्ष लगायें वृक्ष उगायें।
तपती धरती बोल रही है,वृक्ष लगायें वृक्ष उगायें।।
वृक्ष बिना जीवन हो कैसे,काम न आ सकते हैं पैसे
बड़ी बड़ों की पोल रही है,वृक्ष लगायें वृक्ष उगायें।
तपती धरती बोल रही है,वृक्ष लगायें वृक्ष उगायें।।
वृक्ष की करना ख़ातिरदारी,नेता हो या फिर व्यापारी
वृक्ष से भू अनमोल रही है,वृक्ष लगायें वृक्ष उगायें।
तपती धरती बोल रही है,वृक्ष लगायें वृक्ष उगायें।।
सतीश तिवारी 'सरस',
नरसिंहपुर (म.प्र.)
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डाटला एक्सप्रेस
संपादक:राजेश्वर राय "दयानिधि"
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