विनीता धाकड़ की कविता "बेटी हिन्दुस्तान की"
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विदेशी हवाओं में पली हूं, संस्कारों पर अड़ी हूं।
भारत की धरा पर पली हूं, इसे चूम कर ही बढ़ी हूं।
सोना नहीं मणि हूं, बूटी नहीं जड़ी हूं।
खुद में ही मैं बड़ी हूं, भारत की जो लली हूं।
संस्कृतियों मैं सनी हूं, संस्कारों में मढ़ी हूं।
खंडहर नहीं जो पड़ी हूं, मीनार बनकर खड़ी हूं।।
सागर नहीं नदी हूं, पहाड़ों से लड़ बढ़ी हूं।
कैसे अकणु हरि हूं, फल फूलों से लदी हूं।।
गँवार नहीं पढ़ी हूं, परिवार के संग चली हूं।
हीरोइन से भी बड़ी हूं, पापा की जो परी हूं।
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नाम - विनीता धाकड़
ग्राम-बरहा कलां, तहसील-बरेली
जिला-रायसेन (मध्य प्रदेश)
मोबाइल नंबर: 95_84_220_451
प्रस्तुति: डाटला एक्सप्रेस 07/02/2019