दोस्तों को भी पालते रहिए,
हां, मगर विष निकालते रहिए।
पंडित सुरेश नीरव
गणतंत्र दिवस पर आयोजित हुआ भव्य कवि सम्मेलन:
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डाटला एक्सप्रेस
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पिलखुआ (हापुड़) - 26 जनवरी गणतंत्र दिवस के अवसर पर देश के लिए अपने प्राणों को न्योछावर करने वाले अमर शहीदों को समर्पित आर्यसमाज मन्दिर के प्रांगण में सामाजिक संस्था 'मानव कल्याण मंच' के तत्वावधान में 'एक शाम शहीदों के नाम' से एक विराट कवि सम्मेलन आयोजित किया गया। जिसमें देश विदेश में प्रसिद्ध व लोकप्रिय कवियों ने भारत माँ की वंदना करते हुए अमर शहीदों को श्रद्धासुमन अर्पित किए।
कवि सम्मेलन की अध्यक्षता वरिष्ठ कवि एवं पत्रकार पण्डित सुरेश नीरव ने की। कवि सम्मेलन का संयोजन व संचालन कवि डॉक्टर सतीश वर्द्धन ने किया। कार्यक्रम की मुख्य अतिथि के रूप में पिलखुवा नगर पालिका की अध्यक्ष श्रीमती गीता गोयल, कवि सुरेश बंसल और समाजसेवी चेतन गुप्ता रहे। कवयित्री राधिका मित्तल ने मां सरस्वती की वंदना कर कवि सम्मेलन का शुभारंभ किया। देर रात तक चले इस कवि सम्मेलन में अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ कवि सुरेश नीरव ने जब अपनी गज़ल का यह शे'र पढ़ा कि ------
सोचा ही था कि उसपे मैं कोई गजल कहूँ ।
अल्फाज आ रहे हैं हाथ जोड़ जोड़ कर।।
तो श्रोता झूम उठे। श्रोताओं के विशेष आग्रह पर उन्होंने पढ़ा कि....
दोस्तों को भी पालते रहिये,
हाँ मगर विष निकालते रहिये।।
ओज के प्रसिद्ध स्वर डॉ० वागीश दिनकर ने अपनी रचना से श्रोताओ में जोश भरते हुए कहा कि --------
निष्क्रियता जब अर्जुन पर साम्राज्य जमा लेती है ।
कविता कृष्ण गिरा बनकर गांडीव थमा देती है ।।
हापुड़ से आये कवि डॉ. अनिल बाजपेयी ने पढ़ा कि--------
ए भगत तू बहुत प्यारा है,
दुनिया की आंख का तारा है,
तेरे आगे फीका है ताजमहल,
क्योंकि तू सबसे न्यारा है ।।
ग़ाज़ियाबाद से आये कवि चेतन आनन्द ने अपनी बात कुछ यूं बयां की ----------
सरहद पर टिकना भी बहुत जरूरी था ।
सौ सौ पर इकलौता था पर भारी था ।दुश्मन की गर्दन पर किन्तु आरी था ।।
संचालन करते हुए डॉक्टर सतीश वर्द्धन ने पढ़ा कि ---------
गुरु गोविंद शिवा राणा प्रताप की तेज व तेग की पहचान वन्देमातरम।
नलवा और बैरागी सुभाष व भगत की देशभक्ति का है गान वन्देमातरम ।।
कवि राजीव सिंघल ने पढ़ा कि....
यूं सताती रही जिंदगी,
मुस्कराती रही जिंदगी,
जाने क्यों मेरे मुकद्दर पे,
खिलखिलाती रही जिंदगी।।
कवि राज चैतन्य ने पढ़ा कि......
बहार लेके आये इस चमन के लिए,
बीज बनकर खिले सृजन के लिए,
ए मेरी लेखनी तू उनके गीत गा,
जो हवन हो गए इस वतन के लिए ।
पण्डित नमन ने पढ़ा कि....
गोल गोल जिसका चेहरा वो गुल्लू होता है ।
सूरज जिसे दिखाई न दे वो उल्लू होता है।
कवि रामवीर आकाश ने पढ़ा कि....
आज की रात चिरागों को जलाये रखना
अपनी पलकों पे मेरी याद सजाये रखना ।
कवि प्रेम कुमार पाल ने पढ़ा कि.....
बीज नफरत का रोपे न याब बस करें ।
है जरूरी बहुत ये अमन के लिए ।
कवि अशोक गोयल ने पढ़ा कि....
रोम रोम राष्ट्र रंग मुझमें समाहित हो, वीणा को बजा दे तार तार झंकार दे ।।
कार्यक्रम को सफल बनाने में रविन्द्र उत्साही, प्रेमनारायण सिंघल, सुभाष मित्तल, सीमा मित्तल, कपिल बंसल, अनिल गर्ग, प्रेम चंद आर्य,विजय आर्य , गौरव शास्त्री का विशेष योगदान रहा।
कार्यक्रम में सुधीर मित्तल, देवेंद्र सिंघल, प्रदीप मित्तल, प्रमोद मित्तल, संजय मित्तल, संजय गर्ग, पुनीत गर्ग, प्रदीप सिंघल,मुकेश विश्वप्रेमी,आदि उपस्थित रहे ।